मेरठ : आज (4 फरवरी) विश्व कैंसर दिवस है. सरकार कैंसर के मरीजाें काे सभी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने का दावा ताे करती है, लेकिन हकीकत में हालात कुछ और ही हाेते हैं. मेरठ के लाला लाजपतराय मेमाेरियल मेडिकल कॉलेज में भी ऐसा ही हाल है. यहां रेडियोथेरेपी की सुविधा होने के बावजूद मरीजों काे इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. 2015 से अब तक कैंसर के मरीजों को सिर्फ 2 महीने ही रेडियोथेरेपी की सुविधा मिल सकी है. जिला अस्पताल में तो कोई सुविधा है ही नहीं. ऐसे में मरीजाें काे काफी परेशान हाेना पड़ता है.
केवल 43 दिन हुई रेडियोथेरेपी : 7 मई 2015 से एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज में कैंसर के मरीजों की रेडियो थेरेपी होनी बंद हाे गई थी. मेडिकल कॉलेज में लगी रेडियो एक्टिव सोर्स कोबाल्ट 60 मशीन में तकनीकी दिक्कत के कारण कैंसर के मरीजों को रेडियोथेरेपी के लिए रेफर किया जा रहा था. तत्कालीन कमिश्नर सुरेंद्र सिंह के दखल के बाद बीते साल 19 मई काे रेडियोथेरेपी की दाेबारा से शुरुआत हाे पाई.
रेडिएशन सेफ्टी ऑफिसर की नियुक्ति का इंतजार : मेडिकल कॉलेज में रेडिएशन सेफ्टी ऑफिसर डॉ. एके तिवारी 30 जून को सेवानिवृत्त हो चुके हैं. इसके बाद से मरीजाें की रेडियोथेरेपी बंद है. जिम्मेदार दलील देते हैं कि जब तक रेडिएशन सेफ्टी ऑफिसर की तैनाती नहीं हाे जाती तब तक यह सुविधा मरीजों को नहीं दी जा सकती है. जिला अस्पताल में भी रेडियोथेरेपी का कोई इंतजाम नहीं है.
ईटीवी भारत ने मेडिकल कॉलेज के रेडियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर सुभाष सिंह से बातचीत की. उन्हाेंने बताया कि मेडिकल कॉलेज में कैंसर की सर्जरी की जा सकती है. जिनको कीमोथेरेपी की जरूरत है, उन्हें कीमोथेरेपी लग जाती है. उन्होंने बताया कि रेडिएशन की मशीन फिलहाल बंद है. उम्मीद है कि जल्द ही रेडिएशन सेफ्टी ऑफिसर की तैनाती हाे जाएगी. मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की तरफ से इस संबंध में पत्र भी लिखा गया है. मेडिकल कॉलेज में रेडिएशन के लिए 1996 में कोबाल्ट मशीन लगी थी. तब से मरीजाें काे इसकी सुविधा मिल रही है. हालांकि 5 से 7 साल के बीच में मशीन के रेडियो ऐक्टिव सोर्स को बदलने की आवश्यकता हुई थी. 2 बार उसे बदला भी जा चुका है. नियमित रूप से मरीजाें काे 2015 से इस सेवा का लाभ मिलना शुरू हुआ था.
कैंसर की अब जल्द हो जाती है पहचान : डॉक्टर सुभाष सिंह कहते हैं कि अब सुविधाएं हाे गईं हैं. पहले काफी मुश्किल होता था. अब जगह-जगह डायग्नोस्टिक सेंटर हो गए हैं. इससे कैंसर का जल्दी पता लग जाता है. लोगों में भी जागरूकता आई है. डॉक्टर ने बताया कि रेडियोथेरेपी की जहां तक बात है तो ऐसे मरीज जो यहां उपचार के लिए आते हैं तो उन्हें सरकारी संस्थानों के लिए रेफर कर देते हैं. दिल्ली कैंसर इंस्टीट्यूट, आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, मौलाना आजाद और लेडी हार्डिंग के लिए मरीजाें काे रेफर किया जाता है. मेडिकल कॉलेज में निजी हॉस्पिटल के मुकाबले कैंसर का इलाज कराना काफी किफायती है.
कैंसर से बचाव के लिए इन बाताें का ध्यान रखना जरूरी : डॉक्टर सुभाष ने बताया कि कैंसर से बचाव के लिए स्मोकिंग और शराब से बचना चाहिए. मिलावटी खाने से बचें. फास्ट फूड से दूरी बनाकर रखें. यह शरीर के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक हैं. सहायक आचार्य डॉक्टर नलिन बताते हैं कि आजकल सर्वाइकल कैंसर वाले मरीज ज्यादा आते हैं. ब्रेस्ट कैंसर वाले मरीज भी अधिक आ रहे हैं. मुंह के कैंसर के मरीज भी बढ़े हैं. ऐसे मरीज सबसे ज्यादा आ रहे हैं जिनकी गाल ब्लैडर (पित्त की थैली) में कैंसर बन रहा है. ब्लड कैंसर के मैरेज भी आ रहे हैं.
डॉक्टर नलिन बताते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों को सलाह दी जाती है कि वह अपने परिवार में बाकी लोगों की भी जांच करा लें. कैंसर आनुवंशिक भी होता है. जांचें महंगी हैं, लेकिन जितनी जल्दी पता चल जाएगा, उसका उपचार भी उतनी जल्दी हाे सकेगा. प्राइमरी स्टेज पर मरीज को जल्द आराम हो सकता है. अगर 4 स्टेज वाला मरीज उपचार के लिए आता है ताे इलाज करना कठिन हाे जाता है. मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य आरसी गुप्ता का कहना है कि वह पत्राचार लगातार करते रहते हैं. इससे आगे उनके हाथ में भी कुछ नहीं है.
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