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विधानसभा चुनाव 2022 : जातिगत जनगणना को लेकर अपना दल (S) और भाजपा में मतभेद - उत्तर प्रदेश के केबिन मंत्री अनिल राजभर

उत्तर प्रदेश में इस समय भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी अपना दल (एस) भी वोटरों को लुभाने के लिए जातिगत जनगणना की मांग कर रही है. हर जनसभा और हर कार्यक्रम में अनुप्रिया पटेल बैकवर्ड वोट को साधने के लिए जातिगत जनगणना करवाने और एक पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय के गठन की भी मांग करती रहीं हैं.

जातिगत जनगणना को केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया और भाजपा के अनिल राजभर में मतभेद
जातिगत जनगणना को केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया और भाजपा के अनिल राजभर में मतभेद
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Published : Sep 13, 2021, 10:06 AM IST

Updated : Sep 13, 2021, 11:40 AM IST

मिर्जापुर : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है. विपक्ष के साथ ही भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने भी जातिगत जनगणना कराने की मांग को लेकर विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मांग शुरू कर दी है.

इसके अब कई राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं. राजनीति के कई जानकार इसे अपना दल (एस) की सोची समझी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं. कई इसे उत्तर प्रदेश चुनाव में ओबीसी वोटरों को लुभाने का स्टंट करार दे रहे हैं. लेकिन जिस पार्टी की अनुप्रिया पटेल सहयोगी हैं, उसी पार्टी के उत्तर प्रदेश के केबिन मंत्री अनिल राजभर ने कुछ दिन पहले मिर्जापुर में जातिगत जनगणना का विरोध किया था.

कहा था कि अंग्रेजों की हुकूमत हमारे लिए उदाहरण नहीं बन सकती. भारत गुलाम था, तब अंग्रेजों ने जातिगत जनगणना कराई थी. जातिगत गणना से अंग्रेज फूट डालो और राज करो का काम करते रहे हैं. अब हम जातिगत जनगणना पर विश्वास नहीं करते.

इसी बीच आने वाले चुनाव में अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल भी अनुप्रिया पटेल के लिए रोड़ा बनती नजर आ रहीं हैं. ऐसे में सवाल यह है कि जब अनुप्रिया पटेल के सहयोगी जातिगत जनगणना पर विश्वास ही नहीं करते तो वह ओबीसी वोटरों को कैसे साध पाएंगी.

बता दें कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी मतदाता चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. इसीलिए राजनीतिक पार्टियां ओबीसी वोट बैंक को विधानसभा चुनाव के पहले साधने में अभी से जुट गई हैं.

2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ अपना दल (एस) चुनाव लड़ी थी. इसमें बड़ी संख्या में ओबीसी वोट मिले थे जिसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी को इन चुनावों में बड़ी जीत मिली थी.

इसलिए अब सभी पार्टियां एक बार फिर जातिगत गणना का मुद्दा उठाकर ओबीसी वोट बैंक को साधने में जुटी हैं. इसमें भाजपा की सहयोगी अपना दल भी शामिल है.

यह भी पढ़ें : प्रदेश में शराब माफियाओं पर शिकंजा, योगी सरकार ने लिया फांसी का कठोर फैसला

हर जनसभा में अनुप्रिया उठाती हैं जातिगत जनगणना का मुद्दा

उत्तर प्रदेश में इस समय जातिगत जनगणना को लेकर सभी पार्टियां के साथ भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी अपना दल (एस) भी वोटरों को लुभाने के लिए जातिगत जनगणना की मांग कर रही है.

हर जनसभा हर कार्यक्रम में अनुप्रिया पटेल बैकवर्ड वोट को साधने के लिए जातिगत जनगणना करवाने के साथ ही एक पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय का गठन भी करने की मांग करती रहीं हैं.

वहीं, पिछड़े वर्ग से आने वाले भारतीय जनता पार्टी के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने कुछ दिन पहले मिर्जापुर के विंध्याचल में विपक्षियों पर निशाना साधते हुए कहा कि अंग्रेजों की हुकूमत को हम उदाहरण के रूप में नहीं ले सकते. भारत जब गुलाम था, तब अंग्रेजों ने जातिगत जनगणना कराई थी.

जातिगत जनगणना से अंग्रेज फुट डालो राज करो का काम करते रहे. हम जातिगत जनगणना पर विश्वास नहीं करते. अनिल राजभर की बात के भी कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं.

ओबीसी वोटर निर्धारित करते हैं प्रदेश की 100 से ज्यादा सीटें

उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों में यादवों के बाद सबसे ज्यादा संख्या कुर्मी वोटरों की है. यूपी में इनकी आबादी 9 प्रतिशत है. करीब 100 से ज्यादा सीटों पर ये प्रभाव रखते हैं. यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी यूपी में अनुप्रिया पटेल को अपना सहयोगी बनाकर रखना चाहती है.

