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स्वतंत्रता दिवस पर परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव ने बताए आजादी के मायने, करगिल युद्ध पर भी की बात - स्वतंत्रता दिवस

देशभर में स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2023) को लेकर देशभक्ति का माहौल है. इस मौके पर मेरठ पहुंचे परमवीर चक्र (Paramveer Chakra) विजेता योगेंद्र यादव (Yogendra Yadav) से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. उन्होंने तमाम विषयों पर मुखर होकर अपनी बात कही. देखें स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र से खास बातचीत के प्रमुख अंश.

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Published : Aug 15, 2023, 1:28 PM IST

परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव से संवाददाता श्रीपाल तेवतिया की खास बातचीत

मेरठ: बुलंदशहर जिले के गांव औरंगाबाद अहीर के मूल निवासी योगेन्द्र यादव ने जब करगिल युद्ध में पाकिस्तान से मोर्चा लिया था तब वह मात्र 19 साल के थे और 18 ग्रेनेडियर में तैनात थे. करगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानियों ने कब्जा जमा लिया था. उसे छुड़ाने का जिम्मा बारी-बारी कई टीमों ने संभाला था, जिनको पहाड़ की चोटी पर बैठे पाकिस्तानियों ने निशाना बना डाला. 20 मई 1999 को तोलोलिंग पर कब्जा करने का अभियान शुरू हुआ.

करगिल युद्ध के हीरोः 22 दिन की लड़ाई में नायब सूबेदार लालचंद, सूबेदार रणवीर सिंह, मेजर राजेश अधिकारी और लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विश्वनाथन की टीमों ने बारी-बारी धावा बोला था. मगर यह प्रयास असफल रहा. उसके बाद 12 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर और सेकंड राइफल ने अटैक किया. योगेंद्र सिंह यादव इस टीम का हिस्सा बने. गजब की जंग हुई और तोलोलिंग फतेह के बाद जीत का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को इस टीम ने 8 चोटियों पर कब्जा किया.

परमवीर चक्र पाने वाले सबसे कम उम्र के सैनिक हैं योगेंद्रः इस उपलब्धि पर योगेंद्र यादव को उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. योगेंद्र ये सम्मान पाने वाले देश के सबसे कम देश के सबसे कम उम्र के जवान हैं. मेरठ में ईटीवी भारत से उन्होंने खास बातचीत में कहा कि आजादी के मायने एक सैनिक के लिए बहुत खास होते हैं. देश की आजादी के लिए लाखों वीरों और वीरांगनाओं ने शहादत दी है तब जाकर हमें आजादी मिली है. उन्हीं की बदौलत हम आज आजादी के माहौल में सांस ले पा रहे हैं. ऐसे वीरों को नमन करने का दिन है जो दिन रात देश की सेवा में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं. ये आजादी ऐसे ही नहीं मिली हमनें बहुत जुल्म सहे हैं.

क्या कहते हैं तिरंगे के तीन रंगः योगेंद्र कहते हैं कि तिरंगे के तीन रंग हमारी आन, बान और शान हैं. ये हर इंसान के घरों में और दिलों में बसना चाहिए. जब हम राष्ट्र को सर्वप्रथम रखकर अपने जीवन का निर्वाह करेंगे, अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ेंगे, तब जाकर इस राष्ट्र को हम और ऊंची बुलंदियों पर ले जा सकते हैं. वह कहते हैं कि हर भारतवासी को आजादी को रक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए.

करगिल युद्ध में कैसे मिली जीतः योगेंद्र यादव कहते हैं कि हम चाहे जिस भी क्षेत्र में क्यों न हों हमें ध्यान देना चाहिए कि व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा राष्ट्र की पहचान बनाए रखना बेहद जरूरी है. हमारा दायित्व बनता है कि हम राष्ट्र को कुछ दें. करगिल वार को लेकर भी योगेंद्र यादव ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि करगिल वार ऐसी परिस्थियों में लड़ा गया था, जहां जीवन यापन करना भी असम्भव था. माइनस 20 डिग्री तापमान में ऊंची पहाड़ियों पर बैठे दुश्मन को खत्म किया था.

