ETV Bharat / state

चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष चुनावः धनबल-बाहुबल को फिर लगा आरक्षण का झटका

पिछले एक दशक से चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर धन का प्रभुत्व बना हुआ था. इसके अलावा पूर्वांचल के कई बाहुबलियों की निगाहें चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर टिकी थी. आरक्षण सूची के पूर्व ही कई तरह के चुनावी समीकरण की रूपरेखा तैयार कर उसे जमीन पर उतारने की तैयारियां मुकम्मल कर ली गई थीं, लेकिन इस बार सीट आरक्षित होने से सभी के इरादों पर पानी फिर गया.

चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष पद आरक्षित
चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष पद आरक्षित
author img

By

Published : Mar 20, 2021, 7:10 AM IST

चंदौलीः कोर्ट के आदेश के बाद जनपद में जिला पंचायत अध्यक्ष की जंग के बीच आरक्षण की सूची सरकारी फाइल से निकलकर सार्वजनिक पटल पर पहुंची तो कई नए समीकरण की नींव तो नहीं पड़ी, लेकिन एक बार फिर राजनीतिक हलचल जरूर तेज हो गई. इस बार भी जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पिछड़ा वर्ग के खाते में चली गई. हालांकि अभी भी दावे व आपत्तियों के लिए वक्त है. बावजूद इसके अभी कहीं खुशी कहीं गम का माहौल देखने को मिल रहा है.

पिछला एक दशक धनबल का रहा

पिछले एक दशक से चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर धन का प्रभुत्व बना हुआ था. इसके अलावा पूर्वांचल के कई बाहुबलियों की निगाहें चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर टिकी थी. आरक्षण सूची के पूर्व ही कई तरह के चुनावी समीकरण की रूपरेखा तैयार कर उसे जमीन पर उतारने की तैयारियां मुकम्मल कर ली गई थीं. कई बड़े दिग्गजों की जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने-लड़ाने की चर्चाएं थीं. ऐसे में लोगों को उम्मीद थी कि चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अनारक्षित रहने वाली है. सत्ता पक्ष के कई दिग्गज चुनाव लड़ने की जिज्ञासा व अपनी रूचि को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जाहिर कर चुके थे.

अरमान धराशाई, राजनीतिक पुरोधाओं की महत्वाकांक्षा को बल

कोर्ट के फैसले के बाद आरक्षण सूची जारी होते ही कई दिग्गजों, धनबल व बाहुबल का दम रखने वालों के अरमान एक बार फिर आसमां से जमीन पर आ गए. हालांकि इस आरक्षण सूची ने कुछ ऐसे राजनीतिक पुरोधाओं की भी महत्वाकांक्षाओं को जन्म दे दिया, जो अब तक जिला पंचायत के चुनाव से पूरी तरह दूरी बनाए हुए थे और पिछले चुनावों में धनबल के आगे शिकस्त खानी पड़ी थी. पूरे दिन गांव-गिरांव के छुट भइया नेताओं के फोन घनघनाते रहे हैं. एक तरफ जहां बना-बनाया चुनावी सेटअप शोपीस बनकर गया. वहीं उसकी जगह लेने के लिए नए दावेदारों ने अपनी जमीन तलाशनी शुरू कर दी है.

दावे-आपत्ति अभी बाकी

फिलहाल अभी जिलों से दावे-आपत्तियां लिए जाएंगे. बावजूद इसके चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पिछड़ा वर्ग के लिए सुरक्षित मानी जा रही है. ऐसे में जब तक अंतिम सूची का प्रकाशन न हो जाए कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. कयासों का दौर अभी भी जारी है.

सपा ने तीन बार फहराया परचम

गौरतलब है कि चन्दौली के 1998 में जिला बनने के बाद प्रथम जिला पंचायत की अध्यक्ष सुषमा पटेल थीं. उस वक्त चंदौली वाराणसी में शामिल था, लेकिन अलग जिला बनने के बाद भी वो अध्यक्ष बनी रहीं. इसके बाद सन 2000 में पूर्णकालिक पहली जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में समाजवादी पार्टी की पूनम सोनकर चुनी गईं. इसके बाद पहली बार 2005 में सामान्य सीट पर सपा से ही अमलावती यादव जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं. वहीं दूसरी बार सामान्य सीट पर 2010 में बसपा से छत्रबली सिंह काबिज हुए. वहीं तीसरी बार सामान्य सीट होने पर छत्रबली ने पाला बदलते हुए 2015 में एक बार फिर समाजवादी पार्टी दामन थामा और पत्नी सरिता सिंह को काबिज करा दिया.

