ETV Bharat / state

ससुराल में शुरू हुई दामाद के वध की तैयारी, सदियों से परंपरा है जारी - meerut special

मेरठ (meerut) में रावण से जुड़ी किदवंती यह है कि यह शहर रावण (Lankapati Ravan) की ससुराल और उसकी पत्नी मंदोदरी (Mandodari) का मायका है. मायके के नाम से ही इसे प्राचीनकाल में मयराष्ट्र और फिर मेरठ कहा जाने लगा. यहां, दशहरे के दिन ससुराल में ही दामाद रावण के सांकेतिक वध की परंपरा है. त्रेतायुग से लेकर कलयुग में भी इस परंपरा का उसी तरह निर्वाहन किया जा रहा है.

मेरठ रामलीला के लिए भूमि पूजन
मेरठ रामलीला के लिए भूमि पूजन
author img

By

Published : Sep 28, 2021, 4:48 PM IST

Updated : Sep 28, 2021, 5:37 PM IST

मेरठ: शायद ही आपने कहीं ऐसा सुना हो, जहां ससुराल में ही दामाद का वध किया जाता हो. लेकिन, यह परंपरा मेरठ (meerut) में बरसों बरस ने निभाई जा रही है. पुराणों के अनुसार मेरठ का पुराना नाम मयराष्ट्र था और यहां के राजा मय थे. राजा मय की बेटी थीं मंदोदरी और मंदोदरी (Mandodari) का विवाह लंकापति रावण (Lankapati Ravan) के साथ हुआ. मंदोदरी के मायके मेरठ में हर साल रावण का पुतला दहन करने की पंरपरा है. यहां प्रत्येक वर्ष गाजे-बाजे और ढोल नगाड़ों के साथ दामाद रावण का वध होता है. इसकी तैयारी मंगलवार से शुरू हो गई है. आज रामलीला मैदान में स्तंभ गाड़ कर भूमि पूजन कर दिया गया है.

असत्य पर सत्य की विजय का सबसे बड़ा उदाहरण हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ रामायण (ramayana) में दर्ज है, जिसमें बताया गया है कि रावण असुर था, अत्याचारी था, जिसने भगवान श्री राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया था. इसीलिए भगवान राम ने लंका पर आक्रमण किया और लंकापति रावण का वध कर दिया, लेकिन यह सब बातें त्रेता युग की हैं. आज हम आपको इसी सत्य से रूबरू कराते हैं.

मेरठ रामलीला के लिए भूमि पूजन

दरअसल, मेरठ रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका है. मेरठ के भैसाली मैदान में पहले तालाब हुआ करता था. कहा जाता है कि मंदोदरी उसी तालाब में नहाने के बाद विल्बेश्वर मंदिर में जाकर भगवान शिव की आराधना करती थीं. विल्बेश्वर मंदिर आज भी लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है. हालांकि, वक्त के साथ तालाब ग्राउंड में तब्दील हो गया, लेकिन मेरठ के लोग इसी मैदान में सैकड़ों सालों से दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाते आए हैं.

दशहरे के दिन देश भर में रावण वध का मंचन होता है और रावण के पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन रावण की ससुराल में यह परंपरा थोड़े बदलाव से मनाई जाती है. माना जाता है कि रावण की ससुराल मेरठ में है और यहां राम और रावण दोनों के अनुयायी रहते हैं. इसलिए यहां रावण की पूजा भी होती है और रावण का पुतला भी फूंका जाता है.

इसे भी पढ़ें-ब्रह्मा के आदेश पर सूर्यदेव ने स्थापित किया था अद्भुत शिवलिंग, जलाभिषेक करने से मिलता है दोहरा लाभ



