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मेरठ: दलहनी फसलों में फंगस रोग का खतरा - दलहनी फसलों में फंगस रोग का खतरा

मौसम के बदलते मिजाज के साथ दलहनी फसलों में रोग लगने का अंदेशा बढ़ गया है. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते रोग की पहचान कर उसका उपचार नहीं किया तो फसल में नुकसान उठाना पड़ सकता है.

दलहनी फसल
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Published : Sep 10, 2019, 10:00 AM IST

मेरठः कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि मौसम के बदलते मिजाज के साथ दलहनी फसलों में फंगस रोग लगने का अंदेशा बढ़ जाता है. सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के डीन डॉ. रामजी सिंह ने बताया कि इस समय दलहनी फसलों में फंगस रोग लगने का खतरा ज्यादा है. फंगस में कई तरह के रोग हैं, जो फसल को अपनी चपेट में लेकर नष्ट कर देते हैं.

देखे वीडियो.

इसे भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर: फल किसानों को मिली राहत, NAFED खरीदेगा उत्पादकों से फसल

फसल प्रबंधन बेहद जरूरी
डॉ. रामजी सिंह ने बताया कि मौसम के बदलाव के साथ-साथ फसल प्रबंधन बेहद जरूरी है. यदि इस समय फसलों की देखरेख में किसी भी तरह की लापरवाही बरती गई तो वे नुकसान का कारण बन सकती है. किसानों को समय रहते फसल में लगने वाले रोग की पहचान और उसके निदान पर ध्यान देना चाहिए. किसी भी तरह के कीट या रोग का असर दिखाई देने पर किसानों को कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेना चाहिए. कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से भी किसान अपनी फसल के बारे में विशेषज्ञों से जानकारी ले सकते हैं.

कीट करते हैं नुकसान
कीट सुबह के समय नए पौधों की पत्तियों पर छेद बनाते हुए उन्हें खाता है. दिन में यह कीट मिट्टी की दरारों में छिपा रहता है. वर्षा ऋतु में इस कीट का गुबरैला जड़ की गांठ में सुराख कर जड़ों में घुसकर उसे पूरा खोखला कर देता है. इस कीट के द्वारा जड़ की गांठों के नष्ट होने पर उत्पादन में 60% तक कमी देखी गई है.

पत्ती मोडक कीट
यह कीट पत्तियों को ऊपरी सिरे से मध्य भाग की ओर मोड़ते हैं. कई पत्तियों को चिपकाकर जाला भी बनाते हैं. इन्हीं भागों के अंदर रहकर कीट पत्तियों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल को खा जाती हैं, जिससे पत्तियां पीली सफेद पड़ने लगती हैं. इसकी चपेट में आने से फसल में नुकसान का सामना करना पड़ता है.

मेरठः कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि मौसम के बदलते मिजाज के साथ दलहनी फसलों में फंगस रोग लगने का अंदेशा बढ़ जाता है. सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के डीन डॉ. रामजी सिंह ने बताया कि इस समय दलहनी फसलों में फंगस रोग लगने का खतरा ज्यादा है. फंगस में कई तरह के रोग हैं, जो फसल को अपनी चपेट में लेकर नष्ट कर देते हैं.

देखे वीडियो.

इसे भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर: फल किसानों को मिली राहत, NAFED खरीदेगा उत्पादकों से फसल

फसल प्रबंधन बेहद जरूरी
डॉ. रामजी सिंह ने बताया कि मौसम के बदलाव के साथ-साथ फसल प्रबंधन बेहद जरूरी है. यदि इस समय फसलों की देखरेख में किसी भी तरह की लापरवाही बरती गई तो वे नुकसान का कारण बन सकती है. किसानों को समय रहते फसल में लगने वाले रोग की पहचान और उसके निदान पर ध्यान देना चाहिए. किसी भी तरह के कीट या रोग का असर दिखाई देने पर किसानों को कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेना चाहिए. कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से भी किसान अपनी फसल के बारे में विशेषज्ञों से जानकारी ले सकते हैं.

