ETV Bharat / state

निकाय चुनाव में क्या खतौली की तर्ज पर गठबंधन को मेरठ में मिलेगी सफलता? - खतौली पैटर्न पर मेयर चुनाव

पश्चिमी यूपी की राजनैतिक राजधानी के तौर पर मेरठ की अपनी पहचान है. यहां मेयर की कुर्सी पर मुकाबला इस बार दिलचस्प होता दिख रहा है. प्रमुख रूप से बीजेपी, बीएसपी और सपा के साथ साथ आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी उतारा है. गठबंधन पूर्व में खतौली में मिली सफलता से गदगद है. खतौली मॉडल पर ही मेरठ में मेयर की कुर्सी पाने का सपना देख रहा है. क्या यह सपना पूरा होगा या बाजी कोई और मारेगा. इसी पर पेश है विश्लेषणात्मक रिपोर्ट...

मेरठ में निकाय चुनाव को लेकर  विश्लेषणात्मक रिपोर्ट.
मेरठ में निकाय चुनाव को लेकर विश्लेषणात्मक रिपोर्ट.
author img

By

Published : Apr 27, 2023, 11:40 AM IST

मेरठ में निकाय चुनाव को लेकर विश्लेषणात्मक रिपोर्ट.

मेरठः यूपी में कुछ माह पूर्व विधानसभा उपचुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल व आजाद समाज पार्टी ने एकजुट होकर मिलकर चुनाव लड़ा था. जिसमें गठबंधन ने मुज्जफरनगर की खतौली सीट को भाजपा से छीन लिया था. तब इस सीट पर तीनों दलों के साथ जाने से बेहतरीन सोशल इंजीनियरिंग यहां देखने को मिली थी. तब से बीजेपी परेशान भी है. अब तीनों दल निकाय चुनावों में भी खतौली मॉडल अपनाने की बात कर रहे हैं.

क्या है खतौली पैटर्नः खतौली मॉडल को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि मौजूदा स्थिति में गठबंधन ने मेरठ में महापौर की कुर्सी पाने को नया दांव खेलने की कोशिश की है. क्योंकि वह इसको आजमा चुके हैं और सफल भी हो चुके हैं, जिससे उनका मनोबल बढ़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी क्योंकि हार का सामना कर चुकी है तो निश्चित ही आशंकित होगी और आंकड़ों के लिहाज से भी होना चाहिए. रिजवी कहते हैं कि अगर मेरठ नगर निगम से मेयर की बात करें तो खतौली पैटर्न को इसलिए याद करना चाहेंगे. क्योंकि जो स्थिति मेरठ महापौर की कुर्सी को लेकर दिख रही है बिल्कुल यही स्थिति खतौली में थी. खतौली में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता थे, उसी तरह मेरठ में सबसे ज्यादा जो वोटर भी मुस्लिम हैं.दलितों की अच्छी खासी संख्या खतौली में थी, यहां भी लगभग वही स्थिति है. खतौली में भी जाट काफी थे, जो मेरठ में भी हैं. जबकि खतौली में गठबंधन ने गुर्जर प्रत्याशी दिया था. गठबंधन की तरफ से सपा ने मेरठ में महापौर के लिए अपना उम्मीदवार भी जिसे बनाया है, वह भी गुर्जर समाज से है. सपा ने सरधना से विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को प्रत्याशी बनाया है.

भाजपा के लिए चुनौतीः शादाब रिजवी का कहना है कि गठबंधन कि तीन दलों की तिकड़ी ने खतौली में बीजेपी से विधानसभा की सीट छीन ली थी. अब मेरठ में भी महापौर के चुनाव में भी बिल्कुल वही सब नजारा अब तक होता दिखाई दे रहा है. अगर सपा, रालोद और आजाद समाज पार्टी फिर एक बार एकजुट रहकर मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश की तो निश्चित ही बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी. अगर आंकड़ों को एक बार गौर से देख रहे हैं तो दिखाई देता है कि खतौली पैटर्न की तर्ज पर जिस तरह से गठबंधन आगे बढ़ रहा है, उससे मेरठ में बीजेपी के लिए चुनौती हो सकती है. हालांकि चुनाव में सब कुछ जनता के हाथ होता है.


