मेरठ: उत्तर प्रदेश में बाढ़ से होने वाली तबाही पर नियंत्रण के लिए जिस बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण कार्य उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू कराया, उस निर्माण कार्य को शुरू कराने के बाद सरकार भूल गई. करोड़ों रुपये खर्च कर जो निर्माण कार्य कराए गए थे वह वर्तमान में खंडहर में तब्दील हो गए हैं. यह हाल तब है जब हर साल बरसात के दिनों में बाढ़ से यूपी के कई जिलों में भारी तबाही का सामना करना पड़ता है.
मेरठ: खंडहर में तब्दील हुआ करोड़ों की लागत से बनाया गया बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान केंद्र
मेरठ जिले में स्थित बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र का निर्माण प्रदेश सरकार ने किया था. देखरेख की अनदेखी के चलते अब वह खंडहर में तब्दील हो गया है. इस भवन के निर्माण के लिए 8 करोंड़ रुपये खर्च किए गए थे.
खंडहर में तब्दील हुआ अनुसंधान
मेरठ: उत्तर प्रदेश में बाढ़ से होने वाली तबाही पर नियंत्रण के लिए जिस बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण कार्य उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू कराया, उस निर्माण कार्य को शुरू कराने के बाद सरकार भूल गई. करोड़ों रुपये खर्च कर जो निर्माण कार्य कराए गए थे वह वर्तमान में खंडहर में तब्दील हो गए हैं. यह हाल तब है जब हर साल बरसात के दिनों में बाढ़ से यूपी के कई जिलों में भारी तबाही का सामना करना पड़ता है.
उत्तर प्रदेश के एकमात्र बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना मेरठ जिले की भोला झाल पर की गई है. वर्ष 2006 में इस प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई. टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के बाद वर्ष 2007 में इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू किया गया. इसका शिलान्यास उस वक्त सिंचाई मंत्री रहीं अनुराधा चौधरी ने किया था. इस प्रोजेक्ट का नाम भी चौधरी चरण सिंह बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र रखा गया. 2007 में निर्माण कार्य शुरू होने के बाद करोड़ों रुपये खर्च कर यहां आवासीय मकान, लैब और अन्य भवनों के निर्माण किए गए. लेकिन प्रशासन की अनदेखी में अब यह निर्माण कार्य खंडहर में तब्दील हो गए हैं.
उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने शुरू किया था निर्माण
सिंचाई विभाग के अधीन बनने वाले इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य उस समय उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने शुरू किया था. साढ़े 8 करोड़ रुपये निर्माण कार्य पर खर्च किए गए थे. बताया गया कि निर्माण कार्य के लिए करीब साढे ₹11 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था. बाद में बजट के अभाव में निर्माण कार्य बीच में ही छोड़ दिया गया. यही कारण रहा कि जो निर्माण कार्य हुआ वह करीब 12 साल बाद खंडहर में तब्दील हो रहा है. परिसर में कटीली झाड़ियां उग आई हैं. कुछ भवनों के खिड़की दरवाजे गायब हो गए हैं, लोग उन्हें उखाड़ कर ले गए हैं.
बंटवारे से पहले हरिद्वार में था यह केंद्र
उत्तर प्रदेश के बंटवारे के बाद उत्तराखंड बना और उस वक्त प्रदेश का एकमात्र बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान केंद्र एवं ट्रेनिंग सेंटर हरिद्वार जिले के बहादराबाद में था. वहां यह केंद्र आज भी चल रहा है जो वर्तमान में उत्तराखंड के लिए रिसर्च कर रहा है. प्रदेश विभाजन के बाद यह केंद्र उत्तराखंड में चले जाने के बाद उत्तर प्रदेश में बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं ट्रेनिंग सेंटर स्थापना की कवायद शुरू की गई. विभागीय अधिकारियों की मानें तो पहले यह प्रोजेक्ट फैजाबाद के लिए स्वीकृत किया गया था, लेकिन बाद में उसे मेरठ में स्थापित करने की सहमति बनी. जिसके बाद उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सिंचाई मंत्री अनुराधा चौधरी ने इस प्रोजेक्ट की घोषणा करते हुए इसका शिलान्यास मेरठ में किया. सपा सरकार में सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने भी इस प्रोजेक्ट को जल्द शुरू कराने की बात कही लेकिन काम शुरू नहीं हो सका.
