मेरठ: जनपद के छावनी क्षेत्र के कसेरुखेड़ा (Cantonment area Kaserukheda) में हर साल दशहरे पर भव्य आयोजन होता है, सबसे खास बात ये है कि यहां हर साल रावण का करीब 80 फीट का पुतला (80 feet Ravana in Kaserukheda) तैयार होता है, जिसे रामलीला कमेटी के सदस्यों द्वारा ही तैयार किया जाता है और तो और रामलीला का जो मंचन होता है उसमें भी सभी लोग रामलीला कमेटी और उनके परिवारों के बच्चे, बूढ़े और नौजवान ही किरदार निभाते हैं. ये परंपरा आज की नहीं, बल्कि सौ से भी अधिक वर्षों से चली आ रही है.
दरअसल, मेरठ शहर में यूं तो 8 से दस स्थानों पर रामलीला का मंचन और रावण का दहन होता है. रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतले तैयार करने को आमतौर पर कलाकारों को बुलाया जाता है. लेकिन, कसेरूखेड़ा में आयोजित होने वाले दशहरा मेला और यहां के रावण के पुतले समेत होने वाली रामलीला सबसे अलग है, क्योंकि यहां कोई भी कलाकार या कारीगर बाहर से नहीं बुलाया जाता, बल्कि रामलीला समिति से जुड़े अलग-अलग धर्मों के लोग निशुल्क पूरे आयोजन को खुद ही करते हैं. इसे देखने 35 से 40 हजार के करीब लोग दशहरे पर्व पर आते हैं.
ईटीवी भारत से बात-चीत में दशहरा रामलीला कमेटी (Dussehra Ramlila Committee) के अध्यक्ष विनोद सोनकर ने बताया कि वह चौथी पीढ़ी हैं. सौ वर्ष से भी अधिक समय से उनके पिताजी, दादा-परदादा और पूर्वज रामलीला के आयोजन के साथ ही रावण के पुतले तैयार करने से लेकर सभी व्यवस्थाएं खुद ही करते आ रहे हैं. वे बताते हैं कि मेरठ जिले में अकेले यही ऐसा स्थान है, जहां रामलीला मंचन से लेकर दशहरे पर जिन पुतलों का दहन होता है, वे सभी पुतले सभी धर्मों के लोग बनाते हैं. वो भी बिना किसी पैसे की इच्छा के. यहां की एक खास बात ये भी है कि जो पुतले यहां तैयार होते हैं वो सबसे अलग हैं, सभी जगह जो पुतले बनाए जाते हैं वो कागज से तैयार होते हैं. जबकि, कसेरुखेड़ा में कपड़े से बनाए जाते हैं. इतना ही नहीं रावण के पुतले की खास बात ये भी है कि उसका शीश घूम घूमकर लोगों की तरफ घूरता रहता है.
दशहरा कमेटी से जुड़े कान्ता सोनकर बताते हैं कि दशहरा कमेटी से जुड़े सभी लोग अलग-अलग विधाओं में माहिर हैं. इतना ही नहीं इस कमेटी में सभी धर्मों के लोग जुड़े हैं और सभी पूरी लगन और निष्ठा से अपनी-अपनी भूमिका अदा करते हैं. सभी लोग बताते हैं कि परिवारों के छोटे बच्चे भी पूरा उत्साह दिखाते हुए साथ रहते हैं, ताकि वो अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परम्परा को आगे बढ़ा सकें.
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