मऊः कार्यकर्ता सम्मेलन और सावधान यात्रा की आकस्मिक बैठक करने के लिए मंगलवार को सुभासपा राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर(Omprakash Rajbhar) घोसी तहसली क्षेत्र के लाखिपुर गांव पहुंचे. बैठक के दौरान राजभर ने कोर्ट के ओबीसी आरक्षण(OBC reservation) के फैसले पर कहा कि अब यह शासन राज्य सरकार और केंद्र सरकार का मामला है. इसका नोटिफिकेशन कर केंद्र को भेजा जाए. वहां पर लोकसभा राज्यसभा से पारित होते हुए पुनः सरकार के पास कानून के रूप में आए तब इसका लाभ लोगों को मिले.
राजभर ने कहा कि जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार और प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी(Bahujan Samajwadi Party) की सरकार रही, तो क्यों नहीं इन 18 जातियों के लिए नोटिफिकेशन करा कर लोकसभा और राज्यसभा होते हुए वापस स्टेट गवर्नमेंट को प्रमाण पत्र जारी करने के लिए मोहर लगाकर दे देते हैं. इन नेताओं ने कभी नहीं चाहा कि इनका भला हो. उन्होंने कहा कि 'नेता दो मुहा सांप होते हैं, पहले कुछ बोलते हैं फिर बाद में पलट जाते हैं. बोलते हैं कि मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर दिखाया गया.'
सरकारी प्रोटोकॉल पर ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि, जैसे-जैसे कारवां बढ़ता है, वैसे-वैसे नेता की सुरक्षा भी बढ़ाई जाती है. इसके पीछे मीडिया का बहुत बड़ा सहयोग है. ओमप्रकाश राजभर ने जातिवार जनगणना(caste wise census) पर अघोषित रूप से अखिलेश पर निशाना साधते हुए कहा कि 'नेता से सवाल पूछो कि जब सत्ता में थे, तो क्यों नहीं जाति गणना पर जोर दिया. सत्ता में रहते हो तो घरेलू बिजली बिल माफ करने की बात नहीं करते हो, सत्ता में रहते हो तो पुरानी पेंशन बहाली की बात नहीं करते हो.'
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सुभासपा ने सपा की गलत नीतियों को ठहराया जिम्मेदार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ओबीसी(OBC) की 18 जातियों को एससी(SC) कैटेगरी में शामिल करने के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है. जानकारी के मुताबिक पहले की समाजवादी पार्टी और योगी सरकार के शासन काल के दौरान इन 18 जातियों को ओबीसी से हटाकर एससी में शामिल करने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था. दोनों ही दलों के सहयोगी रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी(Suheldev Bharatiya Samaj Party) ने नोटिफिकेशन के रद्द होने के पीछे समाजवादी पार्टी की गलत नीति को कारण बताया है.
इन जातियों के नोटिफिकेशन को किया रद्द
मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा गोडिया, मांझी और मछुआ ओबीसी जाति को एससी(SC) कैटेगरी में शामिल करने के नोटिफिकेशन को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है. ऐसे में सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने समाजवादी पार्टी पर हमला बोलते हुए कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिस तरीके से 18 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के आदेश को रद्द किया है, यह तो होना ही था, क्योंकि उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से जो पावर राज्य सरकार को नहीं है बल्कि केंद्र सरकार को है और उस पावर का इस्तेमाल राज्य सरकार करना चाहे तो वह असंवैधानिक हो जाता है.
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विपक्षी दलों के एक होने पर मिल सकता है वंचित जातियों को लाभ
उन्होंने कहा कि उसी का नतीजा रहा है कि हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द कर दिया है, जो नोटिफिकेशन समय-समय पर जारी करते रहें है. यह सच है किसी भी जाति को एससी(SC) श्रेणी में खड़ा करना है, तो पहले तो उस जातियों की कोटे को उस जातियों में शामिल करना चाहिए. वह तभी हो सकता है जब केंद्र सरकार इसमें हस्तक्षेप करे. अरुण राजभर ने कहा कि वर्तमान सरकार ने इस तरह का एक फैसला सामाजिक न्याय समिति(social justice committee) की रिपोर्ट की परीक्षण कराने का लिया है. अगर इसको लागू कराने के लिए सभी विपक्षी दल एक हों, तो लगता है कि सामाजिक स्तर पर जो अति पिछड़ी जातियां हैं जो आजादी के बाद से अब तक वंचित रही हैं, उसे लाभ मिल सकेगा.