निर्माण के यह कार्य किए गए
चौधरी चरण सिंह बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र में एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, लैब, मीटिंग हॉल, ट्रेनिंग सेंटर और स्टाफ के लिए क्वार्टर और हॉस्टल का निर्माण किया गया है. इस निर्माण कार्य पर करीब 8 करोड़ 86 लाख रुपये खर्च किए गए. इस प्रोजेक्ट के पूरा न होने की वजह से उत्तर प्रदेश में बाढ़ का पूर्वानुमान उस पर अंकुश या पूर्व में चेतावनी जारी नहीं हो पाती है. जानकार बताते हैं कि अभी भी इसके लिए उत्तराखंड पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है. यदि यह प्रोजेक्ट यहां शुरू हो जाता तो प्रदेश में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता था.
इस विषय में अधिकारियों का कहना
वर्तमान में इस प्रोजेक्ट की फाइल सिंचाई विभाग के निर्माण खंड के पास है. सिंचाई विभाग अनुसंधान एवं नियोजन खंड के अधिशासी अभियंता विश्वम्भर का कहना है कि निर्माण का कार्य लगभग पूरा हो गया था, लेकिन यहां के स्टाफ के पदों को लेकर स्थिति स्पष्ट न होने की वजह से यह प्रोजेक्ट रुका हुआ है. शासन को इस संबंध में अपनी रिपोर्ट प्रेषित कर दी गई है. वहां से स्वीकृति के बाद काम फिर से शुरू कराया जाएगा.
उत्तर प्रदेश के एकमात्र बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना मेरठ जिले की भोला झाल पर की गई है. वर्ष 2006 में इस प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई. टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के बाद वर्ष 2007 में इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू किया गया. इसका शिलान्यास उस वक्त सिंचाई मंत्री रहीं अनुराधा चौधरी ने किया था. इस प्रोजेक्ट का नाम भी चौधरी चरण सिंह बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र रखा गया. 2007 में निर्माण कार्य शुरू होने के बाद करोड़ों रुपये खर्च कर यहां आवासीय मकान, लैब और अन्य भवनों के निर्माण किए गए. लेकिन प्रशासन की अनदेखी में अब यह निर्माण कार्य खंडहर में तब्दील हो गए हैं.
उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने शुरू किया था निर्माण
सिंचाई विभाग के अधीन बनने वाले इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य उस समय उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने शुरू किया था. साढ़े 8 करोड़ रुपये निर्माण कार्य पर खर्च किए गए थे. बताया गया कि निर्माण कार्य के लिए करीब साढे ₹11 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था. बाद में बजट के अभाव में निर्माण कार्य बीच में ही छोड़ दिया गया. यही कारण रहा कि जो निर्माण कार्य हुआ वह करीब 12 साल बाद खंडहर में तब्दील हो रहा है. परिसर में कटीली झाड़ियां उग आई हैं. कुछ भवनों के खिड़की दरवाजे गायब हो गए हैं, लोग उन्हें उखाड़ कर ले गए हैं.
बंटवारे से पहले हरिद्वार में था यह केंद्र
उत्तर प्रदेश के बंटवारे के बाद उत्तराखंड बना और उस वक्त प्रदेश का एकमात्र बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान केंद्र एवं ट्रेनिंग सेंटर हरिद्वार जिले के बहादराबाद में था. वहां यह केंद्र आज भी चल रहा है जो वर्तमान में उत्तराखंड के लिए रिसर्च कर रहा है. प्रदेश विभाजन के बाद यह केंद्र उत्तराखंड में चले जाने के बाद उत्तर प्रदेश में बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं ट्रेनिंग सेंटर स्थापना की कवायद शुरू की गई. विभागीय अधिकारियों की मानें तो पहले यह प्रोजेक्ट फैजाबाद के लिए स्वीकृत किया गया था, लेकिन बाद में उसे मेरठ में स्थापित करने की सहमति बनी. जिसके बाद उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सिंचाई मंत्री अनुराधा चौधरी ने इस प्रोजेक्ट की घोषणा करते हुए इसका शिलान्यास मेरठ में किया. सपा सरकार में सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने भी इस प्रोजेक्ट को जल्द शुरू कराने की बात कही लेकिन काम शुरू नहीं हो सका.
