मेरठ: दशहरे का पर्व हिन्दू धर्म में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था. आश्विन मास के नवरात्र में मां दुर्गा के व्रत रख पूजा पाठ की जाती है. इसके साथ ही रामलीला का मंचन भी किया जाता है. रामायण में भगवान राम के बाद मुख्यपात्र रहे लंकापति रावण का पश्चिमी उत्तर प्रदेश से खास नाता रहा है. नोएडा में ननिहाल तो मेरठ शहर में रावण की ससुराल बताई जाती है. मान्यता है कि त्रेता युग में मय दानव की पुत्री मंदोदरी के साथ रावण का विवाह हुआ था.
विवाह से पहले मंदोदरी बिलेश्वरनाथ महादेव मंदिर में भगवान शंकर की पूजा किया करती थीं. बिलेश्वर नाथ महादेव का मंदिर आज भी मेरठ में मौजूद है. मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ ने मंदोदरी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें इस मंदिर में दर्शन दिए थे. मंदोदरी ने वरदान मांगा था कि उनका पति इस धरती पर सबसे बड़ा विद्वान और शक्तिशाली हो. बाद में भगवान शिव के वरदान से मंदोदरी का विवाह रावण के साथ हुआ. बिलेश्वरनाथ महादेव मंदिर के पुजारी पंडित हरीश जोशी के अनुसार रावण ब्राह्मण और विद्वान था. यही वजह है कि ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज का एक बड़ा वर्ग दशहरे पर रावण के पुतलों का दहन नहीं देखता.
त्रेता युग में रावण की ससुराल रहा है मेरठ
जानकारों के मुताबिक प्राचीन काल में मेरठ शहर का नाम मयराष्ट्र हुआ करता था. मयासुर के नाम पर शहर का नाम मयराष्ट्र रखा गया था. मेरठ शहर मंदोदरी का मायका और रावण की ससुराल है. त्रेता युग में मयासुर की पुत्री मंदोदरी के साथ दशानन रावण का विवाह हुआ था. इसके चलते रावण का न सिर्फ इस शहर से गहरा रिश्ता जुड़ गया बल्कि अपनी ससुराल में आना जाना रहता था. जिस स्थान पर मय दानव का महल हुआ करता था, आज उस जगह पर तहसील टीला बना हुआ है. ये सभी प्रमाण मेरठ में लंकापति रावण की ससुराल होने की पुष्टि करते हैं.
बिलेश्वरनाथ महादेव मंदिर में पूजा करती थीं मंदोदरी
सिध्दपीठ बिलेश्वरनाथ महादेव मंदिर के पुजारी पंडित हरीश चंद्र जोशी ने बताया कि त्रेता युग में यहां दैत्य वंश के राजा मयासुर आए थे. मयासुर ने ही मयराष्ट्र के नाम से इसकी स्थापना की थी. मान्यता है कि मयासुर की पुत्री मंदोदरी विवाह से पहले महल के पास बने तालाब में स्नान कर बिलेश्वरनाथ महादेव मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आती थीं. जिस तालाब में मंदोदरी स्नान किया करती थी, उस जगह को अब भैसाली मैदान के नाम से जाना जाता है. मंदोदरी प्रतिदिन इस मंदिर में आकर भगवान शंकर की पूजा अर्चना किया करती थीं. मान्यता है कि प्राचीन काल से ही यहां स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है, जिसके चलते इस मंदिर को सिध्दपीठ बिलेश्वरनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है.
दशहरा मनाने की चल रहीं तैयारियां
देश भर में दशहरे का त्योहार धूम-धाम से मनाने की तैयारियां चल रही हैं. कोरोना काल में भी जगह-जगह रामलीला का मंचन किया जा रहा है. कुशल कारीगर रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले बना रहे हैं. रविवार को सांकेतिक रूप से भगवान श्रीराम के हाथो रावण वध कर उसके पुतलों का दहन किया जाएगा. मेरठ जिले में दशानन रावण की ससुराल होने के नाते एक बड़ा तबका न तो दशहरा मनाता है और न ही रावण दहन देखता है.
रावण के ससुराल में नहीं देखा जाता पुतला दहन
पंडित हरीश चंद्र जोशी के मुताबिक मेरठ शहर में रावण की ससुराल है. मेरठ के ज्यादातर ब्राह्मण और क्षत्रिय मंदोदरी को अपनी बहन और बुआ की तरह मानते हैं. सनातन धर्म में बहन-बेटी के पति का अंतिम संस्कार देखना सही नहीं है. ठीक उसी तरह एक बड़ा वर्ग रावण दहन को देखना पाप समझता है. नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा करते हैं, लेकिन रावण के पुतलों का दहन देखने नही जाते. रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतलों का दहन देखना रावण के ससुरालियों के लिए अभिशाप माना जाता है.