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तीन साल से डॉक्टरों की राह ताक रहा मुरादाबाद का ये अस्पताल

कोरोना महामारी को लेकर शासन और प्रशासन कई तरीके के इंतजाम कर रहे हैं. वहीं यूपी के मुरादाबाद जिले के ग्रामीण इलाकों में बने स्वास्थ्य केंद्रों की हालत खस्ता है. आलम यह है कि अस्पताल में डॉक्टरों की जगह जानवर तो वहीं बेड की जगह उपले नजर आते हैं.

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Published : Jun 7, 2020, 3:15 PM IST

condition of health centers
स्वास्थ्य केंद्रों की खस्ता हालत

मुरादाबाद: कोरोना महामारी के चलते भले ही केंद्र और राज्य की सरकारें स्वास्थ सेवाओं में अच्छी सुविधाएं देने की बात कर रही हों. मगर जनपद के ग्रामीण इलाकों में बने स्वास्थ्य केंद्रों की हालत बद से बदतर है. इन स्वास्थ्य केंद्रों में जानवर बंधे रहते हैं और कमरों में उपले रखे हुए हैं. साफ-सफाई का आलम यह है कि चारो तरफ बड़ी-बड़ी झाड़ियां खड़ी हैं. डॉक्टर, नर्स और वॉर्ड बॉय तो यहां के लोगों को देखे जमाने हो गए हैं. इस बदइंतजामी की मार झेल रहे ग्रामीणों को छोटी से छोटी बीमारी के इलाज के लिए शहर का रुख करना पड़ता है.

स्वास्थ्य केंद्रों की खस्ता हालत.

सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालत
कोरोना वायरस से ज्यादा जनहानि न हो, इसके लिए भारत सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा कर ट्रेन, होटल, स्कूल और धर्मशालाओं को अस्पतालों में परिवर्तित कर दिया, जिससे लोगों को समुचित चिकित्सा सुविधा मिल सके. लेकिन अगर होटल धर्मशालाओं की जगह ग्रामीण क्षेत्रों में बने सीएचसी और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत दुरुस्त करने पर ध्यान दिया जाता तो शायद इन सबकी जरूरत ही नहीं पड़ती.

अस्पताल में बेड की जगह रखे उपले
जिले से करीब दस किलोमीटर दूर कल्याणपुर गांव के पास बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत बद से बदतर हुई पड़ी है. इस अस्पताल में आपको डॉक्टर तो दूर नर्स और वॉर्ड बॉय तक देखने को नहीं मिलेगा. अस्पताल के बने कमरों में स्ट्रेचर, बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाई की जगह भैसों का गोबर, उपले, जानवर के खाने वाला चोकर, चूल्हे में जलने वाला ईंधन दिखाई देगा.

महज कागज में सिमटी सारी व्यवस्थाएं
ग्रामीणों को छोटी से छोटी बीमारी होने पर दवाई लेने शहर की तरफ जाना पड़ता है. कई बार अधिकारियों से इस बारे में शिकायत की गई. इसके साथ ही अधिकारियों का दौरा भी हुआ, जिसके बाद सब कुछ दुरस्त करने का फरमान जारी हुआ. वहीं अधिकारी के जाते ही सब चले गए. वहीं जब भी गांव वाले ऐसा होते देखते तो एक बार फिर आस लेते कि शायद इस बार इस सरकार और अधिकारी बहुत सख्त आएं हैं तो अबकी तो स्वास्थ्य केंद्र की हालत सही हो ही जाएगी, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी सब कुछ कागजों तक ही सिमट कर रह गया.

गांव की रहने वाली प्रीति का कहना है कि अगर इस स्वास्थ्य केंद्र की हालत सही हो जाती है तो लोगों को स्वास्थ्य सेवा की सुविधा मिल जाएगी. कई बार अधिकारी आए, उन्होंने सर्वे भी किया और फिर चले गए. फिलहाल इस समय तो अस्पताल में कंडे (उपले) पड़े हुए हैं.

तो वहीं गांव निवासी अमर सिंह का कहना है कि वह सरकारी कालोनी में तीन सालों से रह रहे हैं, लेकिन आज तक उन्होंने कोई भी डॉक्टर इस अस्पताल में नहीं देखा. सरकारी अस्पताल यहां से 10 किलोमीटर दूर है. एक तरफ से जाने में ही आधा से एक घंटा लग जाता है.

इस बारे में सवाल किए जाने पर सीएमओ एमसी गर्ग का कहना है कि इस तरह की शिकायतें अक्सर मिलती रहती हैं. जिसके बाद उन जगहों को खाली कराया जाता है. अब एक दो जगहें ऐसी बची रह गईं होंगी. इस मामले की सूचना मिल गई है. तत्काल कार्रवाई करते हुए उक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर स्वास्थ्य सेवाएं बहाल कराई जाएंगी.

मुरादाबाद: कोरोना महामारी के चलते भले ही केंद्र और राज्य की सरकारें स्वास्थ सेवाओं में अच्छी सुविधाएं देने की बात कर रही हों. मगर जनपद के ग्रामीण इलाकों में बने स्वास्थ्य केंद्रों की हालत बद से बदतर है. इन स्वास्थ्य केंद्रों में जानवर बंधे रहते हैं और कमरों में उपले रखे हुए हैं. साफ-सफाई का आलम यह है कि चारो तरफ बड़ी-बड़ी झाड़ियां खड़ी हैं. डॉक्टर, नर्स और वॉर्ड बॉय तो यहां के लोगों को देखे जमाने हो गए हैं. इस बदइंतजामी की मार झेल रहे ग्रामीणों को छोटी से छोटी बीमारी के इलाज के लिए शहर का रुख करना पड़ता है.

स्वास्थ्य केंद्रों की खस्ता हालत.

सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालत
कोरोना वायरस से ज्यादा जनहानि न हो, इसके लिए भारत सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा कर ट्रेन, होटल, स्कूल और धर्मशालाओं को अस्पतालों में परिवर्तित कर दिया, जिससे लोगों को समुचित चिकित्सा सुविधा मिल सके. लेकिन अगर होटल धर्मशालाओं की जगह ग्रामीण क्षेत्रों में बने सीएचसी और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत दुरुस्त करने पर ध्यान दिया जाता तो शायद इन सबकी जरूरत ही नहीं पड़ती.

अस्पताल में बेड की जगह रखे उपले
जिले से करीब दस किलोमीटर दूर कल्याणपुर गांव के पास बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत बद से बदतर हुई पड़ी है. इस अस्पताल में आपको डॉक्टर तो दूर नर्स और वॉर्ड बॉय तक देखने को नहीं मिलेगा. अस्पताल के बने कमरों में स्ट्रेचर, बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाई की जगह भैसों का गोबर, उपले, जानवर के खाने वाला चोकर, चूल्हे में जलने वाला ईंधन दिखाई देगा.

महज कागज में सिमटी सारी व्यवस्थाएं
ग्रामीणों को छोटी से छोटी बीमारी होने पर दवाई लेने शहर की तरफ जाना पड़ता है. कई बार अधिकारियों से इस बारे में शिकायत की गई. इसके साथ ही अधिकारियों का दौरा भी हुआ, जिसके बाद सब कुछ दुरस्त करने का फरमान जारी हुआ. वहीं अधिकारी के जाते ही सब चले गए. वहीं जब भी गांव वाले ऐसा होते देखते तो एक बार फिर आस लेते कि शायद इस बार इस सरकार और अधिकारी बहुत सख्त आएं हैं तो अबकी तो स्वास्थ्य केंद्र की हालत सही हो ही जाएगी, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी सब कुछ कागजों तक ही सिमट कर रह गया.

गांव की रहने वाली प्रीति का कहना है कि अगर इस स्वास्थ्य केंद्र की हालत सही हो जाती है तो लोगों को स्वास्थ्य सेवा की सुविधा मिल जाएगी. कई बार अधिकारी आए, उन्होंने सर्वे भी किया और फिर चले गए. फिलहाल इस समय तो अस्पताल में कंडे (उपले) पड़े हुए हैं.

तो वहीं गांव निवासी अमर सिंह का कहना है कि वह सरकारी कालोनी में तीन सालों से रह रहे हैं, लेकिन आज तक उन्होंने कोई भी डॉक्टर इस अस्पताल में नहीं देखा. सरकारी अस्पताल यहां से 10 किलोमीटर दूर है. एक तरफ से जाने में ही आधा से एक घंटा लग जाता है.

इस बारे में सवाल किए जाने पर सीएमओ एमसी गर्ग का कहना है कि इस तरह की शिकायतें अक्सर मिलती रहती हैं. जिसके बाद उन जगहों को खाली कराया जाता है. अब एक दो जगहें ऐसी बची रह गईं होंगी. इस मामले की सूचना मिल गई है. तत्काल कार्रवाई करते हुए उक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर स्वास्थ्य सेवाएं बहाल कराई जाएंगी.

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