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नए कृषि कानून पर किसानों ने रखी अपनी बात, बोले- इसमें संशोधन की जरूरत - चंदौली

चंदौली के किसानों ने नए कृषि कानून को लेकर विरोध किया है. इनका कहना है कि इसमें कुछ संशोधन की जरूरत है. इन संशोधनों के बाद ही किसान इस कानून का समर्थन करेंगे. इस कानून को लेकर ईटीवी भारत ने उनसे बातचीत की.

चंदौली किसान.
चंदौली किसान.
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Published : Dec 25, 2020, 8:28 PM IST

चंदौली: एक तरफ जहां पूरा देश राष्ट्रीय किसान सम्मान दिवस मना रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ देश की राजधानी दिल्ली में हजारों की संख्या में किसान नए कृषि कानून के विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. मोदी सरकार और किसानों की कई राउंड की बातचीत के बाद भी इसका हल नहीं निकाला जा सका. किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत अन्य प्रावधानों में संशोधन की मांग को लेकर अडिग हैं. पीएम मोदी सहित तमाम मंत्री एमएसपी गारंटी की बात तो कह रहे हैं, लेकिन इसे कानूनी अधिकार दिए जाने को लेकर आना-कानी कर रहे है. राजधानी दिल्ली में किसानों के धरना प्रदर्शन और इस नए कृषि कानून को लेकर धान के कटोरे चंदौली के प्रगतिशील किसान क्या सोचते हैं. ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की.

ईटीवी भारत ने की किसानों से बातचीत.
निजी एजेंसियां भी तय एमएसपी से कम पर न कर सके खरीद

नए कृषि कानून को लेकर किसान रतन सिंह ने कहा कि वे नए कृषि कानून का विरोध नहीं करते है, लेकिन उसमें संशोधन जरूर होना चाहिए. हमारे देश की उत्पादकता का सरकार मात्र 15 से 20 प्रतिशत ही खरीदारी करती है. बाकी 80 से 85 प्रतिशत राइस मिलर या अन्य एजेंसियां ही खरीदती हैं. ऐसे में सरकार यह कानून लागू कर दे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे कोई भी फर्म या निजी एजेंसी खरीदारी नहीं कर सकेंगी.

स्टॉक सीमा से किसान और जनमानस को होगा नुकसान

सरकार के नए कृषि कानून में 300 टन तक के स्टॉक सीमा की छूट दी गई है, जिससे जमाखोरी बढ़ेगी और बड़े उद्योगपतियों को लाभ होगा. बड़े पूंजीपति किसानों की फसल खरीदकर जमाखोरी करेंगे. इससे किसानों की फसल भी सस्ते में बिक जाएगी और दूसरी तरफ इनकी जमाखोरी के चलते आम जनमानस को यही कृषि उत्पाद महंगे दरों पर खरीदने पड़ेंगे. जो न ही किसानों के हित में और न ही आम जनमानस के हित में होगा.

किसानों को न्यायालय जाने का मिले अधिकार

यहीं नहीं नए कृषि कानून में किसानों से कानूनी लड़ाई के अधिकार छीन लिए गए हैं. नए कानून में कॉन्टेक्ट फॉर्मिंग के दौरान उद्योगपतियों द्वारा किसानों के शोषण की आवाज को लेकर किसान कोर्ट नहीं जा पाएगा. डीएम, एसडीएम कोर्ट में मामले का निस्तारण किया जाएगा. ऐसे में किसानों को न्यायिक अधिकार मिले, ताकि हम इन बड़े व्यवसायियों से लड़कर न्याय पा सके. देश के नौकरशाह इन बड़े पूंजीपतियों के आगे किसानों के हित में फैसला नहीं कर पाएंगे, जिससे किसानों की मुसीबतें कम नहीं होंगी.

तय एमएसपी पर किसानों की उपज पूरे साल खरीदी जाय

ब्लैक राइस कृषक समिति के महासचिव वीरेंद्र सिंह ने बताया कि वे भी इस नए कृषि कानून के संशोधनों के साथ ही समर्थन करते हैं. उनका कहना है कि हमारी सरकार देश की 80 प्रतिशत जनता को राष्ट्रीय खाद्य मिशन के अंतर्गत पूरे साल अनाज का वितरण करती है. तो फिर पूरे साल तय एमएसपी के अनुरूप किसानों की उपज भी खरीदी जानी चाहिए. नए कृषि कानून में संशोधन कर ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए की किसानों की जो भी फसल सरकार की सूची में शामिल हो. उन सभी की तय एमएसपी के अनुरुप पूरे वर्ष खरीदारी होना चाहिए.