कीट करते हैं नुकसान
कीट सुबह के समय नए पौधों की पत्तियों पर छेद बनाते हुए उन्हें खाता है. दिन में यह कीट मिट्टी की दरारों में छिपा रहता है. वर्षा ऋतु में इस कीट का गुबरैला जड़ की गांठ में सुराख कर जड़ों में घुसकर उसे पूरा खोखला कर देता है. इस कीट के द्वारा जड़ की गांठों के नष्ट होने पर उत्पादन में 60% तक कमी देखी गई है.

पत्ती मोडक कीट
यह कीट पत्तियों को ऊपरी सिरे से मध्य भाग की ओर मोड़ते हैं. कई पत्तियों को चिपकाकर जाला भी बनाते हैं. इन्हीं भागों के अंदर रहकर कीट पत्तियों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल को खा जाती हैं, जिससे पत्तियां पीली सफेद पड़ने लगती हैं. इसकी चपेट में आने से फसल में नुकसान का सामना करना पड़ता है.

Intro:मेरठ: दलहनी फसलों में फंगस रोग का खतरा
मेरठ। मौसम मौसम के बदलते मिजाज के साथ दलहनी फसलों में रोग लगने का अंदेशा बढ़ गया है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते रोग की पहचान कर उसका उपचार नहीं किया तो फसल में नुकसान का सामना उठाना पड़ सकता है। कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि वह फसल में किसी भी तरह का बदलाव दिखाई देने पर तुरंत वैज्ञानिक सलाह के साथ उसका उपचार करें।




Body:सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के डीन डा रामजी सिंह ने बताया कि बरसात का मौसम अब समाप्ति की ओर है। इस समय दलहनी फसलों में फंगस रोग लगने का अंदेशा बढ़ जाता है। फंगस में कई तरह के रोग हैं जो फसल को अपनी चपेट में ले कर नष्ट कर देते हैं। इसलिए किसानों को समय रहते इन रोग की पहचान कर उसका उपचार कर लेना चाहिए। कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर एस सेंगर ने बताया कि मौसम के बदलाव के साथ-साथ फसल प्रबंधन बेहद जरूरी है। यदि इस समय फसलों की निगरानी में किसी तरह की लापरवाही बरती गई तो वे नुकसान का कारण बन सकती है। इसलिए किसानों को समय रहते फसल में लगने वाले रोग की पहचान और उसके निदान पर ध्यान देना चाहिए। किसी भी तरह के कीट या रोग का असर दिखाई देने पर किसानों को कृषि विशेषज्ञों की सलाह से उसका उपचार करना चाहिए। कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से भी किसान अपनी फसल के बारे में विशेषज्ञों से जानकारी ले सकते हैं।

कीट करते हैं नुकसान
कीट सुबह के समय नए पौधों की पत्तियों पर छेद बनाते हुए उन्हें खाता है। दिन में यह कीट मिट्टी की दरारों में छिपा रहता है। वर्षा ऋतु में इस कीट का गुबरैला जड़ की गांठ में सुराख कर जड़ों में घुसकर उसे पूरा खोखला कर देता है। इस कीट के द्वारा जड़ की गांठों के नष्ट होने पर उत्पादन में 60% तक कमी देखी गई है।




Conclusion:पत्ती मोडक कीट
यह कीट पत्तियों को ऊपरी सिरे से मध्य भाग की ओर मोड़ते हैं। कई पत्तियों को चिपकाकर जाला भी बनाते हैं।छ इन्हीं भागों के अंदर रहकर कीट पत्तियों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल को खा जाती हैं। जिससे पत्तियां पीली सफेद पड़ने लगती हैं। इसकी चपेट में आने से फसल में नुकसान का सामना करना पड़ता है।

बाइट - रामजी सिंह, कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ

अजय चौहान
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