मिर्जापुर: अभी तक लोगों ने इंसानों की भीड़ का मेला देखा होगा लेकिन मिर्जापुर जिले में अंधविश्वास का एक ऐसा मेला देखने को मिलता है जहां पर इंसानों की नहीं बल्कि भूतों की भीड़ लगती है. संतान प्राप्ति और भूत प्रेत से छुटकारा पाने के लिए लाखों लोग इस अंधविश्वास के मेले में पहुंचते हैं.
भूतों का मेला
तकनीकी और सूचना क्रांति के दौर में हम भले ही अंतरिक्ष और चांद पर घर बसाने को सोच रहे हों. वहीं दूसरी ओर अंधविश्वास अभी भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है. हकीकत मिर्जापुर के अहरौरा के बरही गांव मे देखने को मिलती है, जहां बाबा बेचूबीर की चौरी पर भूतों का मेला लगता है. अंधविश्वास के इस मेले में भूतों की भीड़ लगती है जहां पर कथित तौर पर भूत, डायन और चुड़ैल से मुक्ति दिलाई जाती है.
350 सालों से लग रहा यह मेला
लोगों की मान्यता है कि जिनके बच्चे नहीं होते हैं उन्हें बच्चे की भी प्राप्ति होती है. यह मेला लगभग साढे 300 सालों से चला आ रहा है और यहां भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से परेशान लोगों की भीड़ जुटती हैं. अंधविश्वास के इस मेले में आए लोगों का कहना है कि सभी कष्टों का निवारण सिर्फ बेचूबीर बाबा ही दिला सकते हैं. भक्तों का मानना हैं कि यहां आने से निसंतान को संतान की प्राप्ति भी हो जाती है.
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अन्य राज्यों से भी आते हैं लोग
इस मेले में प्रदेश के बाहर से भी काफी लोग आते है. दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों के लोगों का जमावड़ा लगता है. आज भी बेचू बाबा के समाधि की देखभाल उनके 6ठी पीढ़ी से वंशज ही देखते हैं. ऐसी मान्यता है कि बेचूबीर भगवान शंकर के साधना में हमेशा लीन रहते थे और परम योद्धा लोरिक इनके परम भक्त थे.
जानिए क्या है कहानी
एक बार लोरिक के साथ बेचूबीर इस घनघोर जंगल में ठहरे थे और भगवान शिव की आराधना में लीन थे. तभी उनके ऊपर एक शेर ने हमला कर दिया. तीन दिनों तक चले इस युद्ध में बेचूबीर ने अपने प्राण त्याग दिए और उसी जगह पर बेचूबीर की समाधि बना दी गई. उसी समय से इस मेले का प्रचलन चलता आ रहा है जो 3 दिनों तक चलता है.
जो पहली बार इस दरबार में आता है वह पास में ही स्थित एक नदी में नहाता है और पहने हुए कपड़ों को वहीं छोड़ देता है और नए कपड़े धारण कर चौखट में प्रवेश करना पड़ता है. वहीं इस मेले के लिए जिला प्रशासन की तरफ से पुलिस, सीसीटीवी, पानी, पार्किंग आदि की सुविधा दी जाती है. सवाल यह उठता है कि आज विज्ञान के युग में भी हमारा समाज अंधविश्वास का पीछा नहीं छोड़ पा रहा है.