मऊ : यूपी विधानसभा चुनाव की चर्चा अब तेज हो गई है. हर नुक्कड़-चौराहे पर लोगों में इसको लेकर चर्चा सुनी जा सकती है. मऊ जिला भी पुर्वांचल का एक महत्वपूर्ण जिला है. इसकी चार विधानसभा सीट हैं. आज हम आपको जिले की मधुबन विधानसभा सीट के बारे बताने जा रहे हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर किसका पलड़ा भारी रहेगा. साथ ही कौन-कौन से मुद्दे सामने होंगे. इसके अलावा इस सीट पर किस जाति का कितना प्रभाव है, और कौन सी पार्टी इस सीट पर कितनी बार कब्जा की है.
आपको बता दें, मधुबन विधानसभा-353 से विधायक दारा सिंह चौहान उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. लगभग 438 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला जिले का मधुबन विधानसभा शहीदों की धरती के नाम से जानी जाती है. घाघरा नदी का तटवर्ती इलाका होने तथा इस विधानसभा क्षेत्र में धार्मिक स्थल दोहरीघाट मुक्तिधाम स्थित होने के कारण इसका पौराणिक महत्व भी अधिक है. ऐसा माना जाता है कि कभी श्रीराम और परशुराम जी का मिलन यहां हुआ था, इसीलिए इसे दो हरी घाट कहते हैं. यह देवारा क्षेत्र अक्सर बरसात में बाढ़ का दंश झेलने और गर्मी में प्राकृतिक अग्नि की विभीषिका सहने को मजबूर है. मधुबन विधानसभा वर्ष 2012 से पहले नाथूपुर विधानसभा-191 के नाम से जाना जाता था. किंतु परसीमन बदलने के बाद इसका नाम मधुबन विधानसभा-353 हो गया.
मधुबन विधानसभा सीट का चुनावी गणित
शहीदों की धरती के नाम से जाना जाने वाला मधुबन विधानसभा सीट पर लगभग 70000 दलित वोटर और 60000 यादव वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. जबकि ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और बनिया वोटरों की संख्या लगभग 40,000 की है. मुस्लिम वोटर लगभग 22000, चौहान वोटर लगभग 24000 और राजभर वोटर लगभग 25000 भी प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 393299 है, जबकि महिला पुरुष अनुपात 886 का है.
2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के दारा सिंह चौहान ने कांग्रेस के अमरेश चंद्र पांडे को 29415 मतों से पराजित कर, इस सीट को बीजेपी के खाते में डाल दिया था. जबकि पिछले विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो 2007 और 2012 में इस सीट पर बसपा का कब्जा रहा था. 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा के उमेश चंद पांडे यहां से विधायक चुने गए थे. 2017 में यहां से बीजेपी के विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान, जो उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा अपनी सीट बचा पाएगी या इस बार इस सीट पर किसी और का कब्जा हो जाएगा.
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दरअसल, इस विधानसभा के अधिकतर इलाके बाढ़ ग्रस्त और देवारा होने के कारण अक्सर प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित रहते हैं. घाघरा नदी का तटवर्ती इलाका होने के कारण हमेशा कटान की समस्या बनी रहती है, जो इस क्षेत्र का एक बड़ा मुद्दा है. बिजली की रूटीन कटौती के अलावा बदहाल सड़कें और कोई भी बड़ा शिक्षण संस्थान और अस्पताल का ना होना यहां के लोगों के लिए पीड़ादायक है. कुल मिलाकर पिछले कुछ विधानसभा चुनाव से मुद्दे जस के तस बने हुए हैं और धरातल पर कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता है. इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कमोबेश यही मुद्दे जनप्रतिनिधियों को सामना करना पड़ेगा. वहीं ये मुद्दे सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्री के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होंगे.