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चंदौलीः करोड़ों खर्च पर बबुरी को नहीं मिला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिम्मेदार आखिर कौन

चंदौली जिले में सीएचसी, पीएचसी और ट्रॉमा सेंटर बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए, फिर आधे-अधूरे छोड़ दिए गए. ETV BHARAT आज से हर रोज इन अस्पतालों के हालात से आपको रूबरू कराएगा... इस कड़ी की शुरुआत करते हैं चंदौली के बबुरी सीएचसी से....

बबुरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र
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Published : Sep 16, 2019, 3:21 PM IST

चंदौलीः यूपी की सरकारें चाहे लाख दावे कर लें, सूबे की तबियत ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही है. सरकार में अखिलेश रहे हों या फिर मायावती या फिर अब योगी जी, अस्पतालों की हालत तो जस की तस बनी हुई है.

बहुप्रतीक्षित बबुरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण अधर में, सरकारें बेखबर.

ताजा मामला चंदौली का है, जहां चार स्वास्थ्य केंद्र बनने शुरू हुए, लोगों को कुछ आस बंधी, लेकिन सरकार बदली तो सपने भी बदल गए. ट्रॉमा सेंटर भी बना पर फिर आधा-अधूरा छोड़ दिया गया. जनता के लिए बनने वाले अस्पताल तो नहीं बन सके, लेकिन हां जनता के करोड़ों रुपये जरूर डकार लिए गए.

जिले के बबुरी क्षेत्र में आसपास किसी तरह का कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, जिसको देखते हुए साल 2014 में तत्कालीन सांसद रामकिशुन के प्रयासों से अखिलेश यादव ने इसका शिलान्यास किया था. इसके लिए 3 करोड़ 73 लाख रुपये आवंटित भी कर दिया, लेकिन 2017 में पूरी धनराशि खत्म होने के बाद भी अस्पताल नहीं बन सका.

जब स्वास्थ्य विभाग ने तकनीकी टीम से भवन की जांच कराई तो निर्माण मानक के अनुरूप नहीं मिला. इतना ही नहीं गुणवत्ता प्रबंधन में भी तमाम खामियां पाई गईं. स्वास्थ्य विभाग ने इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से कर जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी. साथ ही राजकीय निर्माण निगम के अभियंताओं के खिलाफ केस भी दर्ज कराया है, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी अब तक ईओडब्ल्यू की ओर से अभी कोई जांच रिपोर्ट नहीं मिली है.

स्वास्थ्य महकमा जांच की दुहाई दे रहा है. यहां के जनप्रतिनिधि और सरकार मूकदर्शक बने हुए हैं और विपक्ष अपनी सरकार की योजनाओं को रोके जाने का आरोप लगाते हुए राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है, लेकिन इन सब के बीच जनता पिस रही है, जो बेहतर इलाज से महरूम है.

चंदौलीः यूपी की सरकारें चाहे लाख दावे कर लें, सूबे की तबियत ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही है. सरकार में अखिलेश रहे हों या फिर मायावती या फिर अब योगी जी, अस्पतालों की हालत तो जस की तस बनी हुई है.

बहुप्रतीक्षित बबुरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण अधर में, सरकारें बेखबर.

ताजा मामला चंदौली का है, जहां चार स्वास्थ्य केंद्र बनने शुरू हुए, लोगों को कुछ आस बंधी, लेकिन सरकार बदली तो सपने भी बदल गए. ट्रॉमा सेंटर भी बना पर फिर आधा-अधूरा छोड़ दिया गया. जनता के लिए बनने वाले अस्पताल तो नहीं बन सके, लेकिन हां जनता के करोड़ों रुपये जरूर डकार लिए गए.

जिले के बबुरी क्षेत्र में आसपास किसी तरह का कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, जिसको देखते हुए साल 2014 में तत्कालीन सांसद रामकिशुन के प्रयासों से अखिलेश यादव ने इसका शिलान्यास किया था. इसके लिए 3 करोड़ 73 लाख रुपये आवंटित भी कर दिया, लेकिन 2017 में पूरी धनराशि खत्म होने के बाद भी अस्पताल नहीं बन सका.

जब स्वास्थ्य विभाग ने तकनीकी टीम से भवन की जांच कराई तो निर्माण मानक के अनुरूप नहीं मिला. इतना ही नहीं गुणवत्ता प्रबंधन में भी तमाम खामियां पाई गईं. स्वास्थ्य विभाग ने इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से कर जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी. साथ ही राजकीय निर्माण निगम के अभियंताओं के खिलाफ केस भी दर्ज कराया है, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी अब तक ईओडब्ल्यू की ओर से अभी कोई जांच रिपोर्ट नहीं मिली है.