निर्माण के यह कार्य किए गए
चौधरी चरण सिंह बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र में एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, लैब, मीटिंग हॉल, ट्रेनिंग सेंटर और स्टाफ के लिए क्वार्टर और हॉस्टल का निर्माण किया गया है. इस निर्माण कार्य पर करीब 8 करोड़ 86 लाख रुपये खर्च किए गए. इस प्रोजेक्ट के पूरा न होने की वजह से उत्तर प्रदेश में बाढ़ का पूर्वानुमान उस पर अंकुश या पूर्व में चेतावनी जारी नहीं हो पाती है. जानकार बताते हैं कि अभी भी इसके लिए उत्तराखंड पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है. यदि यह प्रोजेक्ट यहां शुरू हो जाता तो प्रदेश में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता था.
इस विषय में अधिकारियों का कहना
वर्तमान में इस प्रोजेक्ट की फाइल सिंचाई विभाग के निर्माण खंड के पास है. सिंचाई विभाग अनुसंधान एवं नियोजन खंड के अधिशासी अभियंता विश्वम्भर का कहना है कि निर्माण का कार्य लगभग पूरा हो गया था, लेकिन यहां के स्टाफ के पदों को लेकर स्थिति स्पष्ट न होने की वजह से यह प्रोजेक्ट रुका हुआ है. शासन को इस संबंध में अपनी रिपोर्ट प्रेषित कर दी गई है. वहां से स्वीकृति के बाद काम फिर से शुरू कराया जाएगा.
Intro:मेरठ: बाढ़ आपदा प्रबंधन अनुसंधान केंद्र को बनाकर भूल गई सरकार, खंडहर में तब्दील हुई बिल्डिंग।
मेरठ। उत्तर प्रदेश में बाढ़ से होने वाली तबाही पर नियंत्रण के लिए जिस बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण कार्य उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू कराया उस निर्माण कार्य को शुरू कराने के बाद सरकार भूल गई। करोड़ों रुपए खर्च कर जो निर्माण कार्य कराए वह वर्तमान में खंडहर में तब्दील हो गए हैं। यह हाल तब है जब हर साल बरसात के दिनों में बाढ़ से यूपी के कई जिलों में भारी तबाही का सामना करना पड़ता है।
Body:2006 में प्रोजेक्ट का हुआ था टेंडर
उत्तर प्रदेश के एकमात्र बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना मेरठ जिले की भोला झाल पर की गई है। वर्ष 2006 में इस प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के बाद वर्ष 2007 में इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू किया गया। इसका शिलान्यास उस वक्त सिंचाई मंत्री रही अनुराधा चौधरी ने किया था। इस प्रोजेक्ट का नाम भी चौधरी चरण सिंह बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र रखा गया। 2007 में निर्माण कार्य शुरू होने के बाद करोड़ों रुपए खर्च कर यहां आवासीय मकान, लैब और अन्य भवनों के निर्माण किए गए। अब यह निर्माण कार्य खंडहर में तब्दील हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने शुरू किया था निर्माण
सिंचाई विभाग के अधीन बनने वाले इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य उस समय उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने शुरू किया था। साढ़े 8 करोड रुपए निर्माण कार्य पर खर्च किए गए थे। बताया गया कि निर्माण कार्य के लिए करीब साढे ₹11 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था। बाद में बजट के अभाव में निर्माण कार्य बीच में ही छोड़ दिया गया। यही कारण रहा कि जो निर्माण कार्य हुआ वह करीब 12 साल बाद खंडहर में तब्दील हो रहा है। परिसर में कटीली झाड़ियां उग आई हैं। कुछ भवनों के खिड़की दरवाजे गायब हो गए हैं, लोग उन्हें उखाड़ कर ले गए हैं।
बंटवारे से पहले हरिद्वार में था यह केंद्र
