मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पांच दशक से हाईकोर्ट बेंच की मांग उठ रही है. अधिवक्ता इस मांग के समर्थन में सप्ताह में एक दिन कार्य बहिष्कार करते आ रहे हैं. लेकिन किसी भी सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. हालांकि, तमाम दलों के नेता वकीलों की इस मांग को जायज भी ठहराते हैं. यूं तो प्रदेश में हाईकोर्ट प्रयागराज में है. वहीं यहां से महज लगभग दो सौ किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ में भी हाईकोर्ट बेंच है. लेकिन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसी भी नजदीकी जिले की दूरी इलाहाबाद हाईकोर्ट से लगभग 400 सौ किलोमीटर है. वहीं, सहारनपुर से तो यह दूरी लगभग 750 किलोमीटर है. इसलिए यहां के लोग और अधिवक्ता कहता हैं कि हाईकोर्ट से नजदीक तो पाकिस्तान का लाहौर है.
पूर्व चीफ जस्टिस और राष्ट्रपति से भी लगाई गुहारः मेरठ बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं सीनियर एडवोकेट गजेंद्र सिंह धामा कहते हैं कि वकालत के प्रोफेशन में उनका 51 वां साल चल रहा है, तभी से वह देखते आ रहे हैं कि पश्चिमी यूपी के लिए हाईकोर्ट बेंच की मांग उठती चली आ रही है. जब वह अध्यक्ष थे तो देश का कोई ऐसा नेता नहीं था जिसके सामने उन्होंने इस मांग को ना रखा हो. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, राष्ट्रपति से मिले. हर किसी ने इसे जायज मांग बताई है. सोनिया गांधी ने तो इस मांग को सुनकर अपनी हैरानी भी जताई थी. यह भी कहा था कि उन्हें ताज्जुब है कि यह मांग अब तक क्यों नहीं मांगी गई.
हाईकोर्ट में पश्चिमी यूपी के 80 फीसदी मामले लंबित : एडवोकेट धामा कहते हैं कि यह मांग नहीं पश्चिम के लोगों की जरूरत है. सहारनपुर के लोगों को अगर हाईकोर्ट जाना है तो लगभग 700 किलोमीटर से अधिक दूरी तय करनी होती है. इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस समय 12 लाख मामले लंबित हैं, जिनमें से पश्चिमी यूपी के ही अकेले 80 प्रतिशत केस हैं. प्रदेश लखनऊ और प्रयगराज में हाईकोर्ट की बेंच और इनकी दूरी लगभग 200 किलोमीटर ही है. पश्चिमी यूपी के साथ यह न्याय नहीं है. फिर चाहे वह आगरा के अधिवक्ता हों या फिर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मेरठ सहारनपुर समेत वेस्ट का कोई भी जिला क्यों न हो. पब्लिक को जाने में असुविधा होती है. धामा कहते हैं कि जब लोक अदालतें लगाते हैं तो आखिर बेंच क्यों नहीं देते. पीएम मोदी की पहली सरकार में यह मांग कानून मंत्री के समक्ष रखी खूब मजबूती से उठाई गई थी. लेकिन, हुआ कुछ भी नहीं. ऐसे में यूपी का बंटवारा हो तो स्वतः ही हाईकोर्ट पश्चिम में आ जाएगी.
इसे भी पढ़े-यूपी विधानसभा चुनाव 2022: आगरा में चुनावी चौपाल, अधिवक्ताओं ने की हाईकोर्ट बेंच की मांग
मांग के समर्थन में चलता रहेगा आंदोलन: 41 साल से मेरठ में प्रेक्टिस कर रहे एडवोकेट दुष्यन्त कुमार कहते हैं कि जनता की मांग वकीलों के द्वारा उठाई जाती है. अगर प्रदेश के विभाजन की मांग करेंगे तो हम पर उंगलियां उठेंगी और इस मुद्दे को राजनीति से जोड़ दिया जाएगा, लेकिन यह हमें भी मालूम है कि अगर अलग राज्य बन जाए तो स्वतः ही फिर पश्चिम उत्तर प्रदेश को हाईकोर्ट मिल जाएगा. वहीं, मेरठ कचहरी में 42 साल से प्रेक्टिस कर रहे सीनियर एडवोकेट ब्रजपाल सिंह कहते हैं कि जंतर-मंतर व संसद भवन पर अनेकों बार धरने हुए, गिरफ्तारी हुई, जेल भरो आंदोलन हुए फिर भी बेंच नहीं आई और संघर्ष जारी रहा. बीजेपी के पूर्व जिला अध्यक्ष नैन सिंह तोमर तोमर कहते हैं कि जब 2000 से 2003 के बीच में वह जिला अध्यक्ष थे, उसे वक्त भी बेंच की मांग को लेकर अधिवक्ता आंदोलन करते थे. उन्होंने विपक्ष में रहकर भी मांग उठाई थी. मांग जायज है और यह सरकारों को देखना होगा कि सस्ता और सुलभ न्याय मिलना चाहिए. न्याय के लिए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा से आर्थिक नुकसान होना तो स्वाभाविक है.
सस्ता सुलभ न्याय मिले तो बने बात: वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ सादाब रिजवी कहते हैं कि जनता को स्सता और सुलभ न्याय मिलना चाहिए. अगर हम अपने घर के बाहर दुकान से कुछ सामान लेने जाते हैं, तब भी नजदीकी दुकान ही हम खोजते हैं. हर पार्टी के नेता इस मांग का समर्थन भी करते हैं. लेकिन, सकारात्मक परिणाम अभी तक नहीं मिला है. ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि इस महत्वपूर्ण मांग को पूरा कौन सी सरकार करेगी? वह दिन कब आएगा. फिलहाल, इस जायज मांग के लिए अलग अलग जिलों में लगातार मांग उठाई जा रही हैं, लेकिन सेपरेट बेंच की मांग सरकारों के मूकदर्शक और उदासीनता भरे रवैये के चलते अभी तो नहीं लगता कि पूरी हो पाएगी.
यह भी पढ़े-सालों से मेरठ कर रहा हाईकोर्ट बेंच की मांग, मगर मिली है बस 'तारीख'