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मिर्जापुर: मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से बनाई जा रही अगरबत्तियां - mirzapur news in hindi

मिर्जापुर में स्थित विंध्याचल मंदिर से निकलने वाला फूल से अब अगरबत्ती बनाने का काम किया जाता है. इन अगरबत्तियों को बनाने का काम करती हैं उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं.

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मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से बन रही है अगरबत्तियां
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Published : Jan 9, 2020, 2:49 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

मिर्जापुर: विंध्याचल मंदिर से निकलने वाले फूल अब कचरे में नहीं फेंके जा रहे हैं. अब उन फूलों को इकट्ठा करके उससे अगरबत्तियां बनाई जा रही है. यह संभव हुआ है उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा.

मंदिरों से निकलने वाले फूलों से बन रही अगरबत्ती
उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा विंध्याचल के सभी मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर इनसे अगरबत्तियां बनाने का काम किया जा रहा है. इस पहल से जहां एक ओर गरीब महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है, वहीं विंध्याचल के मंदिरों से निकलने वाले फूल कचरे का हिस्सा नहीं बन रहे हैं और न ही यह गंगा नदी को दूषित कर रहे हैं.

मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से बन रही है अगरबत्तियां.

इस समूह में 10 से 11 महिलाएं काम कर रही हैं. महिलाएं मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर, फूलों की छंटनी के बाद उनको सुखाकर चुर्ण तैयार करती हैं और फिर उसी से अगरबत्ती तैयार की जाती है. इन अगरबत्तियों का बंडल बनाकर उन्हें धूप में सुखाया जाता है. सूखने के बाद 24 तिल्ली एक डिब्बे में पैक किए जाते हैं और इसे अष्टभुजा मंदिर, कालीखोह मंदिर, विंध्याचल मंदिर के पास दुकानों पर पहुंचा कर सेल करती हैं.

12 रुपये प्रति डिब्बे बिकती हैं अगरबत्तियां
अगरबत्ती बना रही महिलाओं का कहना है कि पहले हम लोग घर में खाली बैठे रहते थे, लेकिन अब समूह से जुड़ गए हैं और अगरबत्ती बना रहे हैं. अब हम लोगों की कमाई भी हो जा रही है. पहले मंदिरों में चढ़े फूलों को लोग गंगा नदी में या कचरे में फेंक देते थे. जिससे गंदगी होती थी, लेकिन अब हम लोग इससे अगरबत्ती बनाते हैं इसे मंदिरों के आसपास ही बेचते हैं.

विंध्याचल के मंदिरों में जो फूल चढ़ाया जाता है उसे अगर हम अगरबत्ती में यूज करें तो प्रसाद के रूप में वितरित किया जा सकता है. साथ ही जो गंदगी होती थी सड़क पर या गंगा नदी में उसके निस्तारण से बचा जा सकता है. उस फूल को हमारे सहायता समूह की महिलाएं इकट्ठा करके सुखाकर चूर्ण बनाकर अगरबत्ती बना रही हैं और पैकेजिंग कर मां के दरबार में बिक्री की जा रही है. इससे महिलाओं की आमदनी भी हो जा रही है और जो गंदगी होती थी उससे भी बचा जा रहा है.

- प्रियंका निरंजन, मुख्य विकास अधिकारी

मिर्जापुर: विंध्याचल मंदिर से निकलने वाले फूल अब कचरे में नहीं फेंके जा रहे हैं. अब उन फूलों को इकट्ठा करके उससे अगरबत्तियां बनाई जा रही है. यह संभव हुआ है उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा.

मंदिरों से निकलने वाले फूलों से बन रही अगरबत्ती
उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा विंध्याचल के सभी मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर इनसे अगरबत्तियां बनाने का काम किया जा रहा है. इस पहल से जहां एक ओर गरीब महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है, वहीं विंध्याचल के मंदिरों से निकलने वाले फूल कचरे का हिस्सा नहीं बन रहे हैं और न ही यह गंगा नदी को दूषित कर रहे हैं.

मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से बन रही है अगरबत्तियां.

इस समूह में 10 से 11 महिलाएं काम कर रही हैं. महिलाएं मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर, फूलों की छंटनी के बाद उनको सुखाकर चुर्ण तैयार करती हैं और फिर उसी से अगरबत्ती तैयार की जाती है. इन अगरबत्तियों का बंडल बनाकर उन्हें धूप में सुखाया जाता है. सूखने के बाद 24 तिल्ली एक डिब्बे में पैक किए जाते हैं और इसे अष्टभुजा मंदिर, कालीखोह मंदिर, विंध्याचल मंदिर के पास दुकानों पर पहुंचा कर सेल करती हैं.

12 रुपये प्रति डिब्बे बिकती हैं अगरबत्तियां
अगरबत्ती बना रही महिलाओं का कहना है कि पहले हम लोग घर में खाली बैठे रहते थे, लेकिन अब समूह से जुड़ गए हैं और अगरबत्ती बना रहे हैं. अब हम लोगों की कमाई भी हो जा रही है. पहले मंदिरों में चढ़े फूलों को लोग गंगा नदी में या कचरे में फेंक देते थे. जिससे गंदगी होती थी, लेकिन अब हम लोग इससे अगरबत्ती बनाते हैं इसे मंदिरों के आसपास ही बेचते हैं.