17 हजार की फीट पर सैनिकों के लिए पहुंचाया था राशनः तोलोलिंग फतह के दौरान घातक प्लाटून के कई जवान शहीद हो गए थे. इसलिए जब 17 हजार फीट ऊंचे टाइगर हिल को छुड़ाने की प्लानिंग शुरू हुई तो बेहतर योद्धाओं की तलाश हुई. तोलोलिंग पर जीत के बाद योगेंद्र यादव और उनके तीन साथियों को लड़ाई लड़ रहे सैनिकों तक राशन पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया था. इसके लिए उन्हें घंटों पैदल चलना होता था.

टाइगर हिल पर कैसे की थी फतेहः उनकी शारीरिक क्षमता को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में जगह मिल गई. पहले दो रात और एक दिन की चढ़ाई और फिर लड़ाई. फिर बारी आई टाइगर हिल फतेह करने की. दो रात और एक दिन कठिन चढ़ाई के बाद सात जवान तीसरी रात टाइगर हिल पर चढ़ गए और वहां मौजूद दुश्मनों को खत्म कर बंकर पर कब्जा कर लिया. मगर दूसरी पहाड़ी के दुश्मनों ने पांच घंटे तक ताबड़तोड़ गोलाबारी की.

15 गोली लगने के बाद भी हिम्मत नहीं हारीः 15 गोली लगने के बाद भी योगेंद्र की सांसें चल रही थीं. ऐसी हालत में भी उन्होंने एक ग्रेनेड पाकिस्तानियों की ओर फेंका. ग्रेनेड ने अपना काम कर दिया. कई पाकिस्तानी मारे गए. टाइगर हिल दुश्मनों के कब्जों से मुक्त हो चुका था. गंभीर रूप से जख्मी होने के बाद भी योगेंद्र ने हिम्मत दिखाई और घिसटते हुए बेस कैंप पहुंचे. उनकी इस बहादुरी के बाद करगिल में लड़ाई का रुख बदल गया.

अग्निवीर योजना के लिए सरकार से किया निवेदनः सरकार की अग्निवीर योजना को लेकर योगेंद्र ने कहा कि उन्हें लगता है कि इसका मकसद यह था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को ट्रेंड किया जा सके और उन्हें रोजगार दिया जा सके. लेकिन, मैं सरकार से यहां निवेदन भी करना चाहूंगा कि जब वह 4 साल के बाद वापस आते हैं तो ट्रेंड मैनपावर को ऐसे ही न छोडें. पैरामिलिट्री फोर्सेस और स्टेट पुलिस के अंदर इन लोगों को शामिल किया जाए देश का कौशल देश की ताकत देश के उपयोग में लाई जाए.

अखिलेश यादव के लिए भी योगेंद्र ने कही बातः बातचीत में परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव का दर्द भी छलक उठा. उन्होंने कहा कि जब अखिलेश यादव की यूपी में सरकार थी. उस वक्त अखिलेश यादव ने उनके क्षेत्र में 100 बेड का अस्पताल बनाने की घोषणा की थी. जिससे उन्हें लगा था कि कम से कम एक लाख आबादी के लिए यह घोषणा काफी बड़ी मदद होगी. लेकिन, सरकार बदली और उसके बाद योगी जी ने उसे बदल दिया और अब वहां सिर्फ चार बेड का अस्पताल बना है.

गांव में एक बड़ा अस्पताल खोलने की मांग कीः वह कहते हैं कि पीएचसी बनाने से क्षेत्र में किसी का कोई भला होने वाला नहीं है. 100 बेड के अस्पताल की क्षेत्र में बहुत ज्यादा जरूरत थी, क्योंकि उनके क्षेत्र में कोई बड़ा हॉस्पिटल न होने की वजह से काफी बार ऐसा हुआ है कि दिल्ली, मेरठ या नोएडा गाजियाबाद पहुंचते-पहुंचते ही मरीजों को दम निकल जाता है. गौरतलब है कि योगेंद्र यादव से भेंट के दौरान पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने योद्धा के गांव को आई स्पर्श योजना के तहत स्मार्ट गांव बनाने की बात भी कही थी लेकिन सरकार बदली सब बदल गया. वह कहते हैं कि सरकार से निवेदन है कि क्षेत्र में जरूरत को देखते हुए AIIMS की तर्ज पर हॉस्पिटल बेहद जरूरी है.

