मेरठ: 2024 में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections 2024) हैं. सभी दल अपनी पावर बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं. वहीं, पश्चिमी यूपी में राजनितिक दलों के अलावा जाट भी बेहद एक्टिव दिखाई दे रहे हैं. पिछले दिनों अखिल भारतीय जाट महासभा का प्रांतीय सम्मेलन हुआ. अब अंतर्राष्ट्रीय जाट संसद का आयोजन होने जा रहा है. दोनों धड़ें भी अलग-अलग हैं.
मेरठ में होगा अंतर्राष्ट्रीय जाट सम्मेलन: लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की सक्रियता तो स्वाभाविक है, लेकिन यूपी में खासतौर से जाटलैंड कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी के मेरठ में जाटों की सक्रियता से यह बिरादरी काफी चर्चाओं में है. बीते दिनों मेरठ में अखिल भारतीय जाट महासभा के द्वारा प्रांतीय जाट सम्मेलन का आयोजन किया गया. हजारों की संख्या में जाट उसमें शामिल हुए. मुद्दा था, केंद्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण मिले. वहीं, अब एक अक्टूबर को मेरठ में ही अंतर्राष्ट्रीय जाट सम्मेलन होने जा रहा है. इस बार मांगें बदली हुई हैं. अक्टूबर के बाद दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में 20 नवंबर को देशभर से जाट जुटने वाले हैं. कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव से पहले इस समाज के सक्रिय होने से इनकी तरफ सभी का ध्यान भी जा रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं कि 2024 का चुनाव नजदीक है. जब जब चुनाव आते हैं तो हर कोई चाहता है उसकी मुरादें और मांगें पूरी हों. वहीं सरकारें भी जब चुनावी साल आता है तो कोशिश करती है कि बहुत सारी मांगें पूरी हों. सियासी दलों की तो मजबूरी है कि उन्हें चुनाव में जाना है. वेस्ट यूपी में जाट समाज पिछले दो महीने के अंदर काफी सक्रिय हुए हैं. अपने आरक्षण को लेकर और चौधरी चरण सिंह जो प्रधानमंत्री रहे हैं, उनके लिए और शिक्षाविद सर छोटूराम के लिए जाट समाज की मांग उठ रही है, कि इन्हें भारत रत्न दिया जाए.
जाट केंद्रीय सेवाओं में चाहते हैं आरक्षण: सादाब रिजवी कहते हैं कि वेस्ट यूपी में कहा जाता है कि "जिसके जिसके साथ जाट, उसके ठाठ". सियासत में जाट जिसके साथ जुड़ गए पश्चिमी यूपी में वही आगे निकल जाता है. जाट समाज यह चाहता है कि चुनावी साल है, पुरानी मांग है, इसलिए अगर वो अपनी मांग प्रमुखता से उठाएं तो शायद उनकी दिल की जो इच्छा है वो पूरी हो जाए है. जाट केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण चाहते हैं. पहले भी कांग्रेस ने जाटों की इस मांग को पूरा कर दिया था. इसके बाद कोर्ट के दखल के बाद उसे रद्द कर दिया गया था. ऐसे में जाट दवाब बनाना चाहते हैं. पहला दवाब अभी पिछले दिनों बनाया गया जब अखिल भारतीय जाट महासभा का प्रांतीय सम्मेलन आयोजित हुआ. इसमें प्रमुख रूप से जाटों ने आरक्षण की मांग उठाई थी. हालांकि इस आयोजन में राष्ट्रीय लोकदल की विचारधारा से जुड़े लोग, भारतीय किसान यूनियन से जुड़े लोगों के अलावा दूसरे दलों से जुड़े दूसरे प्रांतों से लोग शामिल हुए थे. अब अंतर्राष्ट्रीय जाट संसद प्रस्तावित है, जो कि एक अक्टूबर को मेरठ में होने जा रही है. जिसको लेकर ये दावा किया जा रहा है कि 165 देशों से जाट प्रतिनिधि आ रहे हैं. हालांकि, मांग लगभग सभी की वही हैं. सादाब रिजवी कहते हैं कि जहां तक वे मानते हैं कि शायद बीजेपी भी इस बारे में कुछ विचार करे.
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वेस्ट यूपी में बीजेपी पहले से हुई कमजोर: सादाब रिजवी कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कमजोरी महसूस हुई है. 2019 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जो 14 सीटें यूपी में हारी हैं, उनमें से 7 पश्चिमी यूपी की हैं. विधानसभा चुनाव में जो राष्ट्रीय लोकदल जीरो पर था, वह आठ पर पहुंच गया. दूसरे दलों को जो सीटें मिलीं वो वहीं मिली हैं. जहां बीजेपी सबसे ज्यादा मजबूत थी. ऐसे में बीजेपी चाहती है कि वो उनका पहले वाला लक्ष्य फिर से पा लें. सादाब कहते हैं कि वेस्ट यूपी में जहां बीजेपी पहले से कमजोर हुई है, वहां बिना किसानों और इस बिरादरी के यह संभव नहीं है. पिछले दिनों चर्चा चली थी कि राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष जयंत चौधरी बीजेपी में जा रहे हैं. इस पर खूब चर्चाएं भी हुई. ऐसे में यह भी संभव है कि बीजेपी इस समाज की मांगों की तरफ ध्यान दे और उनकी मांगों को पूरी कर दे. यह सियासत है यहां कुछ भी हो सकता है. राजनीति में कुछ भी संभव है, कहीं ऐसा ना हो कि बीजेपी एक तीर से दो निशाने लगा ले, जाटों को भी साध दे और दूसरी तरफ रालोद को भी अपने साथ आने के लिए तैयार कर ले.
पश्चिमी यूपी में पावर बढ़ाने के लिए बीजेपी कर रही प्रयासः सादाब रिजवी कहते हैं कि उन्हें ऐसा लगता है कि चुनावी साल नजदीक है. मांग पूरी हो भी सकती हैं. कयास भी लगाए जा रहे हैं कि इस पर प्रदेश और केंद्र सरकार विचार कर भी सकती हैं, क्योंकि पश्चिमी यूपी में पावर बढ़ाने के लिए बीजेपी प्रयास भी खूब कर रही है. हालांकि, यहां सत्ताधारी दल के लिए अच्छी बात यह भी है कि जाटों का एक बड़ा वर्ग उनके साथ है, खासतौर पर जब से पार्टी ने भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान दी है तब से तो बीजेपी के साथ यह बिरादरी और भी मजबूती से जुडी है. हालांकि, गौर करने वाली बात यह है कि दोनों ही ही धड़े वो एक दूसरे से जुदा जुदा हैं. एक सरकार पर वार करके हक मांगने की राह पर है तो दूसरा सत्ता के साथ खड़ा होकर. खास बात यह भी है कि एक अक्टूबर की प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय जाट संसद बीजेपी के तमाम जाट लीडर्स जिनमें केंद्र और प्रदेश सरकार में मंत्री, सांसद या विधायक है उन सभी को भी आमंत्रित किया गया है.
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