मुरादाबाद: जिले के पाकबाड़ा नगर पंचायत के आसपास स्थित गांवों में महिलाओं द्वारा चूड़ियों पर नग लगाने और सजावट करने का काम किया जाता है. कच्चा माल फिरोजाबाद और दिल्ली से आता है. यहां पर महिलाएं इनमें नग लगाने और सजावट करने का काम करती हैं. घर की महिलाएं 3-4 घंटे काम करके 50 से 100 रुपये कमा लेती हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए उदाहरण सरीखा है.
चूड़ियों की खनक में लग रही आमदनी की नग
कोरोना काल में जब शहर में काम करने वाले पुरुषों की नौकरी गई, तो घरों में रहने वाली महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने चूड़ियों की खनक को अपने रोजगार का जरिया बनाया. आज मुरादाबाद और आसपास के जिलों में बिकने वाली चूड़ियों की खनक में जिले के कुंदरकी ब्लाक के भांडली गांव की महिलाओं की मेहनत छिपी हुई है. घर में रहने वाली औरतें व युवतियां आज चूड़ियों में आमदनी के नग लगा रही हैं. इस काम से न केवल बुरे हालात में परिवार की मदद हो रही है, बल्कि घर के काम के बाद जो समय बचता है, उसका सदुपयोग भी हो रहा है.
आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए उदाहरण है गांव
पाकबाड़ा नगर पंचायत से तकरीबन 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुंदरकी ब्लाक के भांडली गांव की आबादी तकरीबन 15,000 है. गांव के लोग खेती किसानी के अलावा मेहनत मजदूरी पर निर्भर है. कोरोना वायरस महामारी का जब संक्रमण काल शुरू हुआ, तो खेती-किसानी तो चलती रही. लेकिन मेहनत मजदूरी रुक गई. परिवार का घर चलाना लोगों के लिए दूभर होने लगा. इस मुश्किल घड़ी में चूड़ियों में नग लगाने और सजावट करने का सहारा मिला. बुरे हालात में गांव की तकरीबन ढाई सौ परिवारों की युवतियों और महिलाओं ने घर की आमदनी बढ़ाने के लिए मेहनत शुरू की. इस रोजगार से एक परिवार 1 दिन में तकरीबन 500 से 700 रुपये की आमदनी कर लेता है. इस काम से न केवल घर की आर्थिक स्थिति सही हो रही है, बल्कि महिलाओं में स्वावलंबन का भरोसा भी जगा है. पीएम मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के लिए आज यह गांव उदाहरण सरीखा है.
क्या कहती हैं महिलाएं
अपनी इस पहल के बारे में बात करते हुए महिलाएं बताती हैं कि गांव के घर-घर में चूड़ियों में नग लगाने और सजावट करने का काम होता है. उन्हें घर में ही बैठे बिठाए रोजगार मिल जाता है और परिवार के जब सभी खाली सदस्य काम करते हैं, तो अच्छी कमाई भी होती है. इससे हमें स्वावलंबन का बल मिल रहा है.
ऐसे होता है ये काम
वहीं, चूड़ी कारोबारी जमील अहमद बताते हैं कि फिरोजाबाद और दिल्ली से कच्चा माल लाया जाता है. सजावटी सामान जहां दिल्ली से आता है. वही, बिना सजावट की हुई चूड़ियां फिरोजाबाद से मंगवाई जाती है. इसके बाद हमारे यहां महिलाएं या उनके परिवार का कोई सदस्य आता है और वह रजिस्टर पर अपना नाम नोट करवा कर कच्चा माल ले जाता है. इसके बाद जब माल पूरी तरह से तैयार हो जाता है, तो यहां पर डिब्बों में पैक करके उन्हें मार्केट में भेज दिया जाता है.
वह बताते हैं कि एक डिब्बा चूड़ी बनाने में तकरीबन आधे घंटे का समय लगता है, जिससे महिलाओं को 8 रुपए मिल जाते हैं. अगर किसी परिवार के द्वारा दिन भर में 10 डिब्बा माल यानी 240 चूड़ियां तैयार कर ली जाती है, तो उसे आसानी से 80-100 रुपये की आमदनी होती है.