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कहीं देखने को नहीं मिलता मां का ऐसा स्वरूप, खेचरी मुद्रा में यहां विराजमान हैं मां काली

यूपी के मिर्जापुर के विंध्य पर्वत पर महाकाली का मंदिर विराजमान है. इसे महाकाली खोह मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यहां मां काली खेचरी मुद्रा में विराजमान हैं. मान्यता है कि महाकाली भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है.

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Published : Oct 4, 2019, 12:32 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

खेचरी मुद्रा में यहां विराजमान हैं मां काली.

मिर्जापुर: विंध्याचल आदिकाल से ऋषि मुनियों की साधना का केंद्र रहा है. विंध्य पर्वत पर मां विंध्यवासिनी, मां अष्टभुजा के साथ ही मां काली भी विराजमान हैं. कहते हैं कि मां काली का यह रूप पूरे विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलता है. यहां मां काली खेचरी मुद्रा (मुख आसमान की तरफ) में विराजमान हैं. मान्यता है कि महाकाली भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं.

खेचरी मुद्रा में यहां विराजमान हैं मां काली.


विंध्याचल के प्रसिद्ध विंध्य धाम में त्रिकोण मार्ग पर स्थित मां काली का मंदिर है. जिस स्थान पर मां विराजमान हैं, उसे कालीखोह कहते हैं. मां विंध्यवासिनी यानी महालक्ष्मी का दर्शन करने के बाद लोग मां महाकाली का दर्शन करते हैं और इसके बाद अष्टभुजा जाते हैं.


देवताओं के प्रार्थना करने पर मां ने धरा था ऐसा स्वरूप
विंध्य पर्वत पर विराजमान महाकाली का मंदिर स्वर्ग से लेकर धरती तक के कई राज अपने अंदर समाए हुए हैं. बताया जाता है कि जब रक्तबीज दानवों ने स्वर्ग लोक पर कब्जा जमा कर सभी देवताओं को स्वर्ग लोक से भगा दिया था, तभी ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित देवताओं की प्रार्थना पर मां विंध्यवासिनी ने मां काली का ऐसा रूप धारण किया था. इसमें उनका मुख आसमान की तरफ खुला है.

इसे भी पढ़े:- सोनभद्र: मां शीतला के दर्शन मात्र से होती हैं भक्तों की मुरादें पूरी

रक्त बीज दानव के वध के लिए किया था ऐसा रूप धारण
दानव रक्तबीज को ब्रह्माजी का वरदान मिला था कि अगर तुम्हारा एक बूंद रक्त धरती पर गिरेगा तो उससे लाखों दानव पैदा होंगे. दानव का वध करने के लिए और उसका खून धरती पर न गिरे, महाकाली ने रक्तपान करने के लिए अपना मुंह खोल दिया और अपनी जिह्वा को रणक्षेत्र बना कर रक्तबीज नामक दानव का वध किया. तभी से मां का ऐसा रूप है. कहा जाता है कि मां काली के मुख में कुछ भी डालते हैं, उसका आज तक पता नहीं चलता कि वह कहां गया.


बंदरों को चना चढ़ाने से मां करती हैं मनोकामना पूरी
मां के मंदिर परिसर के आस-पास काले बंदर दिखते हैं, जो पूरे विंध्याचल में और कहीं नहीं दिखते हैं. इनको चना चढ़ाने पर भी मां भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं. कालीखोह के मंदिर में हजारों भक्त मां विंध्यवासिनी के दर्शन करने के बाद यहां दर्शन पूजन करने आते हैं. महाकाली के इस स्वरूप को देखकर भक्त दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

मिर्जापुर: विंध्याचल आदिकाल से ऋषि मुनियों की साधना का केंद्र रहा है. विंध्य पर्वत पर मां विंध्यवासिनी, मां अष्टभुजा के साथ ही मां काली भी विराजमान हैं. कहते हैं कि मां काली का यह रूप पूरे विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलता है. यहां मां काली खेचरी मुद्रा (मुख आसमान की तरफ) में विराजमान हैं. मान्यता है कि महाकाली भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं.

खेचरी मुद्रा में यहां विराजमान हैं मां काली.


विंध्याचल के प्रसिद्ध विंध्य धाम में त्रिकोण मार्ग पर स्थित मां काली का मंदिर है. जिस स्थान पर मां विराजमान हैं, उसे कालीखोह कहते हैं. मां विंध्यवासिनी यानी महालक्ष्मी का दर्शन करने के बाद लोग मां महाकाली का दर्शन करते हैं और इसके बाद अष्टभुजा जाते हैं.


देवताओं के प्रार्थना करने पर मां ने धरा था ऐसा स्वरूप
विंध्य पर्वत पर विराजमान महाकाली का मंदिर स्वर्ग से लेकर धरती तक के कई राज अपने अंदर समाए हुए हैं. बताया जाता है कि जब रक्तबीज दानवों ने स्वर्ग लोक पर कब्जा जमा कर सभी देवताओं को स्वर्ग लोक से भगा दिया था, तभी ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित देवताओं की प्रार्थना पर मां विंध्यवासिनी ने मां काली का ऐसा रूप धारण किया था. इसमें उनका मुख आसमान की तरफ खुला है.

