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मिर्जापुर: गोबर से बनी वर्मी कंपोस्ट खाद की विदेशों में बढ़ी मांग, सप्लाई से हो रही घर बैठे कमाई - मिर्जापुर के सीखड़ गांव

प्रदेश के मिर्जापुर में कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने और पुरानी परंपरा के बलबूते अब भारत विदेशों में गोबर की खाद बेंच रहा है. जिसके बल पर मिर्जापुर के सीखड़ ब्लॉक निवासी गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर देश के 10 राज्यों के साथ ही विदेशों में भी सप्लाई कर रहे हैं.

वर्मी कंपोस्ट खाद की विदेशों में बढ़ी मांग
वर्मी कंपोस्ट खाद की विदेशों में बढ़ी मांग
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Published : May 21, 2022, 2:02 PM IST

मिर्जापुर: प्रदेश के मिर्जापुर में कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने और पुरानी परंपरा के बलबूते अब भारत विदेशों में गोबर की खाद बेंच रहा है. जिसके बल पर मिर्जापुर के सीखड़ ब्लॉक निवासी गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर देश के 10 राज्यों के साथ ही विदेशों में भी सप्लाई कर रहे हैं. इस व्यापार से 88 लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही घर बैठे लाखों की कमाई भी हो रही है. वहीं, इसके निर्माण के लिए 25 गांवों से गोबर एकत्रित किए जाते हैं. सीखड़ ग्राम निवासी मुकेश कुमार पांडेय उर्फ सौरभ ने बताया कि गांव में जगह-जगह लगे गोबरों के ढेर को देखकर उन्होंने प्राचीन विधि से वर्मी कंपोस्ट बनाने का निर्णय लिया और फिर उन्होंने काम शुरू किया. देखते ही देखते वर्मी कंपोस्ट की मांग बढ़ती गई. मिर्जापुर के आसपास बढ़ती मांग को देखते हुए उन्होंने काम को बढ़ाया और आज वह देश के मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली समेत कुल 10 राज्यों में वर्मी कंपोस्ट की सप्लाई कर रहे हैं.

इतना ही नहीं गोबर से बने खाद को वह विदेशों में भी निर्यात कर रहे हैं. अभी पहली खेप साउथ कोरिया भेजी गई है. इससे जहां विदेशी मुद्रा अर्जित हो रही है. वहीं इस काम में लगे 88 लोगों को रोजगार मिला है, जो 25 गांवों में ट्रैक्टर के जरिए गोबर को इकट्ठा करके लाते हैं और उसे वर्मी कंपोस्ट बनाने में सहयोग करते हैं.

देश ही नहीं विदेशों में भी बढ़ी मांग: मिर्जापुर के सीखड़ गांव में किसान पहले गोबर से उपले बनाते थे या बचे हुए गोबर को सड़कों व कूड़े पर फेंक दिया करते थे. जिससे जगह-जगह गंदगी फैली रहती थी. इसी को देखकर मुकेश कुमार पांडेय उर्फ सौरभ ने गोबर से कुछ करने की ठानी जिसका नतीजा सबके सामने है. नवचेतना किसान संगठन (एफपीओ) कृषि विभाग, नाबार्ड और उद्यान विभाग के सहयोग से देसी गाय के गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार किया जा रहा है. लेकिन आज इस वर्मी कंपोस्ट खाद की मांग मिर्जापुर या आसपास के जनपदों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश के 10 राज्यों के साथ ही विदेशों में भी इसकी सप्लाई हो रही है. हाल ही में 25 टन देसी गाय के गोबर से निर्मित कंपोस्ट खाद को दक्षिण कोरिया भेजी गई है, जिसकी कीमत 11000 यूएस डॉलर है.