प्रत्येक वर्ष की भांति इस साल भी मेरठ के कैंट स्थित भैसाली मैदान में ढोल-नगाड़े और गाजे-बाजे के साथ लंकापति रावण के वध की तैयारी की जा रही है. जिस जगह पर रावण के वध की लीला की जानी है उस जगह का भूमि पूजन किया गया है. शहर के गणमान्य लोग इस भूमि पूजन का हिस्सा बनकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं, लेकिन जब में उनसे सवाल किया गया कि ससुराल में दामाद के वध की लीला यह कैसी परंपरा है तो उन्होंने कहा कि असत्य पर सत्य की विजय के लिए यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है. कलयुग में भी इस परंपरा का उसी तरह निर्वाहन किया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें-Sawan 2021: महिमा ऐसी कि होती है 'खंडित शिवलिंग' की पूजा, भक्तों पर बरसती है भोले की कृपा

मेरठ: शायद ही आपने कहीं ऐसा सुना हो, जहां ससुराल में ही दामाद का वध किया जाता हो. लेकिन, यह परंपरा मेरठ (meerut) में बरसों बरस ने निभाई जा रही है. पुराणों के अनुसार मेरठ का पुराना नाम मयराष्ट्र था और यहां के राजा मय थे. राजा मय की बेटी थीं मंदोदरी और मंदोदरी (Mandodari) का विवाह लंकापति रावण (Lankapati Ravan) के साथ हुआ. मंदोदरी के मायके मेरठ में हर साल रावण का पुतला दहन करने की पंरपरा है. यहां प्रत्येक वर्ष गाजे-बाजे और ढोल नगाड़ों के साथ दामाद रावण का वध होता है. इसकी तैयारी मंगलवार से शुरू हो गई है. आज रामलीला मैदान में स्तंभ गाड़ कर भूमि पूजन कर दिया गया है.

असत्य पर सत्य की विजय का सबसे बड़ा उदाहरण हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ रामायण (ramayana) में दर्ज है, जिसमें बताया गया है कि रावण असुर था, अत्याचारी था, जिसने भगवान श्री राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया था. इसीलिए भगवान राम ने लंका पर आक्रमण किया और लंकापति रावण का वध कर दिया, लेकिन यह सब बातें त्रेता युग की हैं. आज हम आपको इसी सत्य से रूबरू कराते हैं.

मेरठ रामलीला के लिए भूमि पूजन

दरअसल, मेरठ रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका है. मेरठ के भैसाली मैदान में पहले तालाब हुआ करता था. कहा जाता है कि मंदोदरी उसी तालाब में नहाने के बाद विल्बेश्वर मंदिर में जाकर भगवान शिव की आराधना करती थीं. विल्बेश्वर मंदिर आज भी लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है. हालांकि, वक्त के साथ तालाब ग्राउंड में तब्दील हो गया, लेकिन मेरठ के लोग इसी मैदान में सैकड़ों सालों से दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाते आए हैं.

दशहरे के दिन देश भर में रावण वध का मंचन होता है और रावण के पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन रावण की ससुराल में यह परंपरा थोड़े बदलाव से मनाई जाती है. माना जाता है कि रावण की ससुराल मेरठ में है और यहां राम और रावण दोनों के अनुयायी रहते हैं. इसलिए यहां रावण की पूजा भी होती है और रावण का पुतला भी फूंका जाता है.

इसे भी पढ़ें-ब्रह्मा के आदेश पर सूर्यदेव ने स्थापित किया था अद्भुत शिवलिंग, जलाभिषेक करने से मिलता है दोहरा लाभ



प्रत्येक वर्ष की भांति इस साल भी मेरठ के कैंट स्थित भैसाली मैदान में ढोल-नगाड़े और गाजे-बाजे के साथ लंकापति रावण के वध की तैयारी की जा रही है. जिस जगह पर रावण के वध की लीला की जानी है उस जगह का भूमि पूजन किया गया है. शहर के गणमान्य लोग इस भूमि पूजन का हिस्सा बनकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं, लेकिन जब में उनसे सवाल किया गया कि ससुराल में दामाद के वध की लीला यह कैसी परंपरा है तो उन्होंने कहा कि असत्य पर सत्य की विजय के लिए यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है. कलयुग में भी इस परंपरा का उसी तरह निर्वाहन किया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें-Sawan 2021: महिमा ऐसी कि होती है 'खंडित शिवलिंग' की पूजा, भक्तों पर बरसती है भोले की कृपा

Last Updated : Sep 28, 2021, 5:37 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.