मुरादाबाद: कोरोना काल में जहां एक और लॉकडाउन के चलते आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई है. वहीं फूलों की खेती कर रहें किसानों को भी भारी नुकसान से दो-चार होना पड़ा है. सामाजिक, पारिवारिक और धार्मिक कार्यक्रर्मों के आयोजन निरस्त होने के चलते बाजार में फूलों की डिमांड न के बराबर रहीं. अनलॉक पार्ट 5.0 में केंद्र सरकार ने अब नियम-शर्तों के साथ कारोबारी और सामाजिक गतिविधियों को छूट दी है. जिसके बाद किसानों को आने वाले त्योहारों से काफी उम्मीद नजर आ रहीं है. मुरादाबाद जिले में किसान बड़े पैमाने पर कमल के फूलों की खेती करते हैं. कोरोना के चलते किसान जहां फूलों को बाजार में नहीं बेच पाए, वहीं अब दीपावली पर किसानों को फूलों की डिमांड बढ़ने की उम्मीद है. कमल के फूलों की खेती से किसानों को कई लाभ प्राप्त होते है.
कमल के फूलों की खेती से होता है बड़ा फायदा
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से नजदीक होने के चलते मुरादाबाद में फूलों की खेती कर रहें किसानों को फूलों की बिक्री के लिए भटकना नहीं पड़ता है. जिले में उगने वाले फूलों की बड़ी तादात स्थानीय बाजार में खप जाती है, लेकिन डिमांड के मुताबिक इन फूलों को दिल्ली में भी सप्लाई किया जाता है. पाकबड़ा क्षेत्र में किसान पिछले कुछ सालों से राष्ट्रीय पुष्प कमल की खेती बड़े पैमाने पर कर रहें है और इससे किसानों को बड़ा फायदा भी हो रहा है. दरअसल, कमल के फूलों की खेती से जहां किसानों को बिक्री के लिए फूल मिलता है. वहीं इससे मखाना दाना और सब्जी में इस्तेमाल होने वाली कमल ककड़ी भी मिलती है. बाजार में किसान दो रुपये प्रति फूल की दर से बिक्री करता है, जबकी दीपावली पर लक्ष्मी पूजन में इस्तेमाल होने वाले फूल व्यापारी बीस से पच्चीस रुपये की दर से बेचते है. वहीं कमल के पौधों से प्राप्त कमल ककड़ी की कीमत सौ रुपये प्रति किलो है.
कोरोना काल में हुआ नुकसान अब बढ़ी मुनाफे की आस
कोरोना काल में परिवहन की समस्या और फूलों की कम होती डिमांड से किसान परेशान थे, लेकिन अब किसानों को आने वाले त्यौहारों से उम्मीद है. अनलॉक पार्ट 5.0 में जहां लॉक डाउन में घोषित रोक हटाई गई है. वहीं परिवहन की समस्या भी दूर हुई है. किसानों के मुताबिक कोरोना काल में उन्हें काफी नुकसान हुआ, लेकिन कमल की खेती में फूलों की बिक्री कम होने के बाद भी कमल ककड़ी से नुकसान की भरपाई हो गई. जिले में अकेले 200 बीघा जमीन पर कमल के फूलों की खेती अलग-अलग क्षेत्रों में की जा रहीं है. हालांकि पिछले साल के मुकाबले कुछ किसानों ने इस साल पारम्परिक फसल बोने में ही रुचि दिखाई है.
पारम्परिक खेती के बजाय नगद फसलों को प्रमुखता दे रहें किसान
जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार के मुताबिक कमल के फूलों की खेती से किसान को तीन फायदे तो हो ही रहें है, लेकिन अब कमल की पत्तियों से खाने के पत्तल भी तैयार होने लगे है. जिससे किसानों को ज्यादा फायदा होने की संभावना है. उद्यान अधिकारी जिले में फूलों की खेती का रकबा बढ़ाने की पुष्टि करते हैं. साथ ही किसानों को कमल की खेती पर अनुदान दिलाए जाने की भी संस्तुति शासन से की गई है. औसतन एक बीघा जमीन में कमल उगाने में सात से आठ हजार रुपये का खर्चा आता है और जलभराव वाली जगहों पर यह काफी कम हो जाता है.
गन्ना बेल्ट के नाम से मशहूर पश्चिमी यूपी में किसान अब जल्द भुगतान होने वाली फसलें उगाकर लाभ कमा रहे है. कोरोना ने किसानों को झटका तो दिया, लेकिन किसानों को उम्मीद है कि जल्द ही हालात वापस पटरी पर आएंगे और एक बार फिर बाजार फूलों से गुलजार होकर महकेंगे.