मऊ: जिले में घाघरा नदी का जलस्तर तेजी के साथ बढ़ता ही जा रहा है, जिसका परिणाम यह है कि तटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ आ गई है. घाघरा की बाढ़ के चपेट में 20 से अधिक गांव आ गए हैं. हालत यह हैं कि बाढ़ प्रभावित ग्रामीण अब गांव से पलायन करने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है कि एक तरफ कोरोना महामारी और दूसरी तरफ बाढ़. इन दोनों के चलते बहुत नुकसान हुआ है. बाढ़ में सब कुछ डूब चुका है.
मऊ जनपद के देवरांचल क्षेत्र में घाघरा नदी उफान पर है. जलस्तर में वृद्धि होने से तटवर्ती के 20 से अधिक गांवों में जलभराव हो गया है. कई किसानों के सैकड़ों एकड़ फसल बाढ़ की चपेट में आकर पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं. एक तरफ कोरोना काल ने रोजगार छिन लिया तो दूसरी तरफ बाढ़ ने कहर बरपाया है. परसिया गांव के ग्रामीण प्रकृति की दोहरी मार झेल रहे हैं.
कोरोना के कारण छिन गया रोजगार
बाढ़ पीड़ित राम प्रसाद बताते हैं कि कोरोना वायरस के चलते रोजी रोटी का सहारा छिन गया है. इसी समय में बाढ़ आ जाने से शेष उम्मीद भी चली गई है. बाढ़ का प्रभाव इतना है कि 12 बीघा धान और गन्ने की फसल पूरी तरह डूब गई हैं. इतना ही नहीं इस बार तो फसलों की लागत भी नहीं निकल सकती.
बाढ़ ने फसलें कर दीं बर्बाद
राम प्रसाद का कहना है कि सरकार की तरफ से मिलने वाला मुआवजा सिर्फ खेत के मालिक को मिलता है, हम तो बटाईदार हैं. अधिकारी आकर बाढ़ का मुआयना करते हैं, लेकिन अभी तक कोई मदद नहीं मिली है. ग्रामीण सुमित्रा बताती हैं कि कोरोना समय में मजदूरी करने को नहीं मिल रही है, धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है. ऐसे समय में बाढ़ आने से फसलें बर्बाद हो गई हैं. रोजी रोटी का एक सहारा खत्म हो चुका है. प्रशासन की तरफ से आ रही मदद सिर्फ बड़े लोगों के लिए आती है. अधिकारी मनमाने ढंग से राशन वितरण कर रहे हैं. मंत्री आते हैं, लेकिन समस्या का कोई निदान नहीं करता है. राहत आपदा सामग्री भी नहीं वितरित की गई.
किसानों को मुआवजा देने का आश्वासन
जिला प्रभारी मंत्री सुरेश पासी ने बताया कि बाढ़ से प्रभावित लोगों को सहायता देने के लिए उत्तर प्रदेश शासन की तरफ से हर संभव प्रयास किया जा रहा है. लोगों को जहां राहत सामग्री दी जा रही है, वहीं बाढ़ में पीड़ित लोगों अनुदान दिया जा रहा है. अनुदान की राशि जिला प्रशासन के खाते में भेजी जा रही है. साथ ही जो फसल प्रभावित हुए हैं, उनका सर्वे कराकर किसानों को मुआवजा दिया जाएगा.