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किसानों के लिए संजीवनी साबित होगी मेंथा की खेती, बनाई जा रही ये योजना

विध्य क्षेत्र में किसानों के लिए मेंथा की खेती संजीवनी साबित हो सकती है. पायलट प्रोजेक्ट के तहत जिले में मेंथा (पिपरमिंट) की खेती की जाएगी. विंध्याचल मंडलायुक्त की पहल से जिले के 5 ब्लॉकों में मेंथा की खेती करने की कवायद हो रही है.

विंध्याचल में होगी मेंथा की खेती.
विंध्याचल में होगी मेंथा की खेती.
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Published : Apr 13, 2021, 3:44 PM IST

मिर्जापुर: विंध्याचल मंडलायुक्त की पहल से जिले में मेंथा (पिपरमिंट) की खेती होने जा रही है. पायलट प्रोजेक्ट के तहत 5 ब्लॉकों में मेंथा की खेती शुरू करने की कवायद हो रही है. सफलता मिलने पर पूरे मंडल में अप्रैल से लेकर जून तक मेंथा की खेती करने के लिए किसानों को प्रेरित किया जाएगा.

नकदी फसल में शुमार है मेंथा
नकदी फसल में शुमार मेंथा (पिपरमिंट) की खेती किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है. लिहाजा विंध्याचल मंडल के कमिश्नर योगेश्वर राम मिश्र की पहल पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत जिले के पांच ब्लॉक सिटी, छानबे, कोन, मंझवा और सीखड़ में इसकी खेती शुरू की जाएगी. प्रशासन की मंशा है कि मेंथा की खेती सफल रही तो आने वाले समय में पूरे मंडल में किसानों के लिए संजीवनी साबित होगी. गेहूं कटाई के बाद खाली पड़े खेतों में इसका ट्रायल अप्रैल से जून माह के मध्य किया जाएगा.

जानकारी देते विंध्याचल मंडलायुक्त योगेश्वर राम मिश्र .
गर्मी के मौसम में खाली पड़े खेतों में की जाएगी मेंथा खेतीरोपाई के 90 से 100 दिन के अंदर मेंथा की फसल तैयार हो जाती है. इसे साल में दो बार भी किया जा सकता है. दूसरी बार में 80 से 90 दिन के अंदर ही इसकी फसल तैयार हो जाती है. मौसम अनुकूल नहीं होने पर ज्यादातर किसान मेंथा की फसल को एक ही बार कटाई करने के बाद धान की रोपाई शुरू कर देते हैं. यहां भी ज्यादातर किसान धान की खेती करते हैं. ऐसे में किसान एक बार मेंथा खेती कर अपनी परंपरागत खेती कर सकते हैं.

इसे भी पढ़ें-अंबेडकरनगर: बरसात से मौसम हुआ सुहाना, किसानों की बढ़ी परेशानी

ऐसे होती है मेंथा की खेती
पानी की पर्याप्त उपलब्धता और बलुई दोमट, मटियारी दोमट जमीन पर पिपरमिंट की खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है. जापानी मेंथा की रोपाई के लिए लाइन 30-40 सेंटीमीटर, देसी मेंथा की रोपाई 45-60 सेंटीमीटर और बीच की दूरी लगभग 15 सेंटीमीटर किसानों को रखनी पड़ती है. एक बीघे में लगभग 15 हजार रुपये का खर्च आएगा. फसल के उत्पादन से किसानों को अनुमानित एक लाख तक लाभ हो सकता है.

इन जिलों में पहले से की जा रही पिपरमिंट खेती
उत्तर प्रदेश के बरेली, बाराबंकी, हरदोई, सीतापुर के साथ लखनऊ में मेंथा की खेती की जा रही है. एक बीघे में तैयार मेंथा की फसल से लगभग 20 से 25 लीटर तक तेल निकल सकता है, जिसकी बाजार में कीमत 1000 से लेकर 1600 रुपये प्रति लीटर है. तेल को दिल्ली, बिहार के रोहतास और दिनारा के साथ बाराबंकी (यूपी) के बाजारों में बेचा जा सकता है. मेंथा औषधीय गुणों से युक्त है, इसका प्रयोग दवा, सौंदर्य प्रसाधन के साथ ही पान मसाला की खुशबू और पेय पदार्थ में किया जाता है.

