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मुरादाबाद: मां-बाप अधिकारियों से लगाते रहे गुहार, इलाज न मिलने पर मासूम ने तोड़ा दम

यूपी के मुरादाबाद में चिकित्सा सुविधा न मिलने पर एक बच्ची की मौत हो गई. आरोप है कि मासूम के इलाज के लिए मां-बाप अधिकारियों की चौखट के टक्कर काटते रहे, लेकिन किसी ने उसकी परेशानी पर ध्यान नहीं दिया.

इलाज के अभाव में बच्ची की मौत.
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Published : Sep 3, 2019, 1:03 AM IST

मुरादाबाद: जिले में घटी घटना स्वास्थ्य विभाग के मुहं पर तमाचा तो है ही, कहीं न कहीं मानवता भी शर्मसार हो गई है. जिसका जीता जागता उदहारण जिले के जिला अस्पताल से लेकर अधिकारियों की चौखट तक दिखाई दिया है. जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के दरवाजे पर एक मां अपनी मासूम बेटी की लाश गोदी में लेकर और लाचार अनपढ़ बाप जिला अस्पताल से मिले सादे कागज पर लिखी पर्ची को दिखाकर अपना दुखड़ा रो रहा है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई,जिसके बाद राहगीरों ने उसकी मदद की.

इलाज के अभाव में बच्ची की मौत.

दरअसल कुढ़ फतेहगढ़ निवासी वीरेश की तीन साल की बेटी घर में गिर गई थी. उसके नाक से खून आ रहा था. वीरेश और उसकी पत्नी अपनी तीन साल की लाड़ली मासूम को लेकर मुरादाबाद जिला अस्पताल पहुंचे. वीरेश का आरोप है कि अस्पताल में पहुंचने पर एक घंटे तक बच्ची का इलाज नहीं शुरू किया गया. एक घंटे बाद डॉक्टर ने सादे कागज पर कुछ लिखकर दे दिया और बच्ची को वहां ले जाने को कहा. मां की गोदी में हिचकी लेती बच्ची और लाचार पिता को दुखी देखकर जिला अस्पताल के सामने से गुजर रहे त्रिभुवन नाम के युवक ने एक तरह से सहारा देते हुए जानकारी दी. त्रिभुवन के अनुसार मासूम बच्ची ने उसके सामने ही दम तोड़ दिया. जो त्रिभुवन से देखा नहीं गया और उसने कई बार 108 नम्बर पर फोन किया, लेकिन कोई सुनवाई न हो पायी.

त्रिभुवन के अनुसार पहले वो जिलाधिकारी के यहां गए ,वहां से मुख्य चिकित्सा अधिकारी के यहां भेज दिया. मैडम से बात हुई है वो कह रही हैं जिसने भी ये गलत काम किया है कार्रवाई होगी. त्रिभुवन के अनुसार उसने चंदा इकठ्ठा करके एम्बुलेंस का इंतजाम किया है और एम्बुलेंस का चालक अर्जुन भी निःशुल्क सेवा देते हुए गमगीन दंपति और मासूम की लाश लेकर चला गया.

इस पूरे प्रकरण पर जिला मुख्य चिकित्सा जिला अधिकारी ने कुछ भी बोलने से मना कर दिया तो अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक ज्योत्सना पंत ने उस समय ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर का पूरी तरह बचाव किया. उन्होंने कहा कि उस समय ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर से बात हुई थी. उन्होंने बताया कि वो परिवार मरीज को पहले से ही किसी अस्प्ताल में भर्ती करा चुके थे. बाद में यहां लाये थे, उन्होंने न्यूरो सर्जन के बारे में पूछा, बच्ची के सिर में नॉर्मल चोट नहीं थी. लेकिन न्यूरो सर्जन न होने की बात पर डॉक्टर के कहने पर भी उन्होंने मरीज को भर्ती नहीं कराया. इसके अलावा हमारे यहां शव वाहन की सुविधा है, लेकिन जो मरीज अस्पताल में भर्ती हो उसकी मौत ही जाए, तो उसे सुविधा दी जाती है. इस वाहन की 24 घण्टे सुविधा है.

मुरादाबाद: जिले में घटी घटना स्वास्थ्य विभाग के मुहं पर तमाचा तो है ही, कहीं न कहीं मानवता भी शर्मसार हो गई है. जिसका जीता जागता उदहारण जिले के जिला अस्पताल से लेकर अधिकारियों की चौखट तक दिखाई दिया है. जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के दरवाजे पर एक मां अपनी मासूम बेटी की लाश गोदी में लेकर और लाचार अनपढ़ बाप जिला अस्पताल से मिले सादे कागज पर लिखी पर्ची को दिखाकर अपना दुखड़ा रो रहा है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई,जिसके बाद राहगीरों ने उसकी मदद की.

इलाज के अभाव में बच्ची की मौत.

दरअसल कुढ़ फतेहगढ़ निवासी वीरेश की तीन साल की बेटी घर में गिर गई थी. उसके नाक से खून आ रहा था. वीरेश और उसकी पत्नी अपनी तीन साल की लाड़ली मासूम को लेकर मुरादाबाद जिला अस्पताल पहुंचे. वीरेश का आरोप है कि अस्पताल में पहुंचने पर एक घंटे तक बच्ची का इलाज नहीं शुरू किया गया. एक घंटे बाद डॉक्टर ने सादे कागज पर कुछ लिखकर दे दिया और बच्ची को वहां ले जाने को कहा. मां की गोदी में हिचकी लेती बच्ची और लाचार पिता को दुखी देखकर जिला अस्पताल के सामने से गुजर रहे त्रिभुवन नाम के युवक ने एक तरह से सहारा देते हुए जानकारी दी. त्रिभुवन के अनुसार मासूम बच्ची ने उसके सामने ही दम तोड़ दिया. जो त्रिभुवन से देखा नहीं गया और उसने कई बार 108 नम्बर पर फोन किया, लेकिन कोई सुनवाई न हो पायी.

त्रिभुवन के अनुसार पहले वो जिलाधिकारी के यहां गए ,वहां से मुख्य चिकित्सा अधिकारी के यहां भेज दिया. मैडम से बात हुई है वो कह रही हैं जिसने भी ये गलत काम किया है कार्रवाई होगी. त्रिभुवन के अनुसार उसने चंदा इकठ्ठा करके एम्बुलेंस का इंतजाम किया है और एम्बुलेंस का चालक अर्जुन भी निःशुल्क सेवा देते हुए गमगीन दंपति और मासूम की लाश लेकर चला गया.

इस पूरे प्रकरण पर जिला मुख्य चिकित्सा जिला अधिकारी ने कुछ भी बोलने से मना कर दिया तो अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक ज्योत्सना पंत ने उस समय ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर का पूरी तरह बचाव किया. उन्होंने कहा कि उस समय ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर से बात हुई थी. उन्होंने बताया कि वो परिवार मरीज को पहले से ही किसी अस्प्ताल में भर्ती करा चुके थे. बाद में यहां लाये थे, उन्होंने न्यूरो सर्जन के बारे में पूछा, बच्ची के सिर में नॉर्मल चोट नहीं थी. लेकिन न्यूरो सर्जन न होने की बात पर डॉक्टर के कहने पर भी उन्होंने मरीज को भर्ती नहीं कराया. इसके अलावा हमारे यहां शव वाहन की सुविधा है, लेकिन जो मरीज अस्पताल में भर्ती हो उसकी मौत ही जाए, तो उसे सुविधा दी जाती है. इस वाहन की 24 घण्टे सुविधा है.

Intro:एंकर:- उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद में घटी घटना स्वास्थ्य विभाग के मुहं पर तमाचा तो है ही, कहीं न कहीं मानवता भी शर्मसार हो गयी है. जिसका जीता जागता उदहारण मुरादाबाद में जिला अस्पताल से लेकर अधिकारियों की चौखट तक दिखाई दिया है. मुरादाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के दरवाजे पर एक माँ अपनी मासूम बेटी की लाश गोदी में लेकर और लाचार अनपढ़ बाप जिला अस्पताल से मिली सादे कागज पर लिखी पर्ची को दिखाकर अपना दुखड़ा रो रहा है. लेकिन कोई सुनवाई नहीं राहगीरों ने की मदद.



Body:वीओ:- मुरादाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकरी के घर के दरवाजे पर बैठे इस दम्पत्ति में महिला की गोदी में मासूम बच्ची कि लाश और पुरुष के हाथ में सादा कागज पर लिखी एक पर्ची दिखाई दे रही है. जिसमे लिखा है TMU दिल्ली रोड पाकबड़ा मुख्य चिकित्सा अधिकारी लिखे बोर्ड के नीचे बैठे वीरेश और उसकी पत्नी अपनी तीन साल की बेटी की लाश सीने से लगाये रो रही थी.
दरअसल कुढ़ फतेहगढ़ निवासी वीरेश की तीन साल की बेटी घर में गिर गई थी. उसके नाक से खून आ रहा था. वीरेश और उसकी पत्नी अपनी तीन साल की लाड़ली मासूम को लेकर मुरादाबाद जिला अस्पताल पहुंचे. वीरेश का आरोप है कि अस्पताल में पहुंचने पर एक घंटे तक बच्ची का इलाज नहीं शुरू किया गया. एक घंटे बाद डॉक्टर ने सादे कागज पर कुछ लिखकर दे दिया और बच्ची को वहां ले जाने को कहा. माँ की गोदी में हिचकी लेती बच्ची और लाचार पिता को दुखी देखकर जिला अस्पताल के सामने से गुजर रहे त्रिभुवन नाम के युवक ने एक तरह से सहारा देते हुए जानकारी की तो त्रिभुवन के अनुसार मासूम बच्ची ने उसके सामने ही दम तोड़ दिया. जो त्रिभुवन से देखा नहीं गया और उसने कई बार 108 नम्बर पर फोन किया लेकिन कोई सुनवाई न हो पायी. त्रिभुवन के अनुसार पहले वो जिला अधिकारी के यहाँ गये ,वहां से मुख्य चिकित्सा अधिकारी मैडम के यहाँ भेज दिया. मैडम से बात हुई है वो कह रही हैं जिसने भी ये गलत काम किया है कार्यवाही होगी त्रिभुवन के अनुसार उसने चंदा इकठ्ठा करके एम्बुलेंस का इंतजाम किया है और एम्बुलेंस का चालक अर्जुन भी निःशुल्क सेवा देते हुए गमगीन दम्पत्ति और मासूम की लाश लेकर चला गया.Conclusion:वीओ:- इस पूरे प्रकरण पर जिला मुख्य चिकित्सा जिला अधिकारी ने कुछ भी बोलने से मना कर दिया तो अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक ज्योत्सना पंत उस समय ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर का पूरी तरह बचाव किया. उन्होंने कहा कि मेरी उस समय ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर से बात हुई थी उन्होंने बताया कि वो परिवार मरीज को पहले से ही किसी अस्प्ताल में भर्ती करा चुके थे. बाद में यहां लाये थे उन्होंने न्यूरो सर्जन के बारे में पूछा, बच्ची के सिर में नॉर्मल चोट नहीं थी. लेकिन न्यूरो सर्जन न होने की बात पर डॉक्टर के कहने पर भी उन्होंने मरीज को भर्ती नहीं कराया. इसके अलावा हमारे यहां शव वाहन की सुविधा है, लेकिन जो मरीज अस्पताल में भर्ती हो उसकी मौत ही जाए तो उसे सुविधा दी जाती है. इस वाहन की 24 घण्टे सुविधा है.

बाईट--वीरेश मृतक बच्ची के पिता

बाईट---त्रिभुवन मददगार

बाईट—अर्जुन एम्बुलेंस ड्राईवर

बाइट:- ज्योत्सना पंत (सीएमएस)

सुशील कुमार सिंह
ईटीवी भारत
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