भाजपा की स्थिति बहुत मजबूत नहींः राजनैतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर जोशी कहते हैं कि सरधना से समाजवादी पार्टी के विधायक अतुल प्रधान की पत्नी को सपा ने उम्मीदवार बनाया है. अतुल प्रधान जब सरधना से संगीत सोम जैसे बीजेपी के नेता को चुनाव में हराकर जीते थे तो उसमें भी रालोद की तब बड़ी भूमिका थी. गठबंधन था तो वह जीत गए थे. इससे पहले कई बार उन्होंने चुनाव लड़ा था तो वह नहीं जीत पा रहे थे. मेरठ में मेयर के चुनाव में सपा मानकर चल रही है कि मुस्लिम तो उनकी जेब में है. गुर्जर अतुल प्रधान की वजह से वोट देगा तो सीट पक्की है. हरिशंकर जोशी ने बताया कि भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में बहुत मजबूत नजर नहीं आती है. क्योंकि मुस्लिम यहां निर्णायक हैं. इनके साथ दलित मिल जाते हैं तो बसपा जीत जाती हैं. गुर्जर मेरठ शहर में उतने ज्यादा नहीं हैं, हालांकि जाट ज्यादा हैं और जैन समाज भी काफी है. पंजाबी समाज से बीजेपी का प्रत्याशी है और ऐसे में यहां से बीजेपी से टिकट भी अपने समाज के लिए मांग रहे थे.

मेरठ हर दल के लिए महत्वपूर्णः वहीं, प्रदेश सरकार के मंत्री सोमेंद्र तोमर का कहना है कि सपा, रालोद और आजाद समाज पार्टी जिस खतौली मॉडल के पैटर्न पर चुनाव लड़ने की उम्मीद मेरठ में लगा रही है. वहां की स्थिति अलग थी, तब परिस्थिति अलग थीं अब अलग हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि इस बार भाजपा मेरठ में इतिहास बनाएगी. वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक शाहिद मिर्जा का कहना है कि मेरठ किसी भी दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण जगह है. क्योंकि जो संदेश यहां से सियासत में जाता है उसकी गूंज दूर तक सुनाई देती है. सपा और बीजेपी के अलावा बीएसपी प्रत्याशी को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. आप ने भी मेरठ में मेयर के लिए जाट उम्मीदवार मैदान में उतारा है, उसे भी नजरअंदाज नहीं कर सकते.

16 मेयर प्रत्याशीः गौरतलब है कि बीजेपी ने पंजाबी समाज से हरिकांत अहलूवालिया को मेयर पद का प्रत्याशी बनाया है. आप ने ऋचा सिंह, बीएसपी ने हशमत मलिक, कांग्रेस ने नसीम कुरैशी, सपा-रालोद गठबंधन ने सीमा प्रधान को मैदान में उतारा है. 16 मेयर के प्रत्याशी मेरठ में हैं, जिनमें से हो सकता है कि नाम वापसी भी एक दो निर्दलीय प्रत्याशी का हो. वहीं, जो समीकरण पूर्व में था वह था मुस्लिम और दलित का और पिछली बार बीएसपी यहां कामयाब हुई थी. ऐसे में मतदाता किस पर मेहरबान होता है यह तो 13 मई को ही पता चलेगा.

इसे भी पढ़ें-चुनाव प्रचार में आप चेयरमैन प्रत्याशी के पैसे बांटने का वीडियो वायरल, आचार संहिता उल्लंघन में मामला दर्ज


मेरठ में निकाय चुनाव को लेकर विश्लेषणात्मक रिपोर्ट.

मेरठः यूपी में कुछ माह पूर्व विधानसभा उपचुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल व आजाद समाज पार्टी ने एकजुट होकर मिलकर चुनाव लड़ा था. जिसमें गठबंधन ने मुज्जफरनगर की खतौली सीट को भाजपा से छीन लिया था. तब इस सीट पर तीनों दलों के साथ जाने से बेहतरीन सोशल इंजीनियरिंग यहां देखने को मिली थी. तब से बीजेपी परेशान भी है. अब तीनों दल निकाय चुनावों में भी खतौली मॉडल अपनाने की बात कर रहे हैं.

क्या है खतौली पैटर्नः खतौली मॉडल को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि मौजूदा स्थिति में गठबंधन ने मेरठ में महापौर की कुर्सी पाने को नया दांव खेलने की कोशिश की है. क्योंकि वह इसको आजमा चुके हैं और सफल भी हो चुके हैं, जिससे उनका मनोबल बढ़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी क्योंकि हार का सामना कर चुकी है तो निश्चित ही आशंकित होगी और आंकड़ों के लिहाज से भी होना चाहिए. रिजवी कहते हैं कि अगर मेरठ नगर निगम से मेयर की बात करें तो खतौली पैटर्न को इसलिए याद करना चाहेंगे. क्योंकि जो स्थिति मेरठ महापौर की कुर्सी को लेकर दिख रही है बिल्कुल यही स्थिति खतौली में थी. खतौली में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता थे, उसी तरह मेरठ में सबसे ज्यादा जो वोटर भी मुस्लिम हैं.दलितों की अच्छी खासी संख्या खतौली में थी, यहां भी लगभग वही स्थिति है. खतौली में भी जाट काफी थे, जो मेरठ में भी हैं. जबकि खतौली में गठबंधन ने गुर्जर प्रत्याशी दिया था. गठबंधन की तरफ से सपा ने मेरठ में महापौर के लिए अपना उम्मीदवार भी जिसे बनाया है, वह भी गुर्जर समाज से है. सपा ने सरधना से विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को प्रत्याशी बनाया है.

भाजपा के लिए चुनौतीः शादाब रिजवी का कहना है कि गठबंधन कि तीन दलों की तिकड़ी ने खतौली में बीजेपी से विधानसभा की सीट छीन ली थी. अब मेरठ में भी महापौर के चुनाव में भी बिल्कुल वही सब नजारा अब तक होता दिखाई दे रहा है. अगर सपा, रालोद और आजाद समाज पार्टी फिर एक बार एकजुट रहकर मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश की तो निश्चित ही बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी. अगर आंकड़ों को एक बार गौर से देख रहे हैं तो दिखाई देता है कि खतौली पैटर्न की तर्ज पर जिस तरह से गठबंधन आगे बढ़ रहा है, उससे मेरठ में बीजेपी के लिए चुनौती हो सकती है. हालांकि चुनाव में सब कुछ जनता के हाथ होता है.


भाजपा की स्थिति बहुत मजबूत नहींः राजनैतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर जोशी कहते हैं कि सरधना से समाजवादी पार्टी के विधायक अतुल प्रधान की पत्नी को सपा ने उम्मीदवार बनाया है. अतुल प्रधान जब सरधना से संगीत सोम जैसे बीजेपी के नेता को चुनाव में हराकर जीते थे तो उसमें भी रालोद की तब बड़ी भूमिका थी. गठबंधन था तो वह जीत गए थे. इससे पहले कई बार उन्होंने चुनाव लड़ा था तो वह नहीं जीत पा रहे थे. मेरठ में मेयर के चुनाव में सपा मानकर चल रही है कि मुस्लिम तो उनकी जेब में है. गुर्जर अतुल प्रधान की वजह से वोट देगा तो सीट पक्की है. हरिशंकर जोशी ने बताया कि भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में बहुत मजबूत नजर नहीं आती है. क्योंकि मुस्लिम यहां निर्णायक हैं. इनके साथ दलित मिल जाते हैं तो बसपा जीत जाती हैं. गुर्जर मेरठ शहर में उतने ज्यादा नहीं हैं, हालांकि जाट ज्यादा हैं और जैन समाज भी काफी है. पंजाबी समाज से बीजेपी का प्रत्याशी है और ऐसे में यहां से बीजेपी से टिकट भी अपने समाज के लिए मांग रहे थे.

मेरठ हर दल के लिए महत्वपूर्णः वहीं, प्रदेश सरकार के मंत्री सोमेंद्र तोमर का कहना है कि सपा, रालोद और आजाद समाज पार्टी जिस खतौली मॉडल के पैटर्न पर चुनाव लड़ने की उम्मीद मेरठ में लगा रही है. वहां की स्थिति अलग थी, तब परिस्थिति अलग थीं अब अलग हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि इस बार भाजपा मेरठ में इतिहास बनाएगी. वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक शाहिद मिर्जा का कहना है कि मेरठ किसी भी दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण जगह है. क्योंकि जो संदेश यहां से सियासत में जाता है उसकी गूंज दूर तक सुनाई देती है. सपा और बीजेपी के अलावा बीएसपी प्रत्याशी को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. आप ने भी मेरठ में मेयर के लिए जाट उम्मीदवार मैदान में उतारा है, उसे भी नजरअंदाज नहीं कर सकते.

16 मेयर प्रत्याशीः गौरतलब है कि बीजेपी ने पंजाबी समाज से हरिकांत अहलूवालिया को मेयर पद का प्रत्याशी बनाया है. आप ने ऋचा सिंह, बीएसपी ने हशमत मलिक, कांग्रेस ने नसीम कुरैशी, सपा-रालोद गठबंधन ने सीमा प्रधान को मैदान में उतारा है. 16 मेयर के प्रत्याशी मेरठ में हैं, जिनमें से हो सकता है कि नाम वापसी भी एक दो निर्दलीय प्रत्याशी का हो. वहीं, जो समीकरण पूर्व में था वह था मुस्लिम और दलित का और पिछली बार बीएसपी यहां कामयाब हुई थी. ऐसे में मतदाता किस पर मेहरबान होता है यह तो 13 मई को ही पता चलेगा.

इसे भी पढ़ें-चुनाव प्रचार में आप चेयरमैन प्रत्याशी के पैसे बांटने का वीडियो वायरल, आचार संहिता उल्लंघन में मामला दर्ज


ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.