चंदौलीः कोर्ट के आदेश के बाद जनपद में जिला पंचायत अध्यक्ष की जंग के बीच आरक्षण की सूची सरकारी फाइल से निकलकर सार्वजनिक पटल पर पहुंची तो कई नए समीकरण की नींव तो नहीं पड़ी, लेकिन एक बार फिर राजनीतिक हलचल जरूर तेज हो गई. इस बार भी जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पिछड़ा वर्ग के खाते में चली गई. हालांकि अभी भी दावे व आपत्तियों के लिए वक्त है. बावजूद इसके अभी कहीं खुशी कहीं गम का माहौल देखने को मिल रहा है.

पिछला एक दशक धनबल का रहा

पिछले एक दशक से चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर धन का प्रभुत्व बना हुआ था. इसके अलावा पूर्वांचल के कई बाहुबलियों की निगाहें चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर टिकी थी. आरक्षण सूची के पूर्व ही कई तरह के चुनावी समीकरण की रूपरेखा तैयार कर उसे जमीन पर उतारने की तैयारियां मुकम्मल कर ली गई थीं. कई बड़े दिग्गजों की जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने-लड़ाने की चर्चाएं थीं. ऐसे में लोगों को उम्मीद थी कि चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अनारक्षित रहने वाली है. सत्ता पक्ष के कई दिग्गज चुनाव लड़ने की जिज्ञासा व अपनी रूचि को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जाहिर कर चुके थे.

अरमान धराशाई, राजनीतिक पुरोधाओं की महत्वाकांक्षा को बल

कोर्ट के फैसले के बाद आरक्षण सूची जारी होते ही कई दिग्गजों, धनबल व बाहुबल का दम रखने वालों के अरमान एक बार फिर आसमां से जमीन पर आ गए. हालांकि इस आरक्षण सूची ने कुछ ऐसे राजनीतिक पुरोधाओं की भी महत्वाकांक्षाओं को जन्म दे दिया, जो अब तक जिला पंचायत के चुनाव से पूरी तरह दूरी बनाए हुए थे और पिछले चुनावों में धनबल के आगे शिकस्त खानी पड़ी थी. पूरे दिन गांव-गिरांव के छुट भइया नेताओं के फोन घनघनाते रहे हैं. एक तरफ जहां बना-बनाया चुनावी सेटअप शोपीस बनकर गया. वहीं उसकी जगह लेने के लिए नए दावेदारों ने अपनी जमीन तलाशनी शुरू कर दी है.

दावे-आपत्ति अभी बाकी

फिलहाल अभी जिलों से दावे-आपत्तियां लिए जाएंगे. बावजूद इसके चंदौली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पिछड़ा वर्ग के लिए सुरक्षित मानी जा रही है. ऐसे में जब तक अंतिम सूची का प्रकाशन न हो जाए कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. कयासों का दौर अभी भी जारी है.

सपा ने तीन बार फहराया परचम

गौरतलब है कि चन्दौली के 1998 में जिला बनने के बाद प्रथम जिला पंचायत की अध्यक्ष सुषमा पटेल थीं. उस वक्त चंदौली वाराणसी में शामिल था, लेकिन अलग जिला बनने के बाद भी वो अध्यक्ष बनी रहीं. इसके बाद सन 2000 में पूर्णकालिक पहली जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में समाजवादी पार्टी की पूनम सोनकर चुनी गईं. इसके बाद पहली बार 2005 में सामान्य सीट पर सपा से ही अमलावती यादव जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं. वहीं दूसरी बार सामान्य सीट पर 2010 में बसपा से छत्रबली सिंह काबिज हुए. वहीं तीसरी बार सामान्य सीट होने पर छत्रबली ने पाला बदलते हुए 2015 में एक बार फिर समाजवादी पार्टी दामन थामा और पत्नी सरिता सिंह को काबिज करा दिया.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.