स्वास्थ्य महकमा जांच की दुहाई दे रहा है. यहां के जनप्रतिनिधि और सरकार मूकदर्शक बने हुए हैं और विपक्ष अपनी सरकार की योजनाओं को रोके जाने का आरोप लगाते हुए राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है, लेकिन इन सब के बीच जनता पिस रही है, जो बेहतर इलाज से महरूम है.

Intro:चन्दौली - केंद्र की मोदी और प्रदेश की योगी सरकार आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने की चाहे लाख दावे कर ले लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है. जिसकी हकीकत चन्दौली में बेपटरी हो चुकी स्वास्थ्य सेवाएं खुद बयां कर रही है. केंद्रीय मंत्री डॉ महेंद्र नाथ पांडेय के संसदीय क्षेत्र में करीब आधे दर्जन स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण बंद पड़े. जो है उन्हें भी सरकार सही तरीके से संचालित नहीं कर पा रही है. जिससे जिले का सारा भार आधी अधूरी सुविधाओं से परिपूर्ण जिला अस्पताल का टिकता है. गंभीर व असाध्य रोगों के लिए जिले के लोगों को आज भी वाराणसी पर ही निर्भर रहना पड़ता है. जिले का ये हाल तब है जब चंदौली को एस्पेरेशनल डिस्ट्रिक्ट (अकांक्षात्मक जिला)में चयनित है. और स्वास्थ्य उसके प्रमुख इंडिकेटर में शामिल है.बावजूद इसके नए अस्पतालों निर्माण पूरी तरह ठप पड़े है. या यूं कहें कि चन्दौली में स्वास्थ्य महकमा खुद बीमार है. जिसे तत्काल इलाज की जरूरत है. पेश है एक रिपोर्ट....

Body:वॉक थ्रू

वीओ 1 - जिले में चार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण अधर में लटका पड़ा है. जिसमें बबुरी, नियामताबाद, चहनियां और शहाबगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शामिल है. ये सभी प्रोजेक्ट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए और इनके लिए आवंटित धन खर्च हो गए लेकिन भवन का निर्माण नहीं हो सका. अब आर्थिक अपराध शाखा जांच कर रह है.

बाइट - आरके मिश्रा (सीएमओ चन्दौली)

वीओ 2 - बबुरी क्षेत्र में आसपास किसी तरह का कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. जिसको देखते हुए साल 2014 में तत्कालीन सांसद रामकिशुन के प्रयासों से अखिलेश यादव ने इसका शिलान्यास किया था और इसके 3 करोड़ 73 लाख रुपये आवंटित भी कर दिया. लेकिन 2017 में पूरी धनराशि खत्म होने के बाद भी अस्पताल नहीं बन सका. इस दौरान जब स्वास्थ्य विभाग ने तकनीकी टीम से भवन की जांच कराई निर्माण मानक के अनुरूप नहीं मिला और गुणवत्ता प्रबंधन में भी खामी पाई गई. स्वास्थ विभाग ने इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से की. जांच के दौरान निर्माण कार्य में लापरवाही और मानकों की अनदेखी पाए जाने पर स्वास्थ्य विभाग ने इसकी जांच ईओडब्लू को सौंप दी. साथ ही राजकीय निर्माण निगम के अभियंताओं के खिलाफ केस भी दर्ज कराया है. लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी अबतक ईओडब्लू की ओर से अभी कोई जांच रिपोर्ट नहीं मिली है. जिससे बबुरी सामुदायिक स्वास्थ्य का निर्माण कार्य बंद पड़ा.जिससे स्थानीय लोग बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम है. इस स्वास्थ्य केंद्र के बनने से न सिर्फ चन्दौली के इस क्षेत्र के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती बल्कि पड़ोसी जनपद मिर्जापुर के भी एक बड़े भाग को इसका लाभ मिलता है.लेकिन सालों से अधर में लटकी परियोजना के चलते लोग वाराणसी पर निर्भर है. योगी सरकार के तीन साल बीत जाने के बाद भी इसके निर्माण में कोई प्रगति नहीं हुई. लोग हतास है निरास है. यहीं नहीं विपक्ष को भी बोलने का मौका मिल गया.

बाइट - कालिदास स्थानीय
बाइट - कल्लू स्थानीय
बाइट - रामकिशुन यादव (पूर्व सांसद)
पीटीसीConclusion:कमलेश गिरी
चन्दौली
9452845730

यह विशेष खबर इनपुट है.... जो कि व्रेप के द्वारा भेजी जा रही है...
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