उत्तर प्रदेश के बंटवारे के बाद उत्तराखंड बना और उस वक्त प्रदेश का एकमात्र बाद बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान केंद्र एवं ट्रेनिंग सेंटर हरिद्वार जिले के बहादराबाद में था। वहां यह केंद्र आज भी चल रहा है जो वर्तमान में उत्तराखंड के लिए रिसर्च कर रहा है। प्रदेश विभाजन के बाद यह केंद्र उत्तराखंड में चले जाने के बाद उत्तर प्रदेश में बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं ट्रेनिंग सेंटर स्थापना की कवायद शुरू की गई। विभागीय अधिकारियों की मानें तो पहले यह प्रोजेक्ट फैजाबाद के लिए स्वीकृत किया गया था लेकिन बाद में उसे मेरठ में स्थापित करने की सहमति बनी जिसके बाद उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सिंचाई मंत्री अनुराधा चौधरी ने इस प्रोजेक्ट की घोषणा करते हुए इसका शिलान्यास मेरठ में किया। सपा सरकार में सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने भी इस प्रोजेक्ट को जल्द शुरू कराने की बात कही लेकिन काम शुरू नहीं हो सका।
निर्माण के यह कार्य किए गए
चौधरी चरण सिंह बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र में एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, लैब, मीटिंग हॉल, ट्रेनिंग सेंटर और स्टाफ के लिए क्वार्टर और हॉस्टल का निर्माण किया गया है। इस निर्माण कार्य पर करीब 8 करोड 86 लाख रुपए खर्च किए गए। इस प्रोजेक्ट के पूरा न होने की वजह से उत्तर प्रदेश में बाढ़ का पूर्वानुमान उस पर अंकुश या पूर्व में चेतावनी जारी नहीं हो पाती। जानकार बताते हैं कि अभी भी इसके लिए उत्तराखंड पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। यदि यह प्रोजेक्ट यहां शुरू हो जाता तो प्रदेश में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता था।
Conclusion:अधिकारियों का कहना
वर्तमान में इस प्रोजेक्ट की फाइल सिंचाई विभाग के निर्माण खंड के पास है। सिंचाई विभाग अनुसंधान एवं नियोजन खंड के अधिशासी अभियंता विश्वम्भर का कहना है कि निर्माण का कार्य लगभग पूरा हो गया था लेकिन यहां के स्टाफ के पदों को लेकर स्थिति स्पष्ट न होने की वजह से यह प्रोजेक्ट रुका हुआ है। शासन को इस संबंध में अपनी रिपोर्ट प्रेषित कर दी गई है। वहां से स्वीकृति के बाद काम फिर से शुरू कराया जाएगा।
बाइट- विश्वम्भर, अधिशासी अभियंता
अजय चौहान
9897799794
मेरठ। उत्तर प्रदेश में बाढ़ से होने वाली तबाही पर नियंत्रण के लिए जिस बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण कार्य उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू कराया उस निर्माण कार्य को शुरू कराने के बाद सरकार भूल गई। करोड़ों रुपए खर्च कर जो निर्माण कार्य कराए वह वर्तमान में खंडहर में तब्दील हो गए हैं। यह हाल तब है जब हर साल बरसात के दिनों में बाढ़ से यूपी के कई जिलों में भारी तबाही का सामना करना पड़ता है।
Body:2006 में प्रोजेक्ट का हुआ था टेंडर
उत्तर प्रदेश के एकमात्र बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना मेरठ जिले की भोला झाल पर की गई है। वर्ष 2006 में इस प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के बाद वर्ष 2007 में इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू किया गया। इसका शिलान्यास उस वक्त सिंचाई मंत्री रही अनुराधा चौधरी ने किया था। इस प्रोजेक्ट का नाम भी चौधरी चरण सिंह बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र रखा गया। 2007 में निर्माण कार्य शुरू होने के बाद करोड़ों रुपए खर्च कर यहां आवासीय मकान, लैब और अन्य भवनों के निर्माण किए गए। अब यह निर्माण कार्य खंडहर में तब्दील हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने शुरू किया था निर्माण
