मेरठ: जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर कस्बा हस्तिनापुर महाभारत की अनेकों यादें संजोए हुए है. वैसे तो हस्तिनापुर की धरती द्वापर युग से जुड़े रहस्य से भरी हुई है. एक रहस्य ऐसा भी है जिसे जानकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है. हस्तिनापुर में जहां कभी पांच पांडव वास करते थे, आज वहां महाभारत कालीन करीब 5500 साल पुराना शिव मंदिर जस का तस है. इसी मंदिर में पांच पांडव भगवान शिव की पूजा करते थे. जिसके चलते इस मंदिर को देश-दुनिया में पांडेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. मंदिर प्रांगण में महाबली भीम द्वारा लगाया गया विशालकाय बरगद का पेड़ भी यहां आने वाले श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है. बताया जाता है कि पांडेश्वर महादेव मंदिर में भगवान कृष्ण ने भी शिव की आराधना की थी. मान्यता है कि यहां दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.
ईटीवी भारत की टीम महाभारत कालीन पांडेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य जानने के लिए हस्तिनापुर पहुंची. जहां ईटीवी भारत ने मंदिर में रखी पांडवों की मूर्ति को अपने कैमरे में कैद किया, विशालकाय वट वृक्ष को देखा, वहां आने वाले श्रदालुओं से भी बात की. इसके अलावा पांडव मंदिर के मुख्य पुजारी से भी मंदिर और मंदिर से जुड़े रहस्यों को जानने की कोशिश की. विशालकाय वट वृक्ष, मंदिर में स्थापित शिवलिंग, पांडवों की मूर्ति और श्रद्धालुओं की अपार आस्था इस बात को साबित करती है कि यह पांडेश्वर महादेव मंदिर महाभारत कालीन है.
पांडव करते थे मंदिर की पूजा
पांडेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी रमन गिरी महाराज जी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि यह महाभारत कालीन करीब 5800 वर्ष पुराना मंदिर है. इस शिव मंदिर में स्वयं भू अवतरित शिवलिंग स्थापित है, जहां पांच पांडव और रानी द्रौपदी भगवान शिवजी की पूजा करते थे. जिसके चलते इस मंदिर का नाम पांडेश्वर महादेव मंदिर पड़ गया. मंदिर के पीछे एक कुंआ भी ज्यों का त्यों बना हुआ है. कहा जाता है कि कुएं में पांडव स्नान करते थे. मान्यता है कि इसी मंदिर में भगवान शिव की आराधना कर धर्मराज युधिष्ठिर ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में विजयी होने की मन्नत मांगी थी.
भगवान कृष्ण ने भी की थी शिव आराधना
बता दें कि महाभारत के युध्द में जाने से पहले भगवान श्री कृष्ण ने भी इस मंदिर में भोलेनाथ की आराधना की थी. भगवान कृष्ण ने स्वयं भू शिवलिंग पर जलाभिषेक कर अधर्म पर धर्म की विजय के लिए शिवजी महाराज से वरदान मांगा था. मंदिर प्रांगण में महाबली भीम द्वारा लगाया गया विशालकाय वट वृक्ष मंदिर की शोभा में चार चांद लगा रहा है. 5800 साल पुराना मंदिर और बरगद का पेड़ आने वाले श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है. महाबली भीम में आस्था रखने वाले श्रद्धालु उनके द्वारा लगाए गए इस वट वृक्ष के भी दर्शन करने आते हैं. वट वृक्ष का विशाल आकार श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनता जा रहा है.
मंदिर में लगी पांडवों की मूर्ति
पुरातत्व विभाग ने वर्षों पहले हस्तिनापुर का रहस्य जानने के लिए खुदाई कराई थी. खुदाई में महाभारत काल की तलवार, खड़क और पांच पांडवों की मूर्ति मिली थी. तलवार और खड़क तो सरकार ने पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में रखवा दिया, जबकि पांडवों की मूर्ति को पांडेश्वर महादेव मंदिर में रखा हुआ है. पांडवों की मूर्ति को देखने के लिए देश विदेश से हर साल लाखों श्रद्धालु एवं पर्यटक यहां पहुंचते हैं.
1798 में राजा नैन सिंह ने कराया था जीर्णोद्धार
रमन गिरी महाराज ने बताया कि सन् 1798 में बहसूमा के राजा रहे नैन सिंह गुज्जर ने पांडेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार और उसमें चार दीवार बनवाई थी. जिससे महाभारत कालीन यह मंदिर देखने योग्य बना और उसके बाद श्रद्धालुओं की आवाजाही बढ़ने लगी. बताया जाता है कि इस मंदिर को अंग्रेजी हुकूमत भी द्वापर युग की धरोहर मानती थी. यही वजह है कि अंग्रेजों ने मंदिर के साथ किसी तरह की कोई छेड़छाड़ नहीं की थी. हस्तिनापुर में पांडवों के राजमहल के बाद यह स्थान पांडव टीला के नाम से भी जाना जाता है. जबकि पांडवों के मकान एवं राजमहल सब ध्वस्त हो गए थे, जिनके अवशेष आज भी खुदाई के दौरान मिलते हैं.
चीरहरण के दौरान द्रौपदी ने दिया था श्राप
मंहत रमन गिरी महाराज ने बताया कि द्वापर युग में पांडवों का जन्म हस्तिनापुर में राजकुमार पांडव के यहां हुआ था. हस्तिनापुर के राजपाठ को लेकर कौरवों और पांडवों के बीच धर्म युध्द हुआ था. युध्द जीतने के बाद पांडवों ने हस्तिनापुर की गद्दी पर राज किया था. बताया जाता है कि रानी द्रौपदी ने चीरहरण के दौरान हस्तिनापुर राज्य को ध्वस्त होने का श्राप दिया था. पांडवों की मृत्यु के बाद हस्तिनापुर राज्य रानी द्रौपदी के श्राप के अनुसार उलट पलट हो गया था. जिसके परिणाम स्वरूप आज भी हस्तिनापुर की धरती उबड़ खाबड़ है. चारों ओर जंगल और झील ही नजर आते हैं.