मेरठ: देश के करोड़ों राम भक्तों का अयोध्या में राम मंदिर बनने का सपना पूरा होने जा रहा है. आज भी ऐसे राम भक्त मौजूद हैं, जो विवादित ढांचे को गिराए जाने के दौरान मौके पर मौजूद थे और वहां से निशानी के रूप में मिट्टी की ईंट और अन्य सामग्री अपने साथ लेकर आए थे. ऐसे ही एक राम भक्त मेरठ जिले के एक गांव में हैं, जो अपने साथ वहां से विवादित ढांचे की एक लाखोरी ईंट अपने साथ लेकर आए थे. इस ईंट को आज भी उन्होंने अपने पास संभाल कर रखा हुआ है.
अयोध्या बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की कहानी को कारसेवक ने ईटीवी भारत से साझा किया. एक-एक जुड़े तो कारवां बनता गया जिले के दुल्हैड़ा चौहान गांव के रहने वाले प्रेमपाल सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में 6 दिसंबर 1992 की घटना की यादों को ताजा किया. प्रेमपाल सिंह ने बताया कि वह 1992 में दौराला ब्लॉक के भाजपा अध्यक्ष थे. उस समय गांव में राम ज्योति यात्रा, रामशिला पूजन आदि के कार्यक्रम चल रहे थे. उन्हें भी कार्यक्रमों में जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उस वक्त संगठन मंत्री शीलेंद्र शास्त्री थे. उनके साथ मिलकर वह गांव-गांव गए. एक-एक आदमी उनसे जुड़ा तो कारवां बनता चला गया. इस दौरान भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके प्रोफेसर रविंद्र पुंडीर भी उनके साथ थे. उस समय वो चुनाव हार गए थे, लेकिन क्षेत्र में सक्रिय थे.7 किमी चले थे पैदल प्रेमपाल सिंह ने बताया कि एक दिसंबर को करीब 25 लोगों का उनका जत्था ट्रेन में अलग-अलग डिब्बे में सवार होकर लखनऊ पहुंचा. वहां से लोकल वाहनों से फैजाबाद पहुंचे. फैजाबाद में कड़ी सुरक्षा की गई थी, वहां से वह करीब 7 किमी तक पैदल चलकर अयोध्या पहुंचे. वहां राम भक्तों की बड़ी संख्या में भीड़ थी. कोई गले में राम नाम की पट्टी बांधे था, तो किसी के सिर पर राम नाम की पट्टिका बंधी थी. सभी को वहां जाकर कहा गया कि सरयू नदी से एक मुट्ठी रेत लाकर राम जन्मभूमि पर डालें.देखते देखते ही ध्वस्त हो गया ढांचा उन्होंने बताया कि 6 दिसंबर को राम चबूतरे पर सभा चल रही थी, उसमें भाजपा और विहिप के बड़े नेताओं के अलावा साधु-संत भी मौजूद थे. भारी संख्या में पीएसी और पुलिस फोर्स तैनात था. अचानक वहां मौजूद लोगों को लगने लगा कि नेता कुछ नहीं करेंगे. इसी दौरान कुछ कार्यकर्ता बैरिकेडिंग को गिराकर विवादित ढांचे की ओर बढ़ गए. देखते ही देखते कुछ कार्यकर्ता गुंबद पर चढ़ गए. हर कोई ढांचे तक जाना चाहता था, लेकिन भीड़ इतनी थी कि लोग वहां तक पहुंच नहीं पा रहे थे. इसी दौरान कुछ लोगों ने ढांचे के पिलर रस्सी से खींचकर गिरा दिए, जबकि गुंबद पर चढ़े कार्यकर्ताओं ने उसे कुल्हाड़ी आदि से प्रहार कर तोड़ दिया. देखते ही देखते वहां पूरा ढांचा ध्वस्त हो गया. अस्थाई कच्ची मिट्टी से दीवार बनाकर वहां रामलला विराजमान कर दिए गए.निशानी के रूप में लेकर आए ईंटअयोध्या से वापस लौटते समय वहां गए राम भक्त चाहते थे कि कुछ न कुछ निशानी अपने साथ वापस लेकर जाएं. कोई वहां से विवादित ढांचे की मिट्टी लेकर आ रहा था तो कोई ईंट व पत्थर. प्रेमपाल सिंह बताते हैं कि वह भी विवादित ढांचे की एक लखोरी ईंट अपने साथ निशानी के रूप में लाए थे. वह ईंट आज भी उन्होंने अपने पास संभाल कर रखी हुई है. वह कहते हैं कि यह ईंट आने वाली पीढ़ी को याद दिलाती रहेगी की यह गुलामी के प्रतीक हैं और कैसे कड़े संघर्ष के बाद हमें श्री राम जन्मभूमि पर रामलला का मंदिर मिला.