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रक्त बीज दानव के वध के लिए किया था ऐसा रूप धारण
दानव रक्तबीज को ब्रह्माजी का वरदान मिला था कि अगर तुम्हारा एक बूंद रक्त धरती पर गिरेगा तो उससे लाखों दानव पैदा होंगे. दानव का वध करने के लिए और उसका खून धरती पर न गिरे, महाकाली ने रक्तपान करने के लिए अपना मुंह खोल दिया और अपनी जिह्वा को रणक्षेत्र बना कर रक्तबीज नामक दानव का वध किया. तभी से मां का ऐसा रूप है. कहा जाता है कि मां काली के मुख में कुछ भी डालते हैं, उसका आज तक पता नहीं चलता कि वह कहां गया.


बंदरों को चना चढ़ाने से मां करती हैं मनोकामना पूरी
मां के मंदिर परिसर के आस-पास काले बंदर दिखते हैं, जो पूरे विंध्याचल में और कहीं नहीं दिखते हैं. इनको चना चढ़ाने पर भी मां भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं. कालीखोह के मंदिर में हजारों भक्त मां विंध्यवासिनी के दर्शन करने के बाद यहां दर्शन पूजन करने आते हैं. महाकाली के इस स्वरूप को देखकर भक्त दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

Intro:मिर्जापुर के विंध्याचल आदिकाल से ऋषि मुनियों का साधना का केंद्र रहा है।और विंध्याचल हमेशा ही भक्ति और साधना का केंद्र रहा है यहीं विंध्य पर्वत पर मां विंध्यवासिनी मां अष्टभुजा के साथ ही मां काली भी पर्वत पर विराजमान है। कहते हैं मां काली।का यह रूप पूरे विश्व में कहीं देखने नहीं मिलता है खेचरी मुद्रा (मुख असमान की तरफ)में विराजमान महाकाली अंत काल से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है विंध्याचल के प्रसिद्ध विंध्य धाम में त्रिकोण मार्ग पर स्थित मां काली का मंदिर है जिस स्थान पर मां विराजमान है उसे कालीखोह कहते हैं। मां विंध्यवासिनी यानी महालक्ष्मी का दर्शन करने के बाद लोग दूसरे मां महाकाली का दर्शन करते हैं इसके बाद अष्टभुजा जाते हैं।


Body:विंध्य पर्वत पर विराजमान महाकाली का मंदिर स्वर्ग से लेकर धरती तक के कई राज्य अपने अंदर समाए हुए हैं मां का यह विशाल रूप पूरे विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलेगा ऐसा बताया जाता है कि जब रक्तबीज दानों ने स्वर्ग लोक पर कब्जा जमा कर सभी देवताओं को स्वर्ग लोके से खदेड़ दिया था तभी ब्रह्मा विष्णु महेश सहित देवताओं की प्रार्थना पर मां विंध्यवासिनी मां काली का ऐसा रूप धारण धारा जिससे उनका मुख आसमान की तरफ खुला है।
रक्त बीज दानव को ब्रह्मा जी का वरदान मिला था कि अगर तुम्हारा एक बूंद रक्त धरती पर गिरेगा तो उससे लाखों दानव पैदा होंगे इसी दानव का वध करने के लिए उसका खून धरती पर ना गिरे जिससे दानव पैदा हो सके महाकाली ने रक्त पान करने के लिए अपना मुंह खोल दिया और अपनी जिन्हा को रणक्षेत्र बना कर रक्तबीज नामक दानव का वध किया तभी से मां का ऐसा रूप है कहते हैं मां काली के मुख्य में कुछ भी डालें उसका आज तक पता नहीं चलता है। साथ ही मां के आसपास काले बंदर दिखते हैं जो पूरे विंध्याचल में और कहीं नहीं दिखेंगे इनको चना चलाने पर भी मां भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं इस कालीखोह के मंदिर में हजारों भक्त मां विंध्यवासिनी का दर्शन करने के बाद यहां पर आते हैं दर्शन पूजन करते हैं इसके बाद अष्टभुजा मां का दर्शन पूजन करने जाते हैं क्योंकि यह त्रिकोण मार्ग पर विराजमान हैं महाकाली का इस स्वरूप को देखकर भक्त दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं और कहते हैं ऐसा स्वरूप कहीं नहीं देखने को मिलता है पूरे पहाड़ों पर तीनों माह का अलग-अलग स्वरूप है बहुत आनंदमय लगता है यहां पर दर्शन करने से।

Bite-शांति-भक्त
Bite-मिठ्ठू मिश्रा-तीर्थपुरोहित

जय प्रकाश सिंह
मिर्ज़ापुर
9453881630



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Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST
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