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रोज तिल तिल सूख रहा धान का कटोरा, सूखे की आहट से चिंतित किसान

चंदौली को धान का कटोरा कहा जाता है और यहां पर धान की बेहद अच्छी पैदावार होती है. अधिकांश किसान खेती बाड़ी पर ही निर्भर हैं. ऐसे में बारिश न होने की वजह से किसानों की चिंता बढ़ गई.

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चंदौली में सूखे का खतरा
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Published : Aug 18, 2022, 8:06 PM IST

चंदौली: धान का कटोरा कहा जाने वाला जिला धीरे-धीरे सूखता जा रहा है. कारण है, अभी तक यहां पर औसत से 64 फीसदी कम बारिश हुई है. जिससे किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें ला दी हैं. पिछले 15 दिन से बारिश न होने से किसान निजी संसाधनों से सिंचाई कर धान की फसल बचाने की जद्दोजहद में जुटे हैं. जिले में कुल 2 लाख 56 हजार किसान धान की खेती करते हैं. इस साल जिले में 11 लाख 36 हजार हेक्टेयर पर धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

चंदौली में सूखे का खतरा (स्पेशल रिपोर्ट)

अगस्त का तीसरा सप्ताह चल रहा है और अब तक खेतों में धान की रोपाई हो जानी चाहिए थी. लेकिन, पूर्वांचल के जिलों में ऐसा नहीं हो सका. निजी संसाधनों के सहारे सिंचाई कर रहे किसान अभी तक अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं. ताकि वह अपने खेतों में धान की रोपाई कर सकें. किसानों को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर बरसात नहीं होगी, तो धान की फसल कैसे होगी.

मुगलसराय इलाके की हालत सबसे खराब है. यहां न नहरों का जाल है और न ही ट्यूबवेल की सहूलियत है. लोग घर से निकलने वाली नाली के पानी से धान की फसल की सिंचाई कर रहे है. किसान रामनारायण का कहना है कि बारिश एकदम नहीं हो रही है. बिल्कुल सूखा की स्थिति हो गई है. हम लोग पूरी तरह से धान की खेती पर ही निर्भर हैं. धान की पैदावार अच्छी होती है तो जीवनयापन सही से हो जाता है. अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा लेते हैं. अगर जल्द बारिश नहीं हुई तो फसल पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा. भुखमरी जैसी स्थिति हो जाएगी.

यह भी पढ़ें: इधर बाढ़ ने डुबाया, उधर सूखे ने मारा, किस्मत को कोस रहा किसान बेचारा

वहीं शिवनारायण कहते हैं कि सामान्य स्थिति में अब तक रोपाई का काम पूर्ण हो जाना चाहिए था. लेकिन अब तक मात्र 60-70 प्रतिशत ही रोपाई हो सकी. अब धान की खेती को बचाना ही मुश्किल साबित हो रहा है. कई ऐसे किसान भी हैं, जो पंपिंग सेट चलाकर धान की नर्सरी बचाने की कवायद में जुटे हैं. लेकिन बारिश न होने की स्थिति उसे भी बचा पाना मुश्किल होगा. रोजाना फसल सूख रही है.

किसान दयाराम ने बताया कि उनके सामने फसलों को जिंदा रखने की चुनौती आ गई है. बारिश न होने की वजह से दिक्कतें बढ़ गई हैं. धान के खेतों में दरारें पड़ गई हैं, फसलें सूख रही है. फसल बचाने के लिए उन्हें पम्पिंग सेट से पानी चलवाना पड़ रहा है. इस पर काफी खर्च आ रहा है. सिंचाई के लिए लगे ट्यूबवेल की भी हालत खराब है. नालियों पर दबंगो द्वारा कब्जा कर पाट लिया गया है.