वर्मी कंपोस्ट खाद की विदेशों में बढ़ी मांग

इसे भी पढ़ें - मिर्जापुर के सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ी, कई स्कूलों में एडमिशन लेने की जगह नहीं

नौकरी छोड़ तैयार कर रहे जैविक खाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से लगे मिर्जापुर के सीखड़ ब्लॉक के सीखड़ गांव के रहने वाले मुकेश कुमार पांडेय उर्फ सौरभ ने 2009 में एमबीए की पढ़ाई करने के बाद सात सालों तक नौकरी किया. वहीं बाद में मुंबई में स्टेट प्रोग्राम मैनेजर की नौकरी छोड़कर 4 साल पहले गांव लौटे और यहां बर्बाद हो रहे गोबर को देखकर उन्होंने इससे खाद बनाने का निर्णय लिया और आसपास के 25 गांव से गोबर खरीदकर उससे वर्मी कंपोस्ट तैयार करने लगे. जिससे उन्हें अच्छी खासी कमाई हो रही है. वहीं, मुकेश ने बताया कि इससे करीब 88 लोगों को रोजगार मिला है. जिसमें मजदूर व मैनेजर को मिलाकर 78 लोग डायरेक्ट नौकरी कर रहे हैं तो ट्रैक्टर चालक और सप्लाई देने को 9 वेंडर भी काम कर रहे हैं.

मुकेश ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि वे चाहते हैं कि उनके गांव में पूरी तरह से जैविक विधि से खेती हो और गंगा किनारे होने के चलते प्रधानमंत्री की मंशा भी पूरी हो. उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि नमामि गंगे योजना के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा जैविक कार्य किए जाए. उसी से प्रेरित होकर उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय लिया. मुकेश ने बताया कि आज वो 25 गांवों से गोबर खरीद रहे हैं और करीब 20000 कुंतल खाद का सालाना प्रोडक्शन किया जा रहा है.

कृषि उपनिदेशक अशोक उपाध्याय ने बताया कि नवचेतना किसान संगठन (एफपीओ) की ओर से अच्छा काम किया जा रहा है. किसानों से 2 रुपये किलो गोबर खरीदकर खाद तैयार हो रहा है. ऐसे में किसानों को दो च्वाइस दी गई है, जिसमें वो गोबर के पैसे भी ले सकते हैं या फिर वर्मी कंपोस्ट खाद भी ले सकते हैं.

वर्मी कंपोस्ट खाद के फायदे: वर्मी कंपोस्ट खाद में सभी प्रकार के पोषक तत्व हारमोंस जैम पाए जाते हैं. जबकि उर्वरकों में केवल नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश ही मिलते हैं. केंचुए के खाद का प्रभाव जमीन में ज्यादा दिनों तक बना रहता है. साथ ही पोषक तत्व भी मिलते रहते हैं. जबकि उर्वरक का प्रभाव कुछ समय के लिए ही होता है. वर्मी कंपोस्ट खाद से जमीन बंजर नहीं होती है.

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मिर्जापुर: प्रदेश के मिर्जापुर में कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने और पुरानी परंपरा के बलबूते अब भारत विदेशों में गोबर की खाद बेंच रहा है. जिसके बल पर मिर्जापुर के सीखड़ ब्लॉक निवासी गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर देश के 10 राज्यों के साथ ही विदेशों में भी सप्लाई कर रहे हैं. इस व्यापार से 88 लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही घर बैठे लाखों की कमाई भी हो रही है. वहीं, इसके निर्माण के लिए 25 गांवों से गोबर एकत्रित किए जाते हैं. सीखड़ ग्राम निवासी मुकेश कुमार पांडेय उर्फ सौरभ ने बताया कि गांव में जगह-जगह लगे गोबरों के ढेर को देखकर उन्होंने प्राचीन विधि से वर्मी कंपोस्ट बनाने का निर्णय लिया और फिर उन्होंने काम शुरू किया. देखते ही देखते वर्मी कंपोस्ट की मांग बढ़ती गई. मिर्जापुर के आसपास बढ़ती मांग को देखते हुए उन्होंने काम को बढ़ाया और आज वह देश के मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली समेत कुल 10 राज्यों में वर्मी कंपोस्ट की सप्लाई कर रहे हैं.

इतना ही नहीं गोबर से बने खाद को वह विदेशों में भी निर्यात कर रहे हैं. अभी पहली खेप साउथ कोरिया भेजी गई है. इससे जहां विदेशी मुद्रा अर्जित हो रही है. वहीं इस काम में लगे 88 लोगों को रोजगार मिला है, जो 25 गांवों में ट्रैक्टर के जरिए गोबर को इकट्ठा करके लाते हैं और उसे वर्मी कंपोस्ट बनाने में सहयोग करते हैं.

