मिर्जापुर: ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को अब घर में ही रोजगार के अवसर मिल रहे हैं. मिर्जापुर के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की महिलाएं एक कदम आगे बढ़ते हुए परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए ड्रेस की सिलाई कर रही हैं. मुख्य विकास अधिकारी प्रियंका निरंजन की पहल पर स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बच्चों का नाप लेकर फिट ड्रेस बनाकर बच्चों तक पहुंचा रही हैं.
समूह की महिलाओं के हाथों से बने ड्रेस को जिलाधिकारी ने अपने गोद लिए गांव के स्कूल पर वितरित किए. इस सत्र में 64000 यूनिफॉर्म ग्रामीण महिलाओं को बनाने के लिए दिया गया है. इससे गांव की महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है और साथ ही बच्चों को ड्रेस भी मिल जा रहा है.
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राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को मिला रोजगार
प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को प्रतिवर्ष दो जोड़ी ड्रेस दिया जाता है. इसके लिए सरकार ने प्रति जोड़ी 200 रुपये खर्च करती है. इसके बावजूद भी एसएमसी और संबंधित शिक्षक बच्चों को सही समय और सही नाप का ड्रेस उपलब्ध नहीं करा पाते हैं.
इसको देखते हुए मुख्य विकास अधिकारी प्रियंका निरंजन ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ग्रामीण के तहत गठित स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को बच्चों का ड्रेस सिलवाने का बीड़ा उठाया है. समूह की महिलाओं ने बच्चों का नाप लेकर ड्रेस सिलकर स्कूल पढ़ने वाले बच्चों तक पहुंचा रही हैं.
सिलाई कला केंद्र के माध्यम से महिलाओं को दिया जाता है प्रशिक्षण
मुख्य विकास अधिकारी का कहना है कि महिलाओं के समूह को कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है. यह प्रशिक्षण एक सिलाई कला केन्द्र के माध्यम से दिया जाता है. उनको रोजगार उपलब्ध कराने के लिए शिक्षा विभाग ने जो नि:शुल्क यूनिफॉर्म दी जाती है , उसे कन्वर्जन करने का प्रयास किया है. विद्यालयों में जो ड्रेस दिया जा रहा है, उसे गांव की स्वयं सहायता समूह से संबंधित महिलाएं तैयार कर रही हैं. वह संबंधित स्कूल के मैनेजमेंट से संपर्क कर जो उनके नियम है, उसके अनुसार कपड़ा लेकर सिलाई कर सप्लाई करती हैं.
पिछले वर्ष हमने पायलट प्रोजेक्ट के तहत 200 स्कूलों में यह काम करवाया था. इस वर्ष दायरा बढ़ाकर लगभग 64000 यूनिफॉर्म मतलब 32000 बच्चों को छह ब्लॉक के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं सिलाई कर रही है.
-प्रियंका निरंजन, मुख्य विकास अधिकारी
हुनर हो तो कमाना हो आसान
ड्रेस वितरण करने वाली निर्मला देवी का कहना है कि हमें स्कूल से सिलने के लिए 110 रुपये एक कपड़े की सिलाई मिलती है. हमारे समूह में 15 से 20 महिलाएं काम कर रही हैं. हमने 12 स्कूलों का नाप लिया है. हमलोग तीन चार कैटेगरी में नाप लेते हैं इसके बाद कपड़ा ले जाकर स्कूल से सिलाई करते हैं. इसमें स्कूल के बच्चों को पक्का सिलाई का कपड़ा मिल जा रहा है.