अनुप्रिया पटेल को दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. भारतीय जनता पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव में भी इसी समीकरण के साथ उतरना चाहती है. पिछले चुनाव में अनुप्रिया पटेल ने 11 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थीं जिसमें 9 विधायक जीते थे.

मिर्जापुर : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है. विपक्ष के साथ ही भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने भी जातिगत जनगणना कराने की मांग को लेकर विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मांग शुरू कर दी है.

इसके अब कई राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं. राजनीति के कई जानकार इसे अपना दल (एस) की सोची समझी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं. कई इसे उत्तर प्रदेश चुनाव में ओबीसी वोटरों को लुभाने का स्टंट करार दे रहे हैं. लेकिन जिस पार्टी की अनुप्रिया पटेल सहयोगी हैं, उसी पार्टी के उत्तर प्रदेश के केबिन मंत्री अनिल राजभर ने कुछ दिन पहले मिर्जापुर में जातिगत जनगणना का विरोध किया था.

कहा था कि अंग्रेजों की हुकूमत हमारे लिए उदाहरण नहीं बन सकती. भारत गुलाम था, तब अंग्रेजों ने जातिगत जनगणना कराई थी. जातिगत गणना से अंग्रेज फूट डालो और राज करो का काम करते रहे हैं. अब हम जातिगत जनगणना पर विश्वास नहीं करते.

इसी बीच आने वाले चुनाव में अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल भी अनुप्रिया पटेल के लिए रोड़ा बनती नजर आ रहीं हैं. ऐसे में सवाल यह है कि जब अनुप्रिया पटेल के सहयोगी जातिगत जनगणना पर विश्वास ही नहीं करते तो वह ओबीसी वोटरों को कैसे साध पाएंगी.

बता दें कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी मतदाता चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. इसीलिए राजनीतिक पार्टियां ओबीसी वोट बैंक को विधानसभा चुनाव के पहले साधने में अभी से जुट गई हैं.

2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ अपना दल (एस) चुनाव लड़ी थी. इसमें बड़ी संख्या में ओबीसी वोट मिले थे जिसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी को इन चुनावों में बड़ी जीत मिली थी.

इसलिए अब सभी पार्टियां एक बार फिर जातिगत गणना का मुद्दा उठाकर ओबीसी वोट बैंक को साधने में जुटी हैं. इसमें भाजपा की सहयोगी अपना दल भी शामिल है.

यह भी पढ़ें : प्रदेश में शराब माफियाओं पर शिकंजा, योगी सरकार ने लिया फांसी का कठोर फैसला

हर जनसभा में अनुप्रिया उठाती हैं जातिगत जनगणना का मुद्दा

उत्तर प्रदेश में इस समय जातिगत जनगणना को लेकर सभी पार्टियां के साथ भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी अपना दल (एस) भी वोटरों को लुभाने के लिए जातिगत जनगणना की मांग कर रही है.

हर जनसभा हर कार्यक्रम में अनुप्रिया पटेल बैकवर्ड वोट को साधने के लिए जातिगत जनगणना करवाने के साथ ही एक पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय का गठन भी करने की मांग करती रहीं हैं.

वहीं, पिछड़े वर्ग से आने वाले भारतीय जनता पार्टी के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने कुछ दिन पहले मिर्जापुर के विंध्याचल में विपक्षियों पर निशाना साधते हुए कहा कि अंग्रेजों की हुकूमत को हम उदाहरण के रूप में नहीं ले सकते. भारत जब गुलाम था, तब अंग्रेजों ने जातिगत जनगणना कराई थी.

जातिगत जनगणना से अंग्रेज फुट डालो राज करो का काम करते रहे. हम जातिगत जनगणना पर विश्वास नहीं करते. अनिल राजभर की बात के भी कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं.

ओबीसी वोटर निर्धारित करते हैं प्रदेश की 100 से ज्यादा सीटें

उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों में यादवों के बाद सबसे ज्यादा संख्या कुर्मी वोटरों की है. यूपी में इनकी आबादी 9 प्रतिशत है. करीब 100 से ज्यादा सीटों पर ये प्रभाव रखते हैं. यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी यूपी में अनुप्रिया पटेल को अपना सहयोगी बनाकर रखना चाहती है.

अनुप्रिया पटेल को दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. भारतीय जनता पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव में भी इसी समीकरण के साथ उतरना चाहती है. पिछले चुनाव में अनुप्रिया पटेल ने 11 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थीं जिसमें 9 विधायक जीते थे.

Last Updated : Sep 13, 2021, 11:40 AM IST
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