देश ही नहीं विदेशों में भी बढ़ी मांग: मिर्जापुर के सीखड़ गांव में किसान पहले गोबर से उपले बनाते थे या बचे हुए गोबर को सड़कों व कूड़े पर फेंक दिया करते थे. जिससे जगह-जगह गंदगी फैली रहती थी. इसी को देखकर मुकेश कुमार पांडेय उर्फ सौरभ ने गोबर से कुछ करने की ठानी जिसका नतीजा सबके सामने है. नवचेतना किसान संगठन (एफपीओ) कृषि विभाग, नाबार्ड और उद्यान विभाग के सहयोग से देसी गाय के गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार किया जा रहा है. लेकिन आज इस वर्मी कंपोस्ट खाद की मांग मिर्जापुर या आसपास के जनपदों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश के 10 राज्यों के साथ ही विदेशों में भी इसकी सप्लाई हो रही है. हाल ही में 25 टन देसी गाय के गोबर से निर्मित कंपोस्ट खाद को दक्षिण कोरिया भेजी गई है, जिसकी कीमत 11000 यूएस डॉलर है.

वर्मी कंपोस्ट खाद की विदेशों में बढ़ी मांग

इसे भी पढ़ें - मिर्जापुर के सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ी, कई स्कूलों में एडमिशन लेने की जगह नहीं

नौकरी छोड़ तैयार कर रहे जैविक खाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से लगे मिर्जापुर के सीखड़ ब्लॉक के सीखड़ गांव के रहने वाले मुकेश कुमार पांडेय उर्फ सौरभ ने 2009 में एमबीए की पढ़ाई करने के बाद सात सालों तक नौकरी किया. वहीं बाद में मुंबई में स्टेट प्रोग्राम मैनेजर की नौकरी छोड़कर 4 साल पहले गांव लौटे और यहां बर्बाद हो रहे गोबर को देखकर उन्होंने इससे खाद बनाने का निर्णय लिया और आसपास के 25 गांव से गोबर खरीदकर उससे वर्मी कंपोस्ट तैयार करने लगे. जिससे उन्हें अच्छी खासी कमाई हो रही है. वहीं, मुकेश ने बताया कि इससे करीब 88 लोगों को रोजगार मिला है. जिसमें मजदूर व मैनेजर को मिलाकर 78 लोग डायरेक्ट नौकरी कर रहे हैं तो ट्रैक्टर चालक और सप्लाई देने को 9 वेंडर भी काम कर रहे हैं.

मुकेश ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि वे चाहते हैं कि उनके गांव में पूरी तरह से जैविक विधि से खेती हो और गंगा किनारे होने के चलते प्रधानमंत्री की मंशा भी पूरी हो. उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि नमामि गंगे योजना के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा जैविक कार्य किए जाए. उसी से प्रेरित होकर उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय लिया. मुकेश ने बताया कि आज वो 25 गांवों से गोबर खरीद रहे हैं और करीब 20000 कुंतल खाद का सालाना प्रोडक्शन किया जा रहा है.

कृषि उपनिदेशक अशोक उपाध्याय ने बताया कि नवचेतना किसान संगठन (एफपीओ) की ओर से अच्छा काम किया जा रहा है. किसानों से 2 रुपये किलो गोबर खरीदकर खाद तैयार हो रहा है. ऐसे में किसानों को दो च्वाइस दी गई है, जिसमें वो गोबर के पैसे भी ले सकते हैं या फिर वर्मी कंपोस्ट खाद भी ले सकते हैं.

वर्मी कंपोस्ट खाद के फायदे: वर्मी कंपोस्ट खाद में सभी प्रकार के पोषक तत्व हारमोंस जैम पाए जाते हैं. जबकि उर्वरकों में केवल नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश ही मिलते हैं. केंचुए के खाद का प्रभाव जमीन में ज्यादा दिनों तक बना रहता है. साथ ही पोषक तत्व भी मिलते रहते हैं. जबकि उर्वरक का प्रभाव कुछ समय के लिए ही होता है. वर्मी कंपोस्ट खाद से जमीन बंजर नहीं होती है.

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