मेरठः बागपत के सिनौली के बाद अब मेरठ मुख्यालाय से चालीस किलोमीटर दूर महाभारतकालीन हस्तिनापुर में बहुत जल्द नए राज पर से पर्दा उठाने वाला है. यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) की टीम युद्धस्तर पर कार्य कर रही है. ASI के ज्वाइंट डायरेक्टर और रीजनल डायरेक्टर भी रविवार को दिल्ली से यहां पहुंचे और मिट्टी से लेकर ईंट तक की पड़ताल की. तकरीबन 70 वर्ष बाद एक बार फिर भारतीय पुरातत्व विभाग की टीम हस्तिनापुर में खोज कर रही है.
एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉक्टर दिबिषद ब्रजसुंदर गड़नायक का कहना है कि भारत की पांच आईकोनिक साइट में से एक हस्तिनापुर भी है. इसलिए डिपार्टमेंट का प्लान इसे आईकोनिक साइट की तर्ज पर डेवलेप करने का है. उन्होंने बताया कि लैंडस्केपिंग करना और जो एक्सपोज़ स्थान है उसे संरक्षित करना है. हालांकि खुदाई को लेकर वो कहते हैं कि इस बारे में विचार किया जाएगा.
डॉक्टर गड़नायक का कहना है कि पाण्डव टीले पर मौजूद अमृतकूप को भी संरक्षित किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि 1952 में इस टीले पर खुदाई प्रोफेसर बीबी लाल के निर्देशन में हुआ था. उस दौरान कई राज पर से पर्दा उठा था. ये पूछे जाने पर कि क्या हस्तिनापुर सिनौली से बड़ा रहस्य उजागर करेगा वो कहते हैं कि ये तो वक्त बताएगा.
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1952 के बाद से आज तक ये टीला सिर्फ एएसआई संरक्षित ही रहा, लेकिन अब तकरीबन सत्तर साल बाद एक बार फिर यहां एएसआई की टीम डेरा डाले हुए है. हस्तिनापुर के रहने वाले लोग खुश हैं कि एक बार फिर इस मंगल कार्य के शुरू होने से नए रहस्यों पर से पर्दा उठेगा ही साथ ही इस क्षेत्र का विकास भी होगा. वहीं पांडव टीले पर मौजूद एक मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां का जर्रा-जर्रा इतिहास का साक्षी है. एएसआई की टीम के शोध से नया राज अवश्य खुलेगा. उन्होंने बताया कि पाण्डव टीले की दो साइट्स पर एएसआई की टीम ने स्थान चिन्हित किया है. बताया जाता है कि ये वही स्थान है, जहां पांडवों का महल हुआ करता था.