वहीं, मौसम विभाग के अनुसार जनपद में अब तक कुल 451.4 एमएम बारिश हो जानी चाहिए थी. लेकिन अभी तक सिर्फ 61.5 एमएम यानी 36 प्रतिशत ही बारिश हो पाई है. जोकि अबतक हुई औसत बारिश से 64 फीसदी कम है. हालांकि जिले में सिंचाई के लिए नहरे भी हैं. जिनके माध्यम से नहरों के नजदीकी इलाके वाले किसान धान की रोपाई कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: पीलीभीत को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग, जनप्रतिनिधियों ने CM योगी को लिखा पत्र

चंदौली: धान का कटोरा कहा जाने वाला जिला धीरे-धीरे सूखता जा रहा है. कारण है, अभी तक यहां पर औसत से 64 फीसदी कम बारिश हुई है. जिससे किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें ला दी हैं. पिछले 15 दिन से बारिश न होने से किसान निजी संसाधनों से सिंचाई कर धान की फसल बचाने की जद्दोजहद में जुटे हैं. जिले में कुल 2 लाख 56 हजार किसान धान की खेती करते हैं. इस साल जिले में 11 लाख 36 हजार हेक्टेयर पर धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

चंदौली में सूखे का खतरा (स्पेशल रिपोर्ट)

अगस्त का तीसरा सप्ताह चल रहा है और अब तक खेतों में धान की रोपाई हो जानी चाहिए थी. लेकिन, पूर्वांचल के जिलों में ऐसा नहीं हो सका. निजी संसाधनों के सहारे सिंचाई कर रहे किसान अभी तक अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं. ताकि वह अपने खेतों में धान की रोपाई कर सकें. किसानों को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर बरसात नहीं होगी, तो धान की फसल कैसे होगी.

मुगलसराय इलाके की हालत सबसे खराब है. यहां न नहरों का जाल है और न ही ट्यूबवेल की सहूलियत है. लोग घर से निकलने वाली नाली के पानी से धान की फसल की सिंचाई कर रहे है. किसान रामनारायण का कहना है कि बारिश एकदम नहीं हो रही है. बिल्कुल सूखा की स्थिति हो गई है. हम लोग पूरी तरह से धान की खेती पर ही निर्भर हैं. धान की पैदावार अच्छी होती है तो जीवनयापन सही से हो जाता है. अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा लेते हैं. अगर जल्द बारिश नहीं हुई तो फसल पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा. भुखमरी जैसी स्थिति हो जाएगी.

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वहीं शिवनारायण कहते हैं कि सामान्य स्थिति में अब तक रोपाई का काम पूर्ण हो जाना चाहिए था. लेकिन अब तक मात्र 60-70 प्रतिशत ही रोपाई हो सकी. अब धान की खेती को बचाना ही मुश्किल साबित हो रहा है. कई ऐसे किसान भी हैं, जो पंपिंग सेट चलाकर धान की नर्सरी बचाने की कवायद में जुटे हैं. लेकिन बारिश न होने की स्थिति उसे भी बचा पाना मुश्किल होगा. रोजाना फसल सूख रही है.

किसान दयाराम ने बताया कि उनके सामने फसलों को जिंदा रखने की चुनौती आ गई है. बारिश न होने की वजह से दिक्कतें बढ़ गई हैं. धान के खेतों में दरारें पड़ गई हैं, फसलें सूख रही है. फसल बचाने के लिए उन्हें पम्पिंग सेट से पानी चलवाना पड़ रहा है. इस पर काफी खर्च आ रहा है. सिंचाई के लिए लगे ट्यूबवेल की भी हालत खराब है. नालियों पर दबंगो द्वारा कब्जा कर पाट लिया गया है.

वहीं, मौसम विभाग के अनुसार जनपद में अब तक कुल 451.4 एमएम बारिश हो जानी चाहिए थी. लेकिन अभी तक सिर्फ 61.5 एमएम यानी 36 प्रतिशत ही बारिश हो पाई है. जोकि अबतक हुई औसत बारिश से 64 फीसदी कम है. हालांकि जिले में सिंचाई के लिए नहरे भी हैं. जिनके माध्यम से नहरों के नजदीकी इलाके वाले किसान धान की रोपाई कर रहे हैं.

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