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खाने के साथ खेत का 'जायका' भी बढ़ाएगा बथुआ, खास खाद तैयार - मेरठ बथुआ खाद

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की छात्रा सादिया समर ने एक शोध कर बथुआ की खाद बनाई है. इसका इस्तेमाल न सिर्फ पैदावार बढ़ाएगा, बल्कि जमीन की उर्वरक क्षमता में भी वृद्धि होगी.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 22, 2023, 7:11 PM IST

Updated : Dec 22, 2023, 8:16 PM IST

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की छात्रा सादिया समर ने एक शोध कर बथुआ की खाद ईजाद की है.

मेरठ: आपने बथुआ के साग की खूबी के बारे में तो खूब सुना ही होगा. यह भी कि इसमें अनगिनत पोषक तत्व पाए जाते हैं, लेकिन अब यही बथुआ और भी उपयोगी होने जा रहा है, क्योंकि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में इस पर शोध के बाद फर्टिलाइजर विकसित किया गया है. आइए जानते हैं, क्या है शोध और कैसे खेतों की उर्वरक क्षमता को बढ़ाएगा बथुआ.

सुरक्षित होगी फसल, पैदावार भी बंपर

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग में खास शोध किया गया है. जिससे अब बथूआ के जरिए न सिर्फ फसल को सुरक्षित किया जा सकेगा बल्कि ग्रोथ भी मिलेगी. इस बारे में विश्वविद्यालय ने पेटेंट भी करा लिया है. यह शोध किया है वनस्पति विज्ञान विभाग की शोध छात्रा सादिया समर ने. दावा है कि फसलों पर लगने वालीं विभिन्न बीमारियों को इसके प्रयोग से दूर किया जा सकता है. साथ ही पैदावार भी बंपर होगी. बता दें कि बथुआ सर्दी सीजन में बेहद ही पसंद किया जाता है. यह जहां पोषक तत्वों से भरपूर है. इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी 2, बी 3, बी 5, विटामिन सी, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैंगनीज, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सोडियम पाया जाता है.

शोध ने बथुआ को और उपयोगी बनाया

इस बारे में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर विजय मलिक कहते हैं, यूं तो बथुआ की खेती नहीं की जाती है, लेकिन सर्दी के सीजन में फसल के बीच में प्रायः यह उग जाता है. किसान इसका इस्तेमाल साग बनाने के लिए करते हैं. जबकि फसल को सुरक्षित करने के लिए इसे उखाड़कर फेंक भी दिया जाता है. वह बताते हैं कि विभाग की शोध छात्रा ने इस बथुए को अब औऱ भी उपयोगी बना दिया है.

सादिया ने ढाई साल तक किया शोध

इस बारे में विश्वविद्यालय की वनस्पति विज्ञान विभाग की रिसर्च स्कॉलर सादिया समर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. बताया कि, बथुआ पर लगभग ढाई साल से शोध कर रही हैं. जिसक़े बाद उन्हें बथुआ से नैनो उर्वरक बनाने में बड़ी कामयाबी मिली है. बताया कि अपने गुरु वनस्पति विज्ञान विभाग के सीनियर प्रोफेसर अशोक कुमार के मार्गदर्शन में वह शोध कर रही हैं और उन्हीं के मार्गदर्शन में यह खोज की है. बताया कि बथुआ को अलग-अलग फॉर्म में लाकर उसमें से निकले अर्क में जिंक सल्फेट को घोलकर मिलाया गया. उसके बाद किए गए शोध के बाद उसे एक पाउडर के रूप में नैनो पार्टिकल में बदलकर फिर और कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा. इसके बाद खास फर्टिलाइजर तैयार करने में सफलता मिली है. सादिया बताती हैं कि इस खास फार्मूलेशन का पेटेंट भी हासिल कर लिया गया है.

किसी कीटनाशक की नहीं पड़ेगी जरूरत

प्रोफेसर अशोक कुमार कहते हैं कि बथुआ उगाने में कोई लागत लगाने नहीं होती है. ऐसे में इस खास उर्वरक को तैयार करने में भी खर्च कम आएगा. वह कहते हैं कि निश्चित ही भविष्य में किसानों को इससे काफी मदद मिलेगी. बताते हैं कि शोध के बाद यह भी स्पष्ट हो चुका है कि न सिर्फ इससे पैदावार बढ़ेगी, बल्कि बिना किसी किटनाशक का प्रयोग किए सिर्फ नैनो यूरिया की तरह इसे उपयोग में लाकर फसल को सुरक्षित किया जा सकेगा.

प्रयोग से पैदावार में होगी वृद्धि

शोध में यह भी साबित हुआ है कि बथुआ की खाद के इस्तेमाल से फसल भी सामान्य की तुलना में अधिक होगी. इसके अलावा जमीन की उर्वरक क्षमता में भी वृद्धि होगी. जबकि अगर कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है तो उर्वरक क्षमता उससे प्रभावित होती है. क्योंकि अभी तक जो केमिकल आधारित फर्टिलाइजर का उपयोग होता आया है, उसने उर्वरक क्षमता को नुकसान को नुकसान ही पहुंचाया है.

सादिया ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. जबकि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में पीएचडी करते हुए बथुआ के तमाम पहलुओं पर शोध किया है. इस रिसर्च को "नोवेल मेथड फॉर ग्रीन सिंथेसिस ऑफ नैनोपार्टिकल्स एज नैनोफर्टिलाइजर यूजिंग चेनोपोडियम एल्बम एंड प्रोडक्ट देयर ऑफ नेम" से पेटेंट भी हासिल हो चुका है. इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय साइंस जनरल में इसे प्रकाशित किया गया है.

