चन्दौली: धान का कटोरा कहा जाने वाला चंदौली, जहां किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से ब्लैक राइस की खेती एक अभिनव प्रयोग के तौर पर शुरू की गई थी. लेकिन देव दीपावली के अवसर पर काशी दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन के दौरान चंदौली के ब्लैक राइस की खेती का जिक्र कर, उसे राष्ट्रीय पटल पर पहचान दे दी.
मेनका गांधी की पहल पर हुई थी शुरुआत
दरअसल मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नीति आयोग ने देश के अति पिछड़े जिलों को अकांक्षात्मक जिले के रूप में चयनित किया था. इसी के तहत तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की पहल पर लगभग तीन वर्ष पहले जिले में मणिपुर की चाक हाओ (ब्लैक राइस) के बीज लाकर चंदौली जिले में खेती शुरू कराई गई. प्रशासन की पहल रंग लाई और सेहत के लिए अत्यधिक फायदेमंद काला चावल की पैदावार भी अच्छी रही.
10 उन्नतशील किसानों ने उगाई थी ब्लैक राइस
नीति आयोग की बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि यहां की मिट्टी ब्लैक राइस की खेती के लिए अनुकूल है. ऐसे में इसकी खेती कराई जानी चाहिए. डीएम नवनीत सिंह चहल और तत्कालीन उप कृषि निदेशक आरके सिंह को यह प्रस्ताव अच्छा लगा. उन्होंने अभिनव प्रयोग के तौर पर 2018 में मणिपुर से 10 किलो चाक हाओ के बीज लाकर यहां 10 उन्नतशील किसानों को खेती के लिए दिया गया. परिणाम बेहतर मिला और किसानों की आय बढ़ाने के लिए शुरू किए गए इस प्रयोग का फायदा जिले के किसानों को मिल रहा है.
इंटरनेशनल राइस रिसर्च सेंटर के मानकों पर खरी उतरी
ब्लैक राइस की पहली क्रॉप कटिंग के दौरान ब्लैक राइस की गुणवत्ता मापने के लिए इंटरनेशनल राइस रिसर्च सेंटर की टीम भी चंदौली पहुंची, जहां टीम ने भी जांच के बाद ब्लैक राइस की उपज को सराहा. इसकी पैदावार 34 कुंतल प्रति हेक्टेयर मिली. तो वहीं वहीं लैब टेस्टिंग में भी सभी औषधीय गुण भी मानक के अनुरूप मिले.
विश्व पटल पर ब्लैक राइस को मिली नई पहचान
2018 में उत्पादित सभी ब्लैक राइस का इस्तेमाल अगले साल बीज के रूप में इस्तेमाल किया गया. 2019 की खरीफ फसल के दौरान ढाई सौ किसानों ने इसकी खेती की, जिससे ब्लैक राइस का उत्पादन एक बड़ा भंडारण हो गया, जिसके बाद जिला प्रशासन ने इसकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग को लेकर भी कई तरह के प्रयास किए. एक समिति के गठन भी किया. जिला प्रशासन के तमाम प्रयासों के बाद किसानों को काला चावल न सिर्फ अच्छा दाम मिला, बल्कि पूरे देश और दुनिया में एक नई पहचान भी मिली.
ब्लैक राइस विदेशों में मचा रहा धूम
किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को लेकर शुरू किए गए इस अभिनव पहल से किसानों की आय में दो ही नहीं, बल्कि कई गुना मुनाफा हुआ. यहां तक कि जिले के काले चावल की डिमांड ऑस्ट्रेलिया और सऊदी अरब समेत दुनिया के कई कोनों से हो रही है, जिससे किसान लगातार इसकी खेती के लिए लालायित हो रहे हैं, और अब दोगुने उत्साह से खेती करने की बात कह रहे हैं.
प्रधानमंत्री ने चन्दौली के किसानों की तारीफ की
चंदौली के किसानों की इस प्रयोग को प्रधानमंत्री मोदी ने नए कृषि कानूनों के समर्थन से जोड़ दिया है. किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाओं को गिनाते हुए कहा कि ब्लैक राइस को विदेशी बाजार में मिल रहा है, और ब्लैक राइस कि इस पैदावार से किसानों की आय भी बढ़ रही है.
प्रधानमंत्री ने चन्दौली के किसानों का दिया था उदाहरण
पीएम मोदी ने काशी दौरे पर अपने संबोधन में कहा कि सरकार के प्रयासों और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर से किसानों को कितना लाभ हो रहा है. इसका एक बेहतरीन उदाहरण चंदौली का काला चावल यानी ब्लैक राइस है. यह चावल चंदौली के किसानों को घरों में समृद्धि लेकर आ रहा है. इस बार जिले के 1000 किसान काला चावल की खेती कर रहे हैं, जिसे अगले वर्ष बढ़ाकर दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है.
ब्लैक राइस को मिला विशेष उत्पाद का दर्जा
चंदौली प्रशासन की पहल पर काले चावल को वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट की तर्ज पर सभी सहूलियत मिल रही है. साथ ही ब्लैक राइस को विशेष उत्पाद की मान्यता मिली है. चंदौली कृषि उत्पाद में यह मार्क दिलाने वाला प्रदेश का इकलौता जिला है. बीते वर्ष ढाई सौ क्विंटल ब्लैक राइस का निर्यात ऑस्ट्रेलिया समेत सऊदी अरब, यूएई में किया गया. चालू सत्र में एक हजार किसानों ने पांच सौ हेक्टेयर में इसकी खेती की है.
मणिपुर से लाया गया काला चावल सेहत के लिए बेहद खास है और औषधीय गुणों से परिपूर्ण है. चंदौली से शुरू हुई ब्लैक राइस की खेती अब गाज़ीपुर, सोनभद्र, मिर्जापुर, बलिया, मऊ,आजमगढ़ तक पहुंच चुकी है. यह डायबिटीज मरीजों के लिए बेहद सुपाच्य चावल है. वही एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर है. कैंसर, शुगर ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के लिए यह रामबाण है. जिले में धान की अच्छी पैदावार होती है इससे काला चावल की पैदावार भी अच्छी हो रही है.
जैविक तरीके उगाया जाता है ब्लैक राइस
ब्लैक राइस की पैदावार यहां की प्रचलित धान जीरा- 32 के बराबर है, जबकि ब्लैक राइस की कीमत मार्केट में कहीं ज्यादा है. यही नहीं इसकी खेती में लागत भी कम है. ब्लैक राइस में किसी भी तरह के कीटनाशक दवा या खाद का प्रयोग नहीं किया जाता. इसमें सिर्फ जैविक खाद कंपोस्ट आदि का ही प्रयोग किया जाता है,जिससे भूमि की उत्पादकता भी बनी रहेगी और औषधि गुण भी प्रभावित नहीं होंगे. इसके उत्पादन से किसानों में की आय में 4 से 5 गुना की वृद्धि हो रही है, जबकि यहां की दूसरी प्रचलित धान नाटी मंसूरी के उत्पादन 42 कुंतल प्रति हेक्टेयर से कुछ ही कम है.
एमेजॉन पर भी रहेगा उपलब्ध
ब्लैक राइस की सफलता से उत्साहित जिला प्रशासन और कृषि विभाग चन्दौली काला चावल कृषक समिति की तरफ ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए इसे एमेजॉन पर अंकित कराया जा रहा है, जिससे चन्दौली ब्लैक राइस की उपलब्धता लोगों तक आसान हो सके.