चंदौली: गुरुवार का दिन पूर्वांचल की जरायम की दुनिया में बदलते समयचक्र के लिहाज से बेहद खास रहा. यह संयोग है या समयचक्र जहां एक तरफ माफिया बृजेश सिंह को सभी मामलों में जमानत मिल गई है. दूसरी तरफ बृजेश सिंह के विरोधी बाहुबली विधायक रहे विजय मिश्रा के ठिकाने से ए के-47 समेत खतरनाक हथियारों का जखीरा बरामद हुआ है.
दरअसल, 15 जुलाई 2001 को मऊ सदर के तत्कालीन विधायक माफिया मुख्तार अंसारी अपने विधानसभा क्षेत्र जा रहे थे. आरोप है कि दोपहर साढ़े 12 बजे गाजीपुर जिले की मुहम्मदाबाद कोतवाली क्षेत्र के यूसुफपुर-कासिमाबाद मार्ग पर उसरी चट्टी पर उनके काफिले पर जानलेवा हमला किया गया था. इस हमले में मुख्तार के गनर सहित तीन लोग मारे गए थे और 9 लोग घायल हुए थे. वारदात के संबंध में मुख्तार ने बृजेश और त्रिभुवन सिंह को नामजद करते हुए 15 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने कोर्ट में चार आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था, जिनमें से दो की ट्रायल के दौरान मौत हो गई है. अब बृजेश सिंह को सभी मामलों में जमानत मिल गई है.
चौबेपुर थाना के धौरहरा गांव के मूल निवासी बृजेश सिंह के पिता रवींद्र नाथ सिंह उर्फ भुल्लन सिंह की हत्या जमीन विवाद की रंजिश में 27 अगस्त 1984 को की गई थी. पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह ने घर छोड़ दिया था. 28 मई 1985 को हरिहर सिंह की हत्या की. जिसके बाद चन्दौली के सिकरौरा नरसंहार मामले में बृजेश सिंह चर्चा में आ गए. 1986 में सिकरौरा तत्कालीन ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव, उनके चार बच्चों समेत सात लोगों की हत्या के मामले में बृजेश समेत 13 को आरोपी बनाया गया था. इसके बाद यूपी, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में बृजेश सिंह के खिलाफ 41 मुकदमे दर्ज हुए. 24 फरवरी 2008 को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बृजेश सिंह को ओडिशा के भुवनेश्वर से गिरफ्तार किया था. लेकिन एक के बाद एक सभी मुकदमों में बरी होते गए. 2016 एमएलसी चुनाव संख्या घटकर 11 रह गई. हाइकोर्ट के नए आदेश के उन्हें सभीमामलों में जमानत मिल चुकी है.
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बृजेश सिंह का परिवार वाराणसी और चंदौली जिले में अपने सियासी रसूख के लिए अलग पहचान रखता है. उनके बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह वाराणसी सीट (वाराणसी चन्दौली भदोही) से दो बार एमएलसी रह चुके हैं. बृजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह भी वाराणसी सीट से एमएलसी रही हैं. वर्ष 2016 में बृजेश वाराणसी सीट से एमएलसी चुने गए थे. 2022 में भी निर्दल एमएलसी का चुनाव जीते है. बृजेश के भतीजे सुशील सिंह चौथी बार चंदौली जिले से भाजपा के विधायक चुने गए हैं. बृजेश के एक अन्य भतीजे सुजीत सिंह उर्फ डॉक्टर वाराणसी के जिला पंचायत अध्यक्ष रहे.
वहीं, दूसरी ओर बाहुबली विधायक विजय मिश्रा के बेटे की निशानदेही पर उनके पेट्रोल पम्प से हथियारों का जखीरा बरामद हुआ है. इसमें AK 47 जैसे खरतनाक हथियार शामिल है, जिसमें एक AK 47, एक पिस्टल, चार AK 47 की मैग्जीन, 375 AK 47 के कारतूस ,9 MM पिस्टल के 9 कारतूस बरामद हुए है. फिलहाल पुलिस विष्णु मिश्र को रिमांड पर लेकर पूछताछ कर रही है. ऐसे में आगामी दिनों में कुछ और बड़ी कार्रवाई सामने आ सकती है.
पूर्व विधायक विजय मिश्रा की पहचान माफिया के तौर पर नहीं बल्कि बाहुबली नेता के रूप रही है. कमलापति त्रिपाठी के सानिध्य में भदोही से कांग्रेस ब्लॉक प्रमुख के रूप में तीन दशक पहले राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की, जिसके बाद मुलायम सिंह यादव का सानिध्य मिला. ज्ञानपुर सीट से 2002 , 2007 और 2012 में विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट से जीता. सपा सरकार में विजय मिश्रा की पत्नी रामलली मिश्रा भदोही से जिला पंचायत अध्यक्ष बनी. 2016 में मिर्जापुर से एमएलसी निर्वाचित हुई. अखिलेश यादव ने ' बाहुबली विरोधी ' छवि मजबूत करने के लिए 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले उनका टिकट काट दिया. जवाब में विजय मिश्रा निषाद पार्टी के टिकट पर लड़े और मोदी लहर के बावजूद चुनाव जीते. लेकिन इसके बाद से ही मुश्किलें बढ़ने लगी. विधायक रहते हुए उन्हें जेल जाना पड़ा. 2022 विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी से टिकट काटे जाने पर विजय मिश्रा ने प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा पर वह यह चुनाव बुरी तरह से हार गए और अपनी जमानत भी ना बचा सके. वह इस चुनाव में तीसरे पायदान पर रहे. फिलहाल विजय मिश्रा और उनके बेटे जेल में है. जबकि पूरा परिवार पुलिस शिकंजे में है.
बता दें कि विजय मिश्रा के ऊपर लगे कई आपराधिक मुकदमों में जुलाई 2010 में बसपा सरकार में नंद कुमार नंदी पर हुआ जानलेवा हमला सबसे प्रमुख है. 12 जुलाई 2010 को इलाहाबाद में नंदी की हत्या के इरादे के किए गए एक बम विस्फोट में उनके एक सुरक्षाकर्मी और इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर विजय प्रताप सिंह सहित दो लोग मारे गए थे. नंदी इस हमले में घायल तो हुए लेकिन उनकी जान बच गई. बाद में इस मामले में विजय मिश्रा नामजद रहे. फिर 2012 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया. इसके अलावा विजय मिश्रा को मुख्तार गैंग का सिपहसालार भी कहा जाता है. यहीं नहीं विजय मिश्रा को बृजेश सिंह सबसे बड़े दुश्मन बीकेडी के संरक्षक के तौर भी जाना जाता है.
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