चंदौलीः त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव नजदीक हैं. पंचायत चुनाव की सबसे बड़ी कुर्सी यानी जिला पंचायत अध्यक्ष पद के योद्धा बिसात बिछाने और तरकश के तीर चलाने में व्यस्त हैं. चंदौली जिले में भी शुक्रवार को सुगबुगाहट तेज हो गई. पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष छत्रबली सिंह अपनी पत्नी निवर्तमान अध्यक्ष सरिता सिंह के साथ बीजेपी दफ्तर पहुंचे और बीजेपी का झंडा गाड़ियों पर लगाने के लिए लिया. इसके बाद तमाम चर्चाओं का दौर जारी है. कुछ लोगों का कहना था कि वह भाजपा में शामिल हुए हैं, जबकि उनका कहना है कि हम तो ढाई साल पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं. आज तो सिर्फ झंडा लिया है.
बसपा, सपा के बाद भाजपा
बता दें कि आमतौर पर जिला पंचायत अध्यक्ष पद की कुर्सी पर उसी का कब्जा रहता है, जिसकी प्रदेश में सरकार होती है. छत्रबली सिंह का इतिहास है कि वह सत्तारूढ़ दल के चहेते बनकर जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर काबिज हो जाते हैं. पूर्व में भी बसपा, फिर सपा की सरकार में सत्ता के करीबी बनकर जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर कब्जा जमाया रहे.
पहली बार अध्यक्ष बनने में सुशील सिंह की अहम भूमिका
पंचायत चुनाव के महाबली कहे जाने वाले छत्रबली ने 2010 में बसपा के शासनकाल से राजनीतिक शुरुआत की. जिसमें उन्होंने पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी संभाली थी. बताया जाता है कि अध्यक्ष बनने में तत्कालीन विधायक सुशील सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही. जिसका जिक्र खुद छत्रबली भी करते रहे हैं.
सपा सरकार में पूर्व सांसद रामकिशुन यादव बने खेवनहार
वहीं 2012 में समाजवादी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनी तो छत्रबली की कुर्सी को खतरा पैदा हो गया. तत्कालीन सांसद रामकिशुन यादव ने नैया डूबने से बचाने में महती भूमिका निभाई और सपा से नजदीकी के साथ बसपा में बने रहे.
2015 में अध्यक्ष पद की लड़ाई हुई कठिन
साल 2015 में छत्रबली सिंह और उनकी पत्नी शहाबगंज से जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए. एक बार फिर अध्यक्ष पद चुनाव के लिए बसपा के कोटे से जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर अपना नामांकन किया था, जबकि पत्नी का निर्दल नामांकन कराया. लेकिन इस बार राह जरा मुश्किल थी क्योंकि इस बार इनके दोनों संरक्षक रहे बाहुबली विधायक सुशील की पत्नी किरण सिंह भाजपा और सत्तारूढ़ दल से सपा सांसद रहे रामकिशुन यादव के बेटे बबलू यादव मैदान में उतर गए.
पूर्व सांसद के बेटे का ही कटवा दिया टिकट
राजनीति के महाबली छत्रबली सिंह ने अपनी कूटनीतिक चाल से नाम वापसी के दिन पत्नी सरिता सिंह को समाजवादी पार्टी की सदस्यता दिलाते हुए प्रत्याशी घोषित करवा दिया और रामकिशुन यादव हाथ मलते रह गए. इसके बाद सांसद के बेटे की दावेदारी समाप्त हो गई और पर्चा उठाना पड़ा था. जिससे छत्रबली को सत्ता दल का साथ तो मिला लेकिन मुश्किलें कम नहीं हुई क्योंकि सामने बाहुबली विधायक सुशील सिंह की पत्नी थीं. उन्हें भाजपा के साथ ही छत्रबली के दलबदल से नाराज बसपा हाईकमान का भी साथ मिल गया.
बाहुबली विधायक सुशील सिंह की पत्नी को हराया
इसके बाद मतदान की तिथि को जोर आजमाइश का खेल खूब चला. जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा की प्रत्याशी विधायक सुशील सिंह की पत्नी किरन सिंह को कड़ी टक्कर में तीन मतों से मात देकर छत्रबली की पत्नी सरिता सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए. इस दौरान नोट फ़ॉर वोट मामले ने खूब सुर्खियां बटोरीं.
सत्ता बदलने के बाद भी अध्यक्ष की कुर्सी पर रहे काबिज
2017 में भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार बनी. एक बार फिर अविश्वास प्रस्ताव सहित कई उलटफेर के प्रयास किए गए, लेकिन अपनी पंचायत चुनाव के महाबली छत्रबली ने अपनी राजनीति काबिलियत को साबित करते हुए निर्विवाद रूप से अपना कार्यकाल पूरा किया. विधायक सुशील सिंह के न चाहते हुए भी वह भाजपा में अंदरखाने मजबूत होते गए, और आज की कहानी के लिए पृष्ठभूमि तैयार करते रहे.
अब भाजपा का झंडा थामा
एक बार फिर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव होने वाला है. ऐसे में शुक्रवार को निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष सरिता सिंह व छत्रबली सिंह भारतीय जनता पार्टी कार्यालय पहुंचे और जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए भाजपा का झंडा थाम लिया. इसे अध्यक्ष पद कब्जाने के नए पैंतरे के रूप में देखा जा रहा है.
ढाई साल पहले ली थी भाजपा की सदस्यता
इसको लेकर सियासी गलियारों में चर्चा है की निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष सरिता सिंह व पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष छत्रबलि सिंह ने गुपचुप तरीके से सदस्यता ग्रहण की है. हालांकि छत्रबली सिंह ने बताया कि भाजपा की सदस्यता लगभग ढाई वर्ष पूर्व हम लोगों द्वारा ग्रहण कर ली गई थी.
गाड़ी पर लगाने के लिए दिया गया झंडा
वहीं भाजपा जिला अध्यक्ष अभिमन्यु सिंह ने बताया की शुक्रवार को निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष सरिता सिंह व पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष छत्रबली सिंह ने जिला पंचायत चुनाव लड़ने के लिए भाजपा कार्यालय में प्रार्थना पत्र दाखिल किया है, उन्होंने ढाई साल पूर्व ही भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. इनकी गाड़ियों पर भाजपा का झंडा नहीं था, ऐसे में झंडा लेकर गाड़ी पर लगाया गया.