सिंचाई विभाग के अधीन बनने वाले इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य उस समय उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने शुरू किया था। साढ़े 8 करोड रुपए निर्माण कार्य पर खर्च किए गए थे। बताया गया कि निर्माण कार्य के लिए करीब साढे ₹11 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था। बाद में बजट के अभाव में निर्माण कार्य बीच में ही छोड़ दिया गया। यही कारण रहा कि जो निर्माण कार्य हुआ वह करीब 12 साल बाद खंडहर में तब्दील हो रहा है। परिसर में कटीली झाड़ियां उग आई हैं। कुछ भवनों के खिड़की दरवाजे गायब हो गए हैं, लोग उन्हें उखाड़ कर ले गए हैं।
बंटवारे से पहले हरिद्वार में था यह केंद्र
उत्तर प्रदेश के बंटवारे के बाद उत्तराखंड बना और उस वक्त प्रदेश का एकमात्र बाद बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान केंद्र एवं ट्रेनिंग सेंटर हरिद्वार जिले के बहादराबाद में था। वहां यह केंद्र आज भी चल रहा है जो वर्तमान में उत्तराखंड के लिए रिसर्च कर रहा है। प्रदेश विभाजन के बाद यह केंद्र उत्तराखंड में चले जाने के बाद उत्तर प्रदेश में बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं ट्रेनिंग सेंटर स्थापना की कवायद शुरू की गई। विभागीय अधिकारियों की मानें तो पहले यह प्रोजेक्ट फैजाबाद के लिए स्वीकृत किया गया था लेकिन बाद में उसे मेरठ में स्थापित करने की सहमति बनी जिसके बाद उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सिंचाई मंत्री अनुराधा चौधरी ने इस प्रोजेक्ट की घोषणा करते हुए इसका शिलान्यास मेरठ में किया। सपा सरकार में सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने भी इस प्रोजेक्ट को जल्द शुरू कराने की बात कही लेकिन काम शुरू नहीं हो सका।
निर्माण के यह कार्य किए गए
चौधरी चरण सिंह बाढ़ प्रबंधन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र में एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, लैब, मीटिंग हॉल, ट्रेनिंग सेंटर और स्टाफ के लिए क्वार्टर और हॉस्टल का निर्माण किया गया है। इस निर्माण कार्य पर करीब 8 करोड 86 लाख रुपए खर्च किए गए। इस प्रोजेक्ट के पूरा न होने की वजह से उत्तर प्रदेश में बाढ़ का पूर्वानुमान उस पर अंकुश या पूर्व में चेतावनी जारी नहीं हो पाती। जानकार बताते हैं कि अभी भी इसके लिए उत्तराखंड पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। यदि यह प्रोजेक्ट यहां शुरू हो जाता तो प्रदेश में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता था।
Conclusion:अधिकारियों का कहना
वर्तमान में इस प्रोजेक्ट की फाइल सिंचाई विभाग के निर्माण खंड के पास है। सिंचाई विभाग अनुसंधान एवं नियोजन खंड के अधिशासी अभियंता विश्वम्भर का कहना है कि निर्माण का कार्य लगभग पूरा हो गया था लेकिन यहां के स्टाफ के पदों को लेकर स्थिति स्पष्ट न होने की वजह से यह प्रोजेक्ट रुका हुआ है। शासन को इस संबंध में अपनी रिपोर्ट प्रेषित कर दी गई है। वहां से स्वीकृति के बाद काम फिर से शुरू कराया जाएगा।
बाइट- विश्वम्भर, अधिशासी अभियंता
अजय चौहान
9897799794
Last Updated : Nov 9, 2019, 11:28 PM IST