यह भी पढ़ें : अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान के नाम से जाना जाएगा अयोध्या शोध संस्थान : जयवीर सिंह

यह भी पढ़ें : अमीर और गरीब में टीबी का लक्षण बना शोध का विषय, देहरादून और कुशीनगर पर आईसीएमआर कर रहा अध्ययन

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की छात्रा सादिया समर ने एक शोध कर बथुआ की खाद ईजाद की है.

मेरठ: आपने बथुआ के साग की खूबी के बारे में तो खूब सुना ही होगा. यह भी कि इसमें अनगिनत पोषक तत्व पाए जाते हैं, लेकिन अब यही बथुआ और भी उपयोगी होने जा रहा है, क्योंकि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में इस पर शोध के बाद फर्टिलाइजर विकसित किया गया है. आइए जानते हैं, क्या है शोध और कैसे खेतों की उर्वरक क्षमता को बढ़ाएगा बथुआ.

सुरक्षित होगी फसल, पैदावार भी बंपर

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग में खास शोध किया गया है. जिससे अब बथूआ के जरिए न सिर्फ फसल को सुरक्षित किया जा सकेगा बल्कि ग्रोथ भी मिलेगी. इस बारे में विश्वविद्यालय ने पेटेंट भी करा लिया है. यह शोध किया है वनस्पति विज्ञान विभाग की शोध छात्रा सादिया समर ने. दावा है कि फसलों पर लगने वालीं विभिन्न बीमारियों को इसके प्रयोग से दूर किया जा सकता है. साथ ही पैदावार भी बंपर होगी. बता दें कि बथुआ सर्दी सीजन में बेहद ही पसंद किया जाता है. यह जहां पोषक तत्वों से भरपूर है. इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी 2, बी 3, बी 5, विटामिन सी, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैंगनीज, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सोडियम पाया जाता है.

शोध ने बथुआ को और उपयोगी बनाया

इस बारे में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर विजय मलिक कहते हैं, यूं तो बथुआ की खेती नहीं की जाती है, लेकिन सर्दी के सीजन में फसल के बीच में प्रायः यह उग जाता है. किसान इसका इस्तेमाल साग बनाने के लिए करते हैं. जबकि फसल को सुरक्षित करने के लिए इसे उखाड़कर फेंक भी दिया जाता है. वह बताते हैं कि विभाग की शोध छात्रा ने इस बथुए को अब औऱ भी उपयोगी बना दिया है.

सादिया ने ढाई साल तक किया शोध

इस बारे में विश्वविद्यालय की वनस्पति विज्ञान विभाग की रिसर्च स्कॉलर सादिया समर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. बताया कि, बथुआ पर लगभग ढाई साल से शोध कर रही हैं. जिसक़े बाद उन्हें बथुआ से नैनो उर्वरक बनाने में बड़ी कामयाबी मिली है. बताया कि अपने गुरु वनस्पति विज्ञान विभाग के सीनियर प्रोफेसर अशोक कुमार के मार्गदर्शन में वह शोध कर रही हैं और उन्हीं के मार्गदर्शन में यह खोज की है. बताया कि बथुआ को अलग-अलग फॉर्म में लाकर उसमें से निकले अर्क में जिंक सल्फेट को घोलकर मिलाया गया. उसके बाद किए गए शोध के बाद उसे एक पाउडर के रूप में नैनो पार्टिकल में बदलकर फिर और कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा. इसके बाद खास फर्टिलाइजर तैयार करने में सफलता मिली है. सादिया बताती हैं कि इस खास फार्मूलेशन का पेटेंट भी हासिल कर लिया गया है.

किसी कीटनाशक की नहीं पड़ेगी जरूरत

प्रोफेसर अशोक कुमार कहते हैं कि बथुआ उगाने में कोई लागत लगाने नहीं होती है. ऐसे में इस खास उर्वरक को तैयार करने में भी खर्च कम आएगा. वह कहते हैं कि निश्चित ही भविष्य में किसानों को इससे काफी मदद मिलेगी. बताते हैं कि शोध के बाद यह भी स्पष्ट हो चुका है कि न सिर्फ इससे पैदावार बढ़ेगी, बल्कि बिना किसी किटनाशक का प्रयोग किए सिर्फ नैनो यूरिया की तरह इसे उपयोग में लाकर फसल को सुरक्षित किया जा सकेगा.

प्रयोग से पैदावार में होगी वृद्धि

शोध में यह भी साबित हुआ है कि बथुआ की खाद के इस्तेमाल से फसल भी सामान्य की तुलना में अधिक होगी. इसके अलावा जमीन की उर्वरक क्षमता में भी वृद्धि होगी. जबकि अगर कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है तो उर्वरक क्षमता उससे प्रभावित होती है. क्योंकि अभी तक जो केमिकल आधारित फर्टिलाइजर का उपयोग होता आया है, उसने उर्वरक क्षमता को नुकसान को नुकसान ही पहुंचाया है.

सादिया ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. जबकि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में पीएचडी करते हुए बथुआ के तमाम पहलुओं पर शोध किया है. इस रिसर्च को "नोवेल मेथड फॉर ग्रीन सिंथेसिस ऑफ नैनोपार्टिकल्स एज नैनोफर्टिलाइजर यूजिंग चेनोपोडियम एल्बम एंड प्रोडक्ट देयर ऑफ नेम" से पेटेंट भी हासिल हो चुका है. इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय साइंस जनरल में इसे प्रकाशित किया गया है.

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Last Updated : Dec 22, 2023, 8:16 PM IST
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