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परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव से संवाददाता श्रीपाल तेवतिया की खास बातचीत

मेरठ: बुलंदशहर जिले के गांव औरंगाबाद अहीर के मूल निवासी योगेन्द्र यादव ने जब करगिल युद्ध में पाकिस्तान से मोर्चा लिया था तब वह मात्र 19 साल के थे और 18 ग्रेनेडियर में तैनात थे. करगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानियों ने कब्जा जमा लिया था. उसे छुड़ाने का जिम्मा बारी-बारी कई टीमों ने संभाला था, जिनको पहाड़ की चोटी पर बैठे पाकिस्तानियों ने निशाना बना डाला. 20 मई 1999 को तोलोलिंग पर कब्जा करने का अभियान शुरू हुआ.

करगिल युद्ध के हीरोः 22 दिन की लड़ाई में नायब सूबेदार लालचंद, सूबेदार रणवीर सिंह, मेजर राजेश अधिकारी और लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विश्वनाथन की टीमों ने बारी-बारी धावा बोला था. मगर यह प्रयास असफल रहा. उसके बाद 12 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर और सेकंड राइफल ने अटैक किया. योगेंद्र सिंह यादव इस टीम का हिस्सा बने. गजब की जंग हुई और तोलोलिंग फतेह के बाद जीत का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को इस टीम ने 8 चोटियों पर कब्जा किया.

परमवीर चक्र पाने वाले सबसे कम उम्र के सैनिक हैं योगेंद्रः इस उपलब्धि पर योगेंद्र यादव को उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. योगेंद्र ये सम्मान पाने वाले देश के सबसे कम देश के सबसे कम उम्र के जवान हैं. मेरठ में ईटीवी भारत से उन्होंने खास बातचीत में कहा कि आजादी के मायने एक सैनिक के लिए बहुत खास होते हैं. देश की आजादी के लिए लाखों वीरों और वीरांगनाओं ने शहादत दी है तब जाकर हमें आजादी मिली है. उन्हीं की बदौलत हम आज आजादी के माहौल में सांस ले पा रहे हैं. ऐसे वीरों को नमन करने का दिन है जो दिन रात देश की सेवा में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं. ये आजादी ऐसे ही नहीं मिली हमनें बहुत जुल्म सहे हैं.

क्या कहते हैं तिरंगे के तीन रंगः योगेंद्र कहते हैं कि तिरंगे के तीन रंग हमारी आन, बान और शान हैं. ये हर इंसान के घरों में और दिलों में बसना चाहिए. जब हम राष्ट्र को सर्वप्रथम रखकर अपने जीवन का निर्वाह करेंगे, अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ेंगे, तब जाकर इस राष्ट्र को हम और ऊंची बुलंदियों पर ले जा सकते हैं. वह कहते हैं कि हर भारतवासी को आजादी को रक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए.

करगिल युद्ध में कैसे मिली जीतः योगेंद्र यादव कहते हैं कि हम चाहे जिस भी क्षेत्र में क्यों न हों हमें ध्यान देना चाहिए कि व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा राष्ट्र की पहचान बनाए रखना बेहद जरूरी है. हमारा दायित्व बनता है कि हम राष्ट्र को कुछ दें. करगिल वार को लेकर भी योगेंद्र यादव ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि करगिल वार ऐसी परिस्थियों में लड़ा गया था, जहां जीवन यापन करना भी असम्भव था. माइनस 20 डिग्री तापमान में ऊंची पहाड़ियों पर बैठे दुश्मन को खत्म किया था.

