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ओवर ब्रिज की मांग: इस रेलवे फाटक के नीचे से निकल जाते हैं 'चुनाव', लोगों को होती है परेशानी - मऊ समाचार

यूपी के मऊ जिले में बना रेलवे फाटक संख्या 0/B नगर को दो हिस्सों में बांटता है. यहां से लगभग 55 से 60 ट्रेनें गुजरती हैं. यहां ट्रेन पास कराने के लिए फाटक बंद करना पड़ता था. इससे भयंकर जाम लग जाता है.

रेलवे फाटक पर ओवर ब्रिज बनाने की मांग.
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Published : Aug 26, 2019, 9:45 AM IST

मऊ: जिले में एक ऐसा रेलवे फाटक है, जिसे हटाने की मांग वर्षों से होती आ रही है. यह 0/B फाटक चुनाव के समय राजनीतिक दलों का प्रमुख मुद्दा बन जाता है. राजनीतिक दलों में इस मुद्दे को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है.

रेलवे फाटक पर ओवर ब्रिज बनाने की मांग.

नगर के बीचों-बीच स्टेशन से लगभग सौ मीटर की दूरी पर बना रेलवे फाटक संख्या 0/B नगर को दो हिस्सों में बांटता है. बलिया और गोरखपुर की ओर से आने वाली ट्रेनें मऊ स्टेशन से होकर आजमगढ़ या औंड़िहार-वाराणसी रूट पर जाती हैं. 24 घंटों में लगभग अप-डाउन को 55 से 60 ट