मुरादाबाद: जनपद की देहात विधानसभा 27 में पहला चुनाव 1957 में हुआ था. पिछले परिसीमन के बाद रामगंगा नदी के किनारे की बहुत बड़ी आबादी देहात विधानसभा में शामिल की गई. यह विधानसभा मुस्लिम बाहुल्य सीट है. हिन्दू में वैश्य, सैनी और ठाकुर वोटर अधिक है. इस विधानसभा पर बीजेपी पहली और आखिरी बार 1993 मे जीत हासिल की थी. देहात विधानसभा पर अब तक 16 बार विधानसभा चुनाव हुए. जिसमें से 4 बार ही हिन्दू प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है. वहीं, 12 बार मुस्लिम प्रत्यशियों का कब्जा रहा है.
मुरादाबाद की देहात विधानसभा 27 में पिछली बार हुए परिसीमन के बाद इस विधानसभा में रामगंगा नदी के किनारे शहर के बहुत बड़े हिस्से को देहात विधानसभा में शामिल किया गया. देहात विधानसभा 27 में कुल वोटर 3 लाख 45 हजार 451 है. जिसमें 1 लाख 88 हजार 650 वोटर पुरुष, 1 लाख 56 हजार 788 वोटर महिला हैं. इस विधानसभा पर 55 प्रतिशत मुस्लिम वोटर और 45 प्रतिशत हिन्दू वोटर है. मुस्लिम वोटर में अंसारी बिरादरी सबसे अधिक है. 1957 से इस विधानसभा पर 4 बार निर्दलीय, 2 बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, 2 बार कांग्रेस, 1 बार लोकदल, 2 बार जनता दल, 1 बार भाजपा, 4 बार सपा पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है.
देहात विधानसभा-27 पर एक ही परिवार का रहा 6 बार कब्जा
मुरादाबाद की देहात विधानसभा-27 पर 1985 में पहली बार लोकदल से रिजवान-उल-हक ने लोकदल पार्टी से चुनाव जीता था. उसके बाद 1989 और 1991 में जनता दल से चुनाव में हिट दर्ज की थी. 1993 में राममंदिर लहर में रिजवान चुनाव हार गए. रिजवान-उल-हक की बस और जीप की भिड़ंत में उनकी मौत हो गई थी. जिसके बाद उनकी विरासत को उनके भाई शमीम-उल-हक ने संभाला. 2002 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीत विधायक बने. 2007 में रिजवान के बेटे उस्मान-उल-हक ने सपा से चुनाव लड़े और विधायक बने. 2007 में सबसे कम उम्र में विधानसभा में पहुंचने वाले विधायक रहे. कुछ दिन बाद एक हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा में जेल जाना पड़ा. 2012 में एक बार फिर से शमीम-उल-हक सपा से विधायक चुने गए.
1993 के बाद से जीत का मुंह नहीं देख पाई बीजेपी
1992 में बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने के बाद पूरे प्रदेश में राम नाम की लहर चल पड़ी. 1993 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो मुरादाबाद देहात विधानसभा-27 पर बीजेपी के प्रत्याशी सुरेश प्रताप सिंह ने जीत हासिल की. देहात विधानसभा पर हिन्दू वोटर में वैश्य, सैनी और ठाकुर वोटरों की संख्या अधिक है, लेकिन 1993 के बावजूद प्रदेश में 5 बार विधानसभा चुनाव हुए लेकिन भाजपा यहां जीत का मुंह नहीं देख पाई.
बीजेपी की लहर में सपा के हाजी इकराम कुरैशी ने दर्ज की जीत
2002 के बाद सपा में शामिल हुए हाजी इकराम कुरैशी 2012 में सपा के जिलाध्यक्ष की कमान संभाली. उसके बाद हाजी इकराम कुरैशी को राज्य दर्जा प्राप्त मंत्री भी बनाया गया. 2017 में जहां पूरे प्रदेश में बीजेपी की लहर चल रही थी. उस समय देहात सीट से सपा से चुनाव जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे थे. हाजी इकराम कुरैशी मुरादाबाद शहर विधानसभा में उनका निवास है.
इस विधानसभा की समस्याएं
देहात विधानसभा-27 का क्षेत्र रामगंगा नदी और ढेला नदी से लगता है. जिसकी वजह से बारिश के महीने में आने वाली बाढ़ की वजह से उत्तराखंड को जोड़ने वाली सड़कों का बुरा हाल हो जाता है. गांव देहात का शहर की सड़कों से संपर्क टूट जाता है. दूसरी सबसे बड़ी समस्या मुरादाबाद काशीपुर मार्ग पर भोजपुर क्षेत्र में ढेला नदी और बना पुल है.
बता दें, कितनी सरकारे आईं और चली गई, लेकिन आज भी यह पुल वनवे ही है. जब तक एक तरफ के वाहन पूरी तरह से नहीं निकल जाते तब तक दूसरी तरफ जाने वाली एक मोटरसाइकिल तक नहीं निकल सकती. जिसकी वजह से घंटों लंबा जाम लगा रहता है. इस पुल का चौड़ीकरण के लिए आवाज तो हर किसी ने उठाई, लेकिन कभी किसी सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.
देहात विधानसभा-27 में ई कचरे का सबसे बड़ा कारोबार
मुरादाबाद जनपद की देहात विधानसभा-27 में सबसे ज्यादा आबादी गांव में निवास करती है. ज्यादा तर लोग यहां मजदूरी किसानी कर अपना पेट पालते हैं, लेकिन भोजपुर और पीपल साना में सबसे ज्यादा ई कचरे के कारोबार से लोग जुड़े हुए हैं. ई कचरा जलाने की वजह से भोजपुर की खेती वाली जमीन उपजाऊ नहीं रही. 5 साल पहले ई कचरा जलाने की वजह से होने वाले प्रदूषण से रहस्मयी बुखार ने लोगों को अपनी चपेट में ले लिया था. जिसकी वजह बहुत से लोगों की मौत हो गई थी. ई-कचरे को जलाने का पूरा काम गैर कानूनी है और पुलिस की मिली भगत से चलता है. जब कोई शिकायत या अनहोनी होने के बाद ही पुलिस की सख्ती दिखाई देती है.
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