17 हजार की फीट पर सैनिकों के लिए पहुंचाया था राशनः तोलोलिंग फतह के दौरान घातक प्लाटून के कई जवान शहीद हो गए थे. इसलिए जब 17 हजार फीट ऊंचे टाइगर हिल को छुड़ाने की प्लानिंग शुरू हुई तो बेहतर योद्धाओं की तलाश हुई. तोलोलिंग पर जीत के बाद योगेंद्र यादव और उनके तीन साथियों को लड़ाई लड़ रहे सैनिकों तक राशन पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया था. इसके लिए उन्हें घंटों पैदल चलना होता था.

टाइगर हिल पर कैसे की थी फतेहः उनकी शारीरिक क्षमता को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में जगह मिल गई. पहले दो रात और एक दिन की चढ़ाई और फिर लड़ाई. फिर बारी आई टाइगर हिल फतेह करने की. दो रात और एक दिन कठिन चढ़ाई के बाद सात जवान तीसरी रात टाइगर हिल पर चढ़ गए और वहां मौजूद दुश्मनों को खत्म कर बंकर पर कब्जा कर लिया. मगर दूसरी पहाड़ी के दुश्मनों ने पांच घंटे तक ताबड़तोड़ गोलाबारी की.

15 गोली लगने के बाद भी हिम्मत नहीं हारीः 15 गोली लगने के बाद भी योगेंद्र की सांसें चल रही थीं. ऐसी हालत में भी उन्होंने एक ग्रेनेड पाकिस्तानियों की ओर फेंका. ग्रेनेड ने अपना काम कर दिया. कई पाकिस्तानी मारे गए. टाइगर हिल दुश्मनों के कब्जों से मुक्त हो चुका था. गंभीर रूप से जख्मी होने के बाद भी योगेंद्र ने हिम्मत दिखाई और घिसटते हुए बेस कैंप पहुंचे. उनकी इस बहादुरी के बाद करगिल में लड़ाई का रुख बदल गया.

अग्निवीर योजना के लिए सरकार से किया निवेदनः सरकार की अग्निवीर योजना को लेकर योगेंद्र ने कहा कि उन्हें लगता है कि इसका मकसद यह था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को ट्रेंड किया जा सके और उन्हें रोजगार दिया जा सके. लेकिन, मैं सरकार से यहां निवेदन भी करना चाहूंगा कि जब वह 4 साल के बाद वापस आते हैं तो ट्रेंड मैनपावर को ऐसे ही न छोडें. पैरामिलिट्री फोर्सेस और स्टेट पुलिस के अंदर इन लोगों को शामिल किया जाए देश का कौशल देश की ताकत देश के उपयोग में लाई जाए.

अखिलेश यादव के लिए भी योगेंद्र ने कही बातः बातचीत में परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव का दर्द भी छलक उठा. उन्होंने कहा कि जब अखिलेश यादव की यूपी में सरकार थी. उस वक्त अखिलेश यादव ने उनके क्षेत्र में 100 बेड का अस्पताल बनाने की घोषणा की थी. जिससे उन्हें लगा था कि कम से कम एक लाख आबादी के लिए यह घोषणा काफी बड़ी मदद होगी. लेकिन, सरकार बदली और उसके बाद योगी जी ने उसे बदल दिया और अब वहां सिर्फ चार बेड का अस्पताल बना है.

गांव में एक बड़ा अस्पताल खोलने की मांग कीः वह कहते हैं कि पीएचसी बनाने से क्षेत्र में किसी का कोई भला होने वाला नहीं है. 100 बेड के अस्पताल की क्षेत्र में बहुत ज्यादा जरूरत थी, क्योंकि उनके क्षेत्र में कोई बड़ा हॉस्पिटल न होने की वजह से काफी बार ऐसा हुआ है कि दिल्ली, मेरठ या नोएडा गाजियाबाद पहुंचते-पहुंचते ही मरीजों को दम निकल जाता है. गौरतलब है कि योगेंद्र यादव से भेंट के दौरान पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने योद्धा के गांव को आई स्पर्श योजना के तहत स्मार्ट गांव बनाने की बात भी कही थी लेकिन सरकार बदली सब बदल गया. वह कहते हैं कि सरकार से निवेदन है कि क्षेत्र में जरूरत को देखते हुए AIIMS की तर्ज पर हॉस्पिटल बेहद जरूरी है.

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