एमएसपी की गारंटी के बाद कृषि कानून का समर्थन

भारतीय किसान यूनियन से जुड़े किसान रविंद्र नाथ सिंह ने कहा कि पहले एमएसपी की गारंटी अनिवार्य हो. उसके बाद ही हम कृषि कानून का समर्थन करते हैं.

प्रदर्शन कर रहे किसानों के तौर तरीके पर उठाए सवाल

किसान और पर्यावरण संरक्षक परशुराम सिंह ने कहा कि वे थोड़े संसोधन के साथ कृषि बिल का समर्थन करते है, लेकिन उन्होंने एमएसपी की गारंटी की बात भी दोहराई. हालांकि, किसानों के धरना प्रदर्शन और उनके तौर-तरीकों पर उन्होंने सवाल जरूर खड़े किए. बीते दिन पश्चिम यूपी में जिस तरीके से अधिकारियों और पत्रकारों संग बदसलूकी की गई उसे गलत बताया.

किसान आयोग बनाने की मांग

किसान यूनियन से जुड़े राम नगीना विश्वकर्मा ने कहा कि किसानों की भलाई के लिए सबसे पहले किसानों का एक आयोग बने. किसानों की समितियां बने. इसमें हर राज्य से किसान को लिया जाए. किसानों को यह अधिकार मिले कि वे कृषि उपज का मूल्य निर्धारण कर सके. तब किसानों का भला होगा और किसान बिल पूर्ण रूप से सही मायनों में किसानों के लिए माना जाएगा.

पीएम मोदी ने की थी चंदौली के किसानों की तारीफ

गौरतलब है कि यह वही चंदौली के किसान हैं, जिनकी तारीफ प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों दौरे के दौरान की थी. साथ ही इनकी उपज ब्लैक राइस की भी जमकर सराहना की थी. ब्लैक राइस का जिक्र करते हुए इनकी उद्यमिता को आधार बनाते हुए नए कृषि कानून के विरोध में उतरे किसानों ने जवाब देने का प्रयास किया था, लेकिन चंदौली के किसान भी तय एसएमपी और सुरक्षा गारंटी संशोधनों के बिना इस कृषि कानून के समर्थन में नहीं हैं.

चंदौली: एक तरफ जहां पूरा देश राष्ट्रीय किसान सम्मान दिवस मना रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ देश की राजधानी दिल्ली में हजारों की संख्या में किसान नए कृषि कानून के विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. मोदी सरकार और किसानों की कई राउंड की बातचीत के बाद भी इसका हल नहीं निकाला जा सका. किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत अन्य प्रावधानों में संशोधन की मांग को लेकर अडिग हैं. पीएम मोदी सहित तमाम मंत्री एमएसपी गारंटी की बात तो कह रहे हैं, लेकिन इसे कानूनी अधिकार दिए जाने को लेकर आना-कानी कर रहे है. राजधानी दिल्ली में किसानों के धरना प्रदर्शन और इस नए कृषि कानून को लेकर धान के कटोरे चंदौली के प्रगतिशील किसान क्या सोचते हैं. ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की.

ईटीवी भारत ने की किसानों से बातचीत.
निजी एजेंसियां भी तय एमएसपी से कम पर न कर सके खरीद

नए कृषि कानून को लेकर किसान रतन सिंह ने कहा कि वे नए कृषि कानून का विरोध नहीं करते है, लेकिन उसमें संशोधन जरूर होना चाहिए. हमारे देश की उत्पादकता का सरकार मात्र 15 से 20 प्रतिशत ही खरीदारी करती है. बाकी 80 से 85 प्रतिशत राइस मिलर या अन्य एजेंसियां ही खरीदती हैं. ऐसे में सरकार यह कानून लागू कर दे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे कोई भी फर्म या निजी एजेंसी खरीदारी नहीं कर सकेंगी.

