मऊ: उत्तर प्रदेश के मऊ जंक्शन पर खड़ी ट्रेनों को कोविड कोच के रूप में उपयोग में लाया गया. इसका प्रयोग भारत में सबसे पहले मऊ जनपद में हुआ. इसकी जानकारी रेलमंत्री ने स्वयं के ट्विटर के माध्यम से दी थी. गत जून माह में जब कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ा. उस दौरान तेज बारिश और हवा के चलते जिले के L-1 हॉस्पिटल में बेड की कमी हो गई. ऐसे में रेलवे द्वारा उपलब्ध कराए गए 12 कोच जिसमें 160 बेड को जिले के स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रयोग में लाया गया.
आइसोलेशन वार्ड के रूप में इस्तेमाल हुआ कोविड कोच
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. सतीश चंद्र सिंह ने बताया कि जून के लास्ट और जुलाई के महीने में जनपद में कोविड-19 संक्रमण तेजी के साथ फैला. पॉजिटिव मरीज के इलाज के साथ-साथ उसके सम्पर्क में आए व्यक्ति को भी आइसोलेशन में रखा गया. ऐसे में 250 बेड के L-1 हॉस्पिटल में बेड की कमी आ गई. उसी दौरान तेज बारिश के चलते परेशानी बढ़ी तो रेलवे द्वारा उपलब्ध कराया गया कोविड कोच वरदान साबित हुए.
कोविड कोच में बर्थ के अंदर बीच की सीट निकाल दी गई थी, जिससे मरीज़ की दूरी बनी रही. सामान्य अस्पताल की तरह यहां इलाज की सुविधाएं रहीं. रेलवे और जिला प्रशासन द्वारा ऑक्सीजन की व्यवस्था पर्याप्त की गई थी, ताकि कोई परेशानी न हो. कोविड कोच में 182 मरीज को आइसोलेशन में रखा गया था. इनके लिए 24 घंटे डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की तैनाती तीन शिप्ट में की गई थी.
रेलवे द्वारा सुरक्षा और बाहर की सफाई का था प्रबंधन
कोविड-19 कोच के संचालन के बारे में स्टेशन अधीक्षक जितेंद्र चौधरी ने बताया कि रेलवे द्वारा कोविड कोच जिला प्रशासन के उपयोग के लिए पूरी तरह तैयार रखा गया है. जब भी आवश्यकता लगे तो जिला प्रशासन इसका इस्तेमाल कर सकता है. उन्होंने बताया कि 12 कोच में 160 बेड और एक कोच में मेडिकल स्टाफ के रहने की सुविधा है. रेलवे द्वारा कोच के बाहर पानी, सफाई और सुरक्षा की व्यवस्था का जिम्मा है. कोच के अंदर स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है. जब ट्रेनों में कोरोना संक्रमित रखे गए थे, उस दौरान प्लेटफार्म नम्बर 2 को पूरी तरह बैरिकेड कर दिया गया था. पर्दे लगाकर कोच को ढक दिया गया था कि किसी भी प्रकार से संक्रमण का फैलाव न हो, क्योंकि उस दौरान रेल यात्रियों का आवागमन भी जारी रहा.
कोविड कोच की सफाई से असंतुष्ट रहा स्वास्थ्य विभाग
कोविड कोच के उपयोग के दौरान क्या समस्याएं आईं, किस तरह की कमी दिखी, इसपर कोई भी कर्मचारी कैमरे पर बोलने के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन सामान्य बातचीत में बताया कि कोच के अंदर सफाई की सबसे बड़ी समस्या रही. शौचालय जाम हो गया, उसकी सफाई करने के लिए कोई कर्मचारी तैयार नहीं हुआ. सभी कोरोना से डरे हुए थे. रेलवे के कोच में सीमित पानी की व्यवस्था थी जो अक्सर खत्म हो जाता था. जिसके चलते परेशानी होती थी, वहीं जैविक शौचालय का टैंक भी सीमित था जो पूरी तरह दो सप्ताह में ही भर गया. रेल विभाग इसके सफाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई. साथ ही कोरोना के डर से कोई कर्मचारी भी सफाई के लिए तैयार नहीं होता था. वहीं कोरोना वायरस के संक्रमण में सफाई की विशेष जरूरत है. ऐसे में इसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया.