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युवाओं के लिए सीख : तीन माह की बची थी पिता की जिंदगी, बेटे ने लिवर दान कर दिया जीवनदान - meerut young man donate liver

मेरठ में एक बेटे ने पिता की जान बचाने के लिए अपना लिवर दान (Son Donate Liver in Meerut) कर दिया. डॉक्टरों ने बताया था कि उसके पिता की केवल तीन महीने की जिंदगी बची थी. दोनों की हालत इस समय ठीक है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 9, 2023, 9:58 PM IST

मेरठ में बेटे ने पिता की जान बचाई

मेरठ: जयदेवी नगर के रहने वाले युवक ने लोगों के लिए एक मिशाल पेश की है. उसने अपने पिता को बचाने के लिए अपना लिवर दान कर दिया. उसके इस कदम से पिता को नई जिंदगी मिल गई. साथ ही यह सराहनीय काम ऐसे लोगों को आईना भी दिखाता है, जो लालच में पड़ कर रिश्तों को कलंकित करते हैं.

दरअसल, उत्कर्ष की उम्र अभी महज 20 साल है. वह ग्रेजुएशन कर रहा है. लगभग एक साल पहले उत्कर्ष के पिता अवधेश कुमार शर्मा (47) की हालत बेहद खराब हो गई थी. उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. वहां डॉक्टरों ने तत्काल उपचार किया. लेकिन, अवधेश को राहत नहीं मिली. उत्कर्ष के पिता अवधेश की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी. डॉक्टर जवाब दे चुके थे. उत्कर्ष ने बताया कि उनके पिता को लिवर सिरोसिस थी.

अवधेश शर्मा ने बताया कि वह एक साल से पोर्टल हाइपरटेंशन के साथ डिकंपेंसेटेड क्रॉनिक लिवर डिजीज नामक बीमारी से जूझ रहे थे. उनके पेट में बार-बार पानी भरने की समस्या हो गई थी और लगातार पीलिया से ग्रसित थे. मेरठ समेत दिल्ली, एनसीआर में काफी जगह उपचार के लिए बेटा पिता को लेकर गया. लेकिन, कहीं भी लाभ नहीं हुआ. बाद में किसी ने उन्हें गुरुग्राम के एक निजी हॉस्पिटल में जाने की सलाह दी. वहां डॉक्टरों ने उपचार दिया और साथ ही यह भी बता दिया कि अब अवधेश कुमार सिर्फ तीन माह ही जीवित रह सकते हैं.

इकलौते बेटे उत्कर्ष ने बताया कि उन्होंने निर्णय लिया कि उन्हें अपने पिता की जान बचानी है. इसके बाद गुरुग्राम के एक निजी हॉस्पिटल में लिवर प्रत्यारोपण किया गया. आखिरकार चिकित्सकों की सूझबूझ के चलते बेटे ने अपना आधा लिवर दान करके पिता को बचा लिया. अवधेश कहते हैं कि उनका दूसरा जन्म बेटे की ही वजह से है. पिता बेटे के इस कदम से काफी खुश हैं. डॉक्टर उन्नीकृष्णन जी ने बताया कि पेशेंट अवधेश शर्मा की तबीयत बहुत खराब थी. 3 महीने में डोनर नहीं मिलता तो उन्हें नहीं बचाया जा सकता था. वह कहते हैं कि पिता के लिए उत्कर्ष आगे आए और पूरी प्रक्रिया सफल रही. अब पिता और पुत्र दोनों बिल्कुल ठीक हैं. अवधेश भी बिल्कुल स्वस्थ हैं. अवधेश अब फिर से कॉलेज जाने लगे हैं. दो से तीन माह में उनका लिवर फिर से पहले जैसा हो जाएगा.

लिवर ट्रांसप्लांट करने वाली टीम की डॉक्टर जया अग्रवाल बताती हैं कि उत्कर्ष के पिता अवधेश शर्मा का 90 प्रतिशत लिवर खराब हो चुका था. इसकी वजह से पेट में पानी भरने और पीलिया होने की समस्या का सामना तो करना ही पड़ रहा था. साथ ही और भी काफी समस्याएं उत्पन्न हो रही थीं. वह बताती हैं कि उन्हें सलाह दी गई कि उन्हें ट्रांसप्लांट की बेहद ही जरूरत है. उसके लिए जरूरी है कि ब्लडग्रुप मैचिंग होना चाहिए. जया अग्रवाल ने बताया कि उत्कर्ष घबराए हुए थे. लेकिन, वह सामने आए और उन्हें सर्जरी के बारे में समझाया गया. इसके बाद पूरी प्रकिया हुई.

ऑपरेशन टीम की सर्जन डॉक्टर श्वेता मलिक ने बताया कि समय से अगर मरीज की समस्या का पता लग जाता है तो उसको बचाया जा सकता है. इस केस में भी ऐसा ही हुआ. बीमारी का पता लगने पर समय से गौर कर लिया गया. उन्होंने बताया कि अमृता अस्पताल में एचपीबी सर्जरी और सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के हेड डॉ. एस सुधींद्रन ने बताया कि डोनर के लिवर के दाहिने आधे हिस्से को निकालने के लिए एक रोबोट का उपयोग किया गया था. उत्कर्ष को एक हफ्ते और उसके पिता को दो हफ्ते के बाद छुट्टी दे दी गई. अब दोनों बिल्कुल स्वस्थ हैं. पति को स्वस्थ देखकर अब गीता शर्मा बेहद खुश हैं. वहीं, वह डॉक्टर्स का आभार जताती हैं.

यह भी पढ़ें: केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर में बनेगा पांच मंजिला डायग्नोस्टिक भवन, शासन को भेजा गया प्रस्ताव

यह भी पढ़ें: सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बढ़ाई जा रहीं आधुनिक अल्ट्रासाउंड मशीनें, विशेषज्ञ डाॅकटर भी मिलेंगे

मेरठ में बेटे ने पिता की जान बचाई

मेरठ: जयदेवी नगर के रहने वाले युवक ने लोगों के लिए एक मिशाल पेश की है. उसने अपने पिता को बचाने के लिए अपना लिवर दान कर दिया. उसके इस कदम से पिता को नई जिंदगी मिल गई. साथ ही यह सराहनीय काम ऐसे लोगों को आईना भी दिखाता है, जो लालच में पड़ कर रिश्तों को कलंकित करते हैं.

दरअसल, उत्कर्ष की उम्र अभी महज 20 साल है. वह ग्रेजुएशन कर रहा है. लगभग एक साल पहले उत्कर्ष के पिता अवधेश कुमार शर्मा (47) की हालत बेहद खराब हो गई थी. उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. वहां डॉक्टरों ने तत्काल उपचार किया. लेकिन, अवधेश को राहत नहीं मिली. उत्कर्ष के पिता अवधेश की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी. डॉक्टर जवाब दे चुके थे. उत्कर्ष ने बताया कि उनके पिता को लिवर सिरोसिस थी.

अवधेश शर्मा ने बताया कि वह एक साल से पोर्टल हाइपरटेंशन के साथ डिकंपेंसेटेड क्रॉनिक लिवर डिजीज नामक बीमारी से जूझ रहे थे. उनके पेट में बार-बार पानी भरने की समस्या हो गई थी और लगातार पीलिया से ग्रसित थे. मेरठ समेत दिल्ली, एनसीआर में काफी जगह उपचार के लिए बेटा पिता को लेकर गया. लेकिन, कहीं भी लाभ नहीं हुआ. बाद में किसी ने उन्हें गुरुग्राम के एक निजी हॉस्पिटल में जाने की सलाह दी. वहां डॉक्टरों ने उपचार दिया और साथ ही यह भी बता दिया कि अब अवधेश कुमार सिर्फ तीन माह ही जीवित रह सकते हैं.

इकलौते बेटे उत्कर्ष ने बताया कि उन्होंने निर्णय लिया कि उन्हें अपने पिता की जान बचानी है. इसके बाद गुरुग्राम के एक निजी हॉस्पिटल में लिवर प्रत्यारोपण किया गया. आखिरकार चिकित्सकों की सूझबूझ के चलते बेटे ने अपना आधा लिवर दान करके पिता को बचा लिया. अवधेश कहते हैं कि उनका दूसरा जन्म बेटे की ही वजह से है. पिता बेटे के इस कदम से काफी खुश हैं. डॉक्टर उन्नीकृष्णन जी ने बताया कि पेशेंट अवधेश शर्मा की तबीयत बहुत खराब थी. 3 महीने में डोनर नहीं मिलता तो उन्हें नहीं बचाया जा सकता था. वह कहते हैं कि पिता के लिए उत्कर्ष आगे आए और पूरी प्रक्रिया सफल रही. अब पिता और पुत्र दोनों बिल्कुल ठीक हैं. अवधेश भी बिल्कुल स्वस्थ हैं. अवधेश अब फिर से कॉलेज जाने लगे हैं. दो से तीन माह में उनका लिवर फिर से पहले जैसा हो जाएगा.

लिवर ट्रांसप्लांट करने वाली टीम की डॉक्टर जया अग्रवाल बताती हैं कि उत्कर्ष के पिता अवधेश शर्मा का 90 प्रतिशत लिवर खराब हो चुका था. इसकी वजह से पेट में पानी भरने और पीलिया होने की समस्या का सामना तो करना ही पड़ रहा था. साथ ही और भी काफी समस्याएं उत्पन्न हो रही थीं. वह बताती हैं कि उन्हें सलाह दी गई कि उन्हें ट्रांसप्लांट की बेहद ही जरूरत है. उसके लिए जरूरी है कि ब्लडग्रुप मैचिंग होना चाहिए. जया अग्रवाल ने बताया कि उत्कर्ष घबराए हुए थे. लेकिन, वह सामने आए और उन्हें सर्जरी के बारे में समझाया गया. इसके बाद पूरी प्रकिया हुई.

ऑपरेशन टीम की सर्जन डॉक्टर श्वेता मलिक ने बताया कि समय से अगर मरीज की समस्या का पता लग जाता है तो उसको बचाया जा सकता है. इस केस में भी ऐसा ही हुआ. बीमारी का पता लगने पर समय से गौर कर लिया गया. उन्होंने बताया कि अमृता अस्पताल में एचपीबी सर्जरी और सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के हेड डॉ. एस सुधींद्रन ने बताया कि डोनर के लिवर के दाहिने आधे हिस्से को निकालने के लिए एक रोबोट का उपयोग किया गया था. उत्कर्ष को एक हफ्ते और उसके पिता को दो हफ्ते के बाद छुट्टी दे दी गई. अब दोनों बिल्कुल स्वस्थ हैं. पति को स्वस्थ देखकर अब गीता शर्मा बेहद खुश हैं. वहीं, वह डॉक्टर्स का आभार जताती हैं.

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