विंध्याचल के मंदिरों में जो फूल चढ़ाया जाता है उसे अगर हम अगरबत्ती में यूज करें तो प्रसाद के रूप में वितरित किया जा सकता है. साथ ही जो गंदगी होती थी सड़क पर या गंगा नदी में उसके निस्तारण से बचा जा सकता है. उस फूल को हमारे सहायता समूह की महिलाएं इकट्ठा करके सुखाकर चूर्ण बनाकर अगरबत्ती बना रही हैं और पैकेजिंग कर मां के दरबार में बिक्री की जा रही है. इससे महिलाओं की आमदनी भी हो जा रही है और जो गंदगी होती थी उससे भी बचा जा रहा है.

- प्रियंका निरंजन, मुख्य विकास अधिकारी

Intro:फूलों की खुशबू पूरे वातावरण को सुगंधित कर देती है चाहे मंदिर हो मस्जिद हो या फिर गुरुद्वारा। लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि चढ़ाने के बाद इन फूलों का क्या होता है। तो हम बताते हैं फूलों को बेकार समझकर जो कचरे में फेंक दिया जाता था या नदियों में जिससे गंदगी होती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है क्योंकि अब फूलों से अगरबत्ती बनाई जा रही है। मिर्जापुर के विंध्याचल में भी मंदिरों से निकलने वाले पुल कचरे का हिस्सा नहीं बन रहे हैं। न ही गंगा नदी को दूषित कर रहे हैं। यह संभव हुआ है उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा विंध्याचल के सभी मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर इनसे अगरबत्तियां बना रही हैं। इससे पूजा घर तो महकने ही लगे हैं गरीब महिलाओं को रोजगार भी मिल गया है।


Body:मिर्जापुर के विंध्याचल के मंदिरों से निकलने वाले फूल कचरे का हिस्सा नहीं बन रहे हैं न ही यह गंगा नदी को दूषित कर रहे हैं यह अनूठा प्रयोग संभव हुआ है उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा विंध्याचल मंदिर अष्टभुजा मंदिर कालिखोह मंदिरों से फूलों को इकठ्ठा कर इनसे अगरबत्तियां बना रही है इससे पूजा घर तो महकने ही लगे हैं इन गरीब महिलाओं को रोजगार भी मिल गया है। इस समूह में 10 से 11 महिलाएं काम कर रही हैं। यह महिलाएं मंदिरों से फूलों को लाकर इकट्ठा कर फूलों की छटनी कर कचरे को अलग करती हैं इसके बाद फूलों को सुखाकर इसका चुर्ण बनाकर फिर अगरबत्ती तैयार करती हैं। इन अगरबत्तीया को बंडल बनाया जाता है फिर धूप में सुखाया जाता है सूखने के बाद 24 तिल्ली एक डिब्बे में पैक किए जाते हैं। इसे अष्टभुजा मंदिर कालीखोह मंदिर विंध्याचल मंदिर के पास दुकानों पर पहुंचा कर सेल करती है 12 रुपये प्रति डिब्बे बिकता है। अगरबत्ती बना रहे महिलाओं का कहना है कि पहले हम लोग घर में खाली बैठे रहते थे लेकिन अब समूह से जुड़ गए हैं अगरबत्ती य बना रहे हैं अब हम गांव से लेकर शहर तक आने-जाने लगे हैं हम लोगों की कमाई भी हो जा रही है पहले फूल लोग मंदिरों में जो चढ़ाते थे गंगा नदी में या कचरे में फेंक देते थे जिससे गंदगी होती थी लेकिन अब हम लोग इसे उठाकर लाते हैं छटनी कर सुखाकर चूर्ण बनाकर अगरबत्ती बनाते हैं इसे मंदिरों के आसपास ही बेचते हैं। अगरबत्ती बनाने के लिए कुछ मटेरियल बनारस चलाते हैं। हम जितने महिलाएं जुड़े हैं बहुत खुश हैं।
वह मुख्य विकास अधिकारी प्रियंका निरंजन कहना है कि विंध्याचल के मंदिरों में जो फूल चढ़ाया जाता है उसे हम अगरबत्ती में यूज़ करें तो प्रसाद के रूप में वितरित किया जा सकता है साथ ही जो गंदगी होती थी सड़क पर या गंगा नदी में जो फेंक दिया जाता था उससे भी बचा जा सकता है। उस फूल को हमारे सहायता समूह की महिलाओं ने इकट्ठा करके सुखाकर चूर्ण बनाकर अगरबत्ती बना रही हैं पैकेजिंग की है ।और यह मां के दरबार में बिक्री की जा रही है इससे महिलाओं की आमदनी भी हो जा रही है। और जो गंदगी होती थी उससे भी बचा जा रहा है ।अभी से डेढ़ सौ से 200 महिलाएं जुड़ी हुई हैं अपने घरों में बना रही हैं। इसे आगे अभी तैयारी है कि किसी कमर्शियल प्रतिष्ठान से जोड़ने की जिससे खुले बाजार में बिक्री हो सके आगे मंदिर परिसर में दुकान भी स्थापित करने की योजना है अपने उत्पादन की महिलाएं बिक्री भी कर सके और अधिक से अधिक लोगों के पास उनके उत्पाद पहुंच सके और उनकी आमदनी भी हो सके।

बाईट-गीता-महिला समूह की सदस्य
बाईट-निशा-महिला समूह की सदस्य
बाईट-प्रियंका निरंजन-सीडीओ

जय प्रकाश सिंह
मिर्ज़ापुर
9453881630


Conclusion:
Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST
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