आजादी के बाद नहीं मिली 79 जातियों को नौकरी में हिस्सेदारी
अरुण राजभर ने बताया कि ओमप्रकाश राजभर ने सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू करने के लिए एक कमेटी बनाई थी. उस कमेटी ने जो रिपोर्ट दिया था उसके अनुसार पिछड़ी जातियों में 79 ऐसी जातियां हैं, जिन्हें आजादी के बाद से अब तक नौकरियों में हिस्सेदारी नहीं मिल सकी है. इन जातियों को लाभ न मिलने की जिम्मेदार समाजवादी पार्टी है. 3 अक्टूबर 2013 को हाईकोर्ट का एक फैसला आया था.
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इस फैसले के मुताबिक, कुछ मजबूत ओबीसी जाति ऐसी हैं, जो पिछड़ी जाति में आरक्षण का लाभ उठा रही हैं और कमजोर जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है. यह तभी मिल पाएगा जब मजबूत जातियों के आरक्षण पर रोक लगेगी, लेकिन उस फैसले को तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने लागू नहीं किया उसका नतीजा है कि से तमाम अति पिछड़ी जातियां हैं उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
निषाद पार्टी ने उठाई थी आवाज
वहीं, योगी सरकार में मंत्री संजय निषाद ने कहा कि निषाद पार्टी तो शुरू से ही इस नोटिफिकेशन के खिलाफ आवाज उठा रही है, क्योंकि यह नोटिफिकेशन पूर्णतः गलत और असंवैधानिक था. उन्होंने कहा कि निषाद, केवट, मल्लाह, बिंद, रजगौड़ समेत 7 जातियां सेंसस मेनू 1961 अपेंडिक्स एफ फोर उत्तर प्रदेश की सूची में 53 नंबर पर मझवार के नाम से अंकित हैं. उसी सूची में 66 नंबर पर तूरैहा की पर्यायवाची जातियां धिवर, धीमर, कहार, रैकवार, बाथम समेत 8 जातियां अंकित हैं. ऐसे में पूर्व की सपा सरकार द्वारा जारी किया गया नोटिफिकेशन अवैध और असंवेधनिक था.
निषाद ने कहा कि हमारी लड़ाई OBC से SC में शामिल करने की नहीं है, बल्कि 18 जातियों को 1992 से पहले मिल रहे संवेधानिक आरक्षण को जारी करने की है. उन्होंने कहा कि कोर्ट का फैसला आने के बाद न्यायपालिका से मामले का निपटारा हो गया है, अब मझवार आरक्षण को लेकर हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत कर रहे हैं. जल्द ही सीएम योगी आदित्यनाथ व गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर मामले को भी रखेंगे.
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ये था मामला
दरअसल, अखिलेश सरकार ने अपने कार्यकाल में 22 दिसंबर 2016 को 18 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने का नोटिफिकेशन जारी किया था. अखिलेश सरकार की तरफ से सभी जिलों के डीएम को आदेश जारी किया गया था कि इस जाति के सभी लोगों को ओबीसी की बजाय एससी का सर्टिफिकेट दिया जाए.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 24 जनवरी 2017 को इस नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी थी. 24 जून 2019 को योगी सरकार ने एक बार फिर से इन जातियों को ओबीसी से हटाकर एससी कैटेगिरी में डालने का नया नोटिफिकेशन जारी किया था. हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी गई थी कि अनुसूचित जातियों की सूची भारत के राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई थी. इसमें किसी तरह के बदलाव का अधिकार सिर्फ देश की संसद को है. राज्यों को इसमें किसी तरह का संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है.
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