मेरठ: जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर गगोल तीर्थ स्थित है. यह ऐसा स्थान है, जहां भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण ने राक्षसों का संहार किया था. इस स्थान को विश्वामित्र की तपोस्थली के तौर पर भी जाना जाता है. इसका पौराणिक और धार्मिक महत्व भी है.
ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व की धरा मेरठ में स्थित गगोल में भी काफी विकास हुआ है. यहां वन क्षेत्र में स्थित तपोभूमि में एक सरोवर है, जहां लोग न सिर्फ स्नान करने आते हैं, बल्कि यहां विशेष पूजा अर्चना भी होती है. यहां विश्वामित्र का मंदिर भी है और उनके साथ में भगवान राम और लक्ष्मण जी भी विराजमान हैं.
इस बारे में साध्वी मधुदास बताती हैं कि मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम और लक्ष्मण ने गगोल में हवन कर रहे विश्वामित्र के अनुष्ठान को पूर्ण कराया था. इस दौरान उन्होंने विघ्न उत्पन्न करने वाले राक्षसों का वध किया था. इसके बाद ही श्रीराम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ स्वयंवर के लिए गए थे. उन्होंने कहा कि विश्वामित्र की तपोस्थली के नाम से प्रसिद्ध इस स्थान का इतना विकास नहीं हो पाया, जितना कि बाकि धर्मस्थलों का हुआ. वे कहती हैं कि संतोष है कि प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस ओर ध्यान दिया है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां विश्वामित्र को राक्षस यज्ञ करने से रोका करते थे. उनके यज्ञ को ही मयदानव और अन्य राक्षस खंडित किया करते थे.
'श्रीराम ने वाण चलाकर बनाया था जलश्रोत'
साध्वी मधुदास बताती हैं कि जब प्रभु राम और लक्ष्मण यहां आए थे तो उन्होंने न सिर्फ गुरु विश्वामित्र का सफलतापूर्वक यज्ञ सम्पन्न कराया था, बल्कि दानवों का संहार भी किया. यही नहीं, वे बताती हैं कि जब यहां से भगवान राम गए थे तो यह मरुस्थलीय भूमि थी और यहां जल का भी कोई प्रबंध नहीं था. इसके लिए इसी स्थान पर प्रभु राम ने एक ऐसा तीर चलाया था, जिससे यहां जल बह निकला था. उसके बाद पहले यहां कच्चा सरोवर हुआ करता था. बाद में इस सरोवर को पक्का घाट बनाकर सुसज्जित किया गया. वे बताती हैं कि सरोवर अब जहां बना है, उसके मध्य में ही वह जलश्रोत है. इसके अलावा वहीं पर एक हवन कुंड भी बना हुआ है.
'स्नान करने से दूर होते हैं कई प्रकार के रोग'
मधुदास कहती हैं कि यहां स्नान करने से काफी समस्याओं का समाधान भी हो जाता है. इतना ही नहीं शरीर में जैसे चर्म रोग आदि भी यहां कुछ दिन स्नान करने से समाप्त हो जाते हैं. प्रमुख पर्व पर यहां मेला लगता है. इस दौरान दूर-दूर से लोग इस तीर्थ स्थान पर आकर पूजा अर्चना करते हैं. आज भी आसपास में घना जंगल है.
गया की तरह यहां भी पिण्डदान करने आते हैं लोग
स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां दूर-दूर से लोग आते हैं. जिस तरह से गया में पिंडदान के लिए लोग जाते हैं, ठीक उसी तरह इस धार्मिक स्थल पर भी लोग आकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं. तपोस्थली गगोल तीर्थ पर अब इन दिनों छठ महापर्व को लेकर तैयारियां की जा रही हैं.
गगोल तीर्थ पर अलग-अलग पर्वों पर लगता है मेला
गगोल तीर्थ के महंत शिवदास बताते हैं कि विश्वामित्र की तपोस्थली पर हर वर्ष खिचड़ी वाले बाबा का मेला लगता है. इसके अलावा छठ पूजा के समय काफी भीड़ यहां पहुंचती है. गणेश विसर्जन के लिए भक्तों का तांता लगता है. दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन करने यहां भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. गंगा स्नान, गंगा दशहरा और पूर्णिमा के अवसर पर यहां गंगा स्नान के लिए भक्त आते हैं. इसी तरह देवोत्थान एकादशी, कार्तिक पूर्णिमा और आंवला नवमी पर भक्तों की भीड़ रहती है.
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