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इस शक्तिपीठ में सशरीर विराजमान हैं माता

51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में मां विंध्यावासिनी का है. यह एक मात्र ऐसा शक्तिपीठ है, जहां मां सशरीर विराजमान हैं. इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं भी हैं. कहा जाता है कि तीनों माताओं के दर्शन करने से सभी भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है. अगर भक्त तीनों के दर्शन नहीं करता तो उनकी मनोकामना पूरी नहीं होती.

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Published : Oct 20, 2020, 9:33 PM IST

मां विंध्यवासिनी
मां विंध्यवासिनी.

मिर्जापुर : नवरात्र में शक्ति के प्रमुख स्थलों में दर्शन पूजन का विशेष महत्व है. जनपद मिर्जापुर के विंध्याचल में स्थित विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी का पावन धाम है. शक्ति की साधना और आराधना में देवी के इस पावन मंदिर का अत्यधिक महत्व है. नवरात्र के दौरान इस पावन धाम पर देवी के भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. मां विंध्यवासिनी का भव्य मंदिर गंगा नदी के किनारे विंध्याचल की पहाड़ियों पर बसा है.

मां विंध्यवासिनी की महिमा अपरंपार

विंध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी की महिमा अपरंपार है. इनके गुणों का बखान देवताओं ने भी किया है. भक्तों के कल्याण के लिए सिद्ध पीठ विंध्याचल में सशरीर विराजित माता विंध्यवासिनी का धाम सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता है. मां के धाम में दर्शन पूजन करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. विंध्य पर्वत की विशाल शृंखला को विंध्याचल में ही पतित पावनी गंगा स्पर्श करती हैं. इसी स्थान पर आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने पूरे सशरीर के साथ विराजमान हैं जबकि देश के अन्य शक्तिपीठों पर सती के शरीर का एक-एक अंग गिरा है. देश के तमाम स्थानों पर शक्तिपीठ है, वहीं विंध्याचल सिद्ध पीठ के नाम से जाता है.

मां विंध्यवासिनी.
विन्धयाचल में तीन रूपों में विराजमान हैं माता

विंध्याचल में स्थित मां विंध्यवासिनी का यह मंदिर देश के 51 शक्ति पीठों में से एक है. विंध्य पर्वत पर निवास करने वाली माता यहां पर सशरीर अवतरित हुई थीं. यहां पर माता अपने तीन रूपों यानी महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं. यही कारण है कि इसे महाशक्तियों का त्रिकोण भी कहा जाता है. इस पावन धाम में मां विंध्यवासिनी के साथ मां काली और अष्टभुजा का मंदिर है.

इस त्रिकोण के बारे में मान्यता है कि अगर यहां पर आने वाले व्यक्ति तीनों देवी के दर्शन नहीं करें तो उसे उसकी साधना का संपूर्ण फल नहीं मिलता है और श्रद्धालुओं की यात्रा अधूरी मानी जाती है. श्रद्धालु यहां आकर सबसे पहले गंगा में स्नान करते हैं. इसके बाद मां विंध्यवासिनी का दर्शन पूजन करने के बाद पैदल ही मां काली का और फिर पहाड़ों पर चढ़कर अष्टभुजा मां का दर्शन करते हुए पुनः मां विंध्यवासिनी का दर्शन करने आते हैं, इसी को त्रिगुण कहा जाता है. तीनों देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान हैं जो विंध्य क्षेत्र को शिव शक्ति में बनाकर भक्तों का कल्याण करते हैं.

मां विंध्यवासिनी
मां विंध्यवासिनी.
श्रद्धालु कैसे पहुंचते है मां के मंदिर

धर्म नगरी काशी और प्रयाग के मध्य स्थित विंध्याचल धाम मां विंध्यवासिनी देवी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है. विंध्याचल जाने के लिए ट्रेन, सड़क और हवाई मार्ग से पहुंचा जा सकता है. दिल्ली कोलकाता रेल मार्ग के बीच स्थित विंध्याचल रेलव स्टेशन पर सभी ट्रेनों का ठहराव नवरात्र में किया जाता है. रेलवे स्टेशन और रोडवेज स्टेशन से चंद कदमों की दूरी पर मां विंध्यवासिनी का मंदिर है. वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतर कर सड़क मार्ग से करीब 65 किलोमीटर की दूरी तय करके विंध्याचल पहुंचा जा सकता है.

विंध्य क्षेत्र में त्रेतायुग के देवताओं का मिलता है जिक्र

मां विंध्यवासिनी की मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर शिवपुर नामक स्थान है, जहां पर विंध्य पर्वत से गंगा स्पर्श होती हैं. इस स्थान को अब राम गया घाट के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां पर भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था. मान्यता है कि जो गया नहीं जा पाते वे अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से मृतक को सद्गति प्राप्त होती है. यहां से फिर 2 किलोमीटर दूरी पर अष्टभुजा पहाड़ी पर माता सीता के द्वारा निर्मित सीताकुंड है. मानता है कि वनवास काल में माता ने सीताकुंड में रसोई बनाया था. जल की आवश्यकता पड़ने पर भगवान राम ने तीर मारकर पानी का स्रोत निकाला था, जिसके बाद यहां सदैव जल भरा रहता है. सीता कुंड में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, जिसका उल्लेख औशनस पुराण के श्लोक 46 में है. माना जाता है कि लंकापति रावण भी अपनी ज्योतिष गणित की गणना के लिए विंध्यपर्वत की शरण में आते थे.

मिर्जापुर : नवरात्र में शक्ति के प्रमुख स्थलों में दर्शन पूजन का विशेष महत्व है. जनपद मिर्जापुर के विंध्याचल में स्थित विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी का पावन धाम है. शक्ति की साधना और आराधना में देवी के इस पावन मंदिर का अत्यधिक महत्व है. नवरात्र के दौरान इस पावन धाम पर देवी के भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. मां विंध्यवासिनी का भव्य मंदिर गंगा नदी के किनारे विंध्याचल की पहाड़ियों पर बसा है.

मां विंध्यवासिनी की महिमा अपरंपार

विंध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी की महिमा अपरंपार है. इनके गुणों का बखान देवताओं ने भी किया है. भक्तों के कल्याण के लिए सिद्ध पीठ विंध्याचल में सशरीर विराजित माता विंध्यवासिनी का धाम सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता है. मां के धाम में दर्शन पूजन करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. विंध्य पर्वत की विशाल शृंखला को विंध्याचल में ही पतित पावनी गंगा स्पर्श करती हैं. इसी स्थान पर आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने पूरे सशरीर के साथ विराजमान हैं जबकि देश के अन्य शक्तिपीठों पर सती के शरीर का एक-एक अंग गिरा है. देश के तमाम स्थानों पर शक्तिपीठ है, वहीं विंध्याचल सिद्ध पीठ के नाम से जाता है.

मां विंध्यवासिनी.
विन्धयाचल में तीन रूपों में विराजमान हैं माता

विंध्याचल में स्थित मां विंध्यवासिनी का यह मंदिर देश के 51 शक्ति पीठों में से एक है. विंध्य पर्वत पर निवास करने वाली माता यहां पर सशरीर अवतरित हुई थीं. यहां पर माता अपने तीन रूपों यानी महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं. यही कारण है कि इसे महाशक्तियों का त्रिकोण भी कहा जाता है. इस पावन धाम में मां विंध्यवासिनी के साथ मां काली और अष्टभुजा का मंदिर है.

इस त्रिकोण के बारे में मान्यता है कि अगर यहां पर आने वाले व्यक्ति तीनों देवी के दर्शन नहीं करें तो उसे उसकी साधना का संपूर्ण फल नहीं मिलता है और श्रद्धालुओं की यात्रा अधूरी मानी जाती है. श्रद्धालु यहां आकर सबसे पहले गंगा में स्नान करते हैं. इसके बाद मां विंध्यवासिनी का दर्शन पूजन करने के बाद पैदल ही मां काली का और फिर पहाड़ों पर चढ़कर अष्टभुजा मां का दर्शन करते हुए पुनः मां विंध्यवासिनी का दर्शन करने आते हैं, इसी को त्रिगुण कहा जाता है. तीनों देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान हैं जो विंध्य क्षेत्र को शिव शक्ति में बनाकर भक्तों का कल्याण करते हैं.

मां विंध्यवासिनी
मां विंध्यवासिनी.
श्रद्धालु कैसे पहुंचते है मां के मंदिर

धर्म नगरी काशी और प्रयाग के मध्य स्थित विंध्याचल धाम मां विंध्यवासिनी देवी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है. विंध्याचल जाने के लिए ट्रेन, सड़क और हवाई मार्ग से पहुंचा जा सकता है. दिल्ली कोलकाता रेल मार्ग के बीच स्थित विंध्याचल रेलव स्टेशन पर सभी ट्रेनों का ठहराव नवरात्र में किया जाता है. रेलवे स्टेशन और रोडवेज स्टेशन से चंद कदमों की दूरी पर मां विंध्यवासिनी का मंदिर है. वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतर कर सड़क मार्ग से करीब 65 किलोमीटर की दूरी तय करके विंध्याचल पहुंचा जा सकता है.

विंध्य क्षेत्र में त्रेतायुग के देवताओं का मिलता है जिक्र

मां विंध्यवासिनी की मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर शिवपुर नामक स्थान है, जहां पर विंध्य पर्वत से गंगा स्पर्श होती हैं. इस स्थान को अब राम गया घाट के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां पर भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था. मान्यता है कि जो गया नहीं जा पाते वे अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से मृतक को सद्गति प्राप्त होती है. यहां से फिर 2 किलोमीटर दूरी पर अष्टभुजा पहाड़ी पर माता सीता के द्वारा निर्मित सीताकुंड है. मानता है कि वनवास काल में माता ने सीताकुंड में रसोई बनाया था. जल की आवश्यकता पड़ने पर भगवान राम ने तीर मारकर पानी का स्रोत निकाला था, जिसके बाद यहां सदैव जल भरा रहता है. सीता कुंड में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, जिसका उल्लेख औशनस पुराण के श्लोक 46 में है. माना जाता है कि लंकापति रावण भी अपनी ज्योतिष गणित की गणना के लिए विंध्यपर्वत की शरण में आते थे.

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