किसानों की आय में होगी वृद्धि
विंध्याचल मंडल के कमिश्नर योगेश्वर राम मिश्र ने बताया कि अप्रैल से जून तक खेत खाली रहते हैं. ऐसे में यहां पर किसानों को मेंथा खेती करने के लिए प्रेरित किया जाएगा. इसकी खेती मंडल के किसानों के लिए वरदान साबित होगी. कृषि का विविधीकरण होने से किसानों को सपोर्ट मिलेगा. किसानों की आय में वृद्धि होगी.

मिर्जापुर: विंध्याचल मंडलायुक्त की पहल से जिले में मेंथा (पिपरमिंट) की खेती होने जा रही है. पायलट प्रोजेक्ट के तहत 5 ब्लॉकों में मेंथा की खेती शुरू करने की कवायद हो रही है. सफलता मिलने पर पूरे मंडल में अप्रैल से लेकर जून तक मेंथा की खेती करने के लिए किसानों को प्रेरित किया जाएगा.

नकदी फसल में शुमार है मेंथा
नकदी फसल में शुमार मेंथा (पिपरमिंट) की खेती किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है. लिहाजा विंध्याचल मंडल के कमिश्नर योगेश्वर राम मिश्र की पहल पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत जिले के पांच ब्लॉक सिटी, छानबे, कोन, मंझवा और सीखड़ में इसकी खेती शुरू की जाएगी. प्रशासन की मंशा है कि मेंथा की खेती सफल रही तो आने वाले समय में पूरे मंडल में किसानों के लिए संजीवनी साबित होगी. गेहूं कटाई के बाद खाली पड़े खेतों में इसका ट्रायल अप्रैल से जून माह के मध्य किया जाएगा.

जानकारी देते विंध्याचल मंडलायुक्त योगेश्वर राम मिश्र .
गर्मी के मौसम में खाली पड़े खेतों में की जाएगी मेंथा खेतीरोपाई के 90 से 100 दिन के अंदर मेंथा की फसल तैयार हो जाती है. इसे साल में दो बार भी किया जा सकता है. दूसरी बार में 80 से 90 दिन के अंदर ही इसकी फसल तैयार हो जाती है. मौसम अनुकूल नहीं होने पर ज्यादातर किसान मेंथा की फसल को एक ही बार कटाई करने के बाद धान की रोपाई शुरू कर देते हैं. यहां भी ज्यादातर किसान धान की खेती करते हैं. ऐसे में किसान एक बार मेंथा खेती कर अपनी परंपरागत खेती कर सकते हैं.

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ऐसे होती है मेंथा की खेती
पानी की पर्याप्त उपलब्धता और बलुई दोमट, मटियारी दोमट जमीन पर पिपरमिंट की खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है. जापानी मेंथा की रोपाई के लिए लाइन 30-40 सेंटीमीटर, देसी मेंथा की रोपाई 45-60 सेंटीमीटर और बीच की दूरी लगभग 15 सेंटीमीटर किसानों को रखनी पड़ती है. एक बीघे में लगभग 15 हजार रुपये का खर्च आएगा. फसल के उत्पादन से किसानों को अनुमानित एक लाख तक लाभ हो सकता है.

इन जिलों में पहले से की जा रही पिपरमिंट खेती
उत्तर प्रदेश के बरेली, बाराबंकी, हरदोई, सीतापुर के साथ लखनऊ में मेंथा की खेती की जा रही है. एक बीघे में तैयार मेंथा की फसल से लगभग 20 से 25 लीटर तक तेल निकल सकता है, जिसकी बाजार में कीमत 1000 से लेकर 1600 रुपये प्रति लीटर है. तेल को दिल्ली, बिहार के रोहतास और दिनारा के साथ बाराबंकी (यूपी) के बाजारों में बेचा जा सकता है. मेंथा औषधीय गुणों से युक्त है, इसका प्रयोग दवा, सौंदर्य प्रसाधन के साथ ही पान मसाला की खुशबू और पेय पदार्थ में किया जाता है.

किसानों की आय में होगी वृद्धि
विंध्याचल मंडल के कमिश्नर योगेश्वर राम मिश्र ने बताया कि अप्रैल से जून तक खेत खाली रहते हैं. ऐसे में यहां पर किसानों को मेंथा खेती करने के लिए प्रेरित किया जाएगा. इसकी खेती मंडल के किसानों के लिए वरदान साबित होगी. कृषि का विविधीकरण होने से किसानों को सपोर्ट मिलेगा. किसानों की आय में वृद्धि होगी.

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