स्टॉक सीमा से किसान और जनमानस को होगा नुकसान

सरकार के नए कृषि कानून में 300 टन तक के स्टॉक सीमा की छूट दी गई है, जिससे जमाखोरी बढ़ेगी और बड़े उद्योगपतियों को लाभ होगा. बड़े पूंजीपति किसानों की फसल खरीदकर जमाखोरी करेंगे. इससे किसानों की फसल भी सस्ते में बिक जाएगी और दूसरी तरफ इनकी जमाखोरी के चलते आम जनमानस को यही कृषि उत्पाद महंगे दरों पर खरीदने पड़ेंगे. जो न ही किसानों के हित में और न ही आम जनमानस के हित में होगा.

किसानों को न्यायालय जाने का मिले अधिकार

यहीं नहीं नए कृषि कानून में किसानों से कानूनी लड़ाई के अधिकार छीन लिए गए हैं. नए कानून में कॉन्टेक्ट फॉर्मिंग के दौरान उद्योगपतियों द्वारा किसानों के शोषण की आवाज को लेकर किसान कोर्ट नहीं जा पाएगा. डीएम, एसडीएम कोर्ट में मामले का निस्तारण किया जाएगा. ऐसे में किसानों को न्यायिक अधिकार मिले, ताकि हम इन बड़े व्यवसायियों से लड़कर न्याय पा सके. देश के नौकरशाह इन बड़े पूंजीपतियों के आगे किसानों के हित में फैसला नहीं कर पाएंगे, जिससे किसानों की मुसीबतें कम नहीं होंगी.

तय एमएसपी पर किसानों की उपज पूरे साल खरीदी जाय

ब्लैक राइस कृषक समिति के महासचिव वीरेंद्र सिंह ने बताया कि वे भी इस नए कृषि कानून के संशोधनों के साथ ही समर्थन करते हैं. उनका कहना है कि हमारी सरकार देश की 80 प्रतिशत जनता को राष्ट्रीय खाद्य मिशन के अंतर्गत पूरे साल अनाज का वितरण करती है. तो फिर पूरे साल तय एमएसपी के अनुरूप किसानों की उपज भी खरीदी जानी चाहिए. नए कृषि कानून में संशोधन कर ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए की किसानों की जो भी फसल सरकार की सूची में शामिल हो. उन सभी की तय एमएसपी के अनुरुप पूरे वर्ष खरीदारी होना चाहिए.

एमएसपी की गारंटी के बाद कृषि कानून का समर्थन

भारतीय किसान यूनियन से जुड़े किसान रविंद्र नाथ सिंह ने कहा कि पहले एमएसपी की गारंटी अनिवार्य हो. उसके बाद ही हम कृषि कानून का समर्थन करते हैं.

प्रदर्शन कर रहे किसानों के तौर तरीके पर उठाए सवाल

किसान और पर्यावरण संरक्षक परशुराम सिंह ने कहा कि वे थोड़े संसोधन के साथ कृषि बिल का समर्थन करते है, लेकिन उन्होंने एमएसपी की गारंटी की बात भी दोहराई. हालांकि, किसानों के धरना प्रदर्शन और उनके तौर-तरीकों पर उन्होंने सवाल जरूर खड़े किए. बीते दिन पश्चिम यूपी में जिस तरीके से अधिकारियों और पत्रकारों संग बदसलूकी की गई उसे गलत बताया.

किसान आयोग बनाने की मांग

किसान यूनियन से जुड़े राम नगीना विश्वकर्मा ने कहा कि किसानों की भलाई के लिए सबसे पहले किसानों का एक आयोग बने. किसानों की समितियां बने. इसमें हर राज्य से किसान को लिया जाए. किसानों को यह अधिकार मिले कि वे कृषि उपज का मूल्य निर्धारण कर सके. तब किसानों का भला होगा और किसान बिल पूर्ण रूप से सही मायनों में किसानों के लिए माना जाएगा.

पीएम मोदी ने की थी चंदौली के किसानों की तारीफ

गौरतलब है कि यह वही चंदौली के किसान हैं, जिनकी तारीफ प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों दौरे के दौरान की थी. साथ ही इनकी उपज ब्लैक राइस की भी जमकर सराहना की थी. ब्लैक राइस का जिक्र करते हुए इनकी उद्यमिता को आधार बनाते हुए नए कृषि कानून के विरोध में उतरे किसानों ने जवाब देने का प्रयास किया था, लेकिन चंदौली के किसान भी तय एसएमपी और सुरक्षा गारंटी संशोधनों के बिना इस कृषि कानून के समर्थन में नहीं हैं.

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