मिर्जापुर: विंध्याचल आदिकाल से ऋषि मुनियों की साधना का केंद्र रहा है. विंध्य पर्वत पर मां विंध्यवासिनी, मां अष्टभुजा के साथ ही मां काली भी विराजमान हैं. कहते हैं कि मां काली का यह रूप पूरे विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलता है. यहां मां काली खेचरी मुद्रा (मुख आसमान की तरफ) में विराजमान हैं. मान्यता है कि महाकाली भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं.
विंध्याचल के प्रसिद्ध विंध्य धाम में त्रिकोण मार्ग पर स्थित मां काली का मंदिर है. जिस स्थान पर मां विराजमान हैं, उसे कालीखोह कहते हैं. मां विंध्यवासिनी यानी महालक्ष्मी का दर्शन करने के बाद लोग मां महाकाली का दर्शन करते हैं और इसके बाद अष्टभुजा जाते हैं.
देवताओं के प्रार्थना करने पर मां ने धरा था ऐसा स्वरूप
विंध्य पर्वत पर विराजमान महाकाली का मंदिर स्वर्ग से लेकर धरती तक के कई राज अपने अंदर समाए हुए हैं. बताया जाता है कि जब रक्तबीज दानवों ने स्वर्ग लोक पर कब्जा जमा कर सभी देवताओं को स्वर्ग लोक से भगा दिया था, तभी ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित देवताओं की प्रार्थना पर मां विंध्यवासिनी ने मां काली का ऐसा रूप धारण किया था. इसमें उनका मुख आसमान की तरफ खुला है.
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रक्त बीज दानव के वध के लिए किया था ऐसा रूप धारण
दानव रक्तबीज को ब्रह्माजी का वरदान मिला था कि अगर तुम्हारा एक बूंद रक्त धरती पर गिरेगा तो उससे लाखों दानव पैदा होंगे. दानव का वध करने के लिए और उसका खून धरती पर न गिरे, महाकाली ने रक्तपान करने के लिए अपना मुंह खोल दिया और अपनी जिह्वा को रणक्षेत्र बना कर रक्तबीज नामक दानव का वध किया. तभी से मां का ऐसा रूप है. कहा जाता है कि मां काली के मुख में कुछ भी डालते हैं, उसका आज तक पता नहीं चलता कि वह कहां गया.
बंदरों को चना चढ़ाने से मां करती हैं मनोकामना पूरी
मां के मंदिर परिसर के आस-पास काले बंदर दिखते हैं, जो पूरे विंध्याचल में और कहीं नहीं दिखते हैं. इनको चना चढ़ाने पर भी मां भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं. कालीखोह के मंदिर में हजारों भक्त मां विंध्यवासिनी के दर्शन करने के बाद यहां दर्शन पूजन करने आते हैं. महाकाली के इस स्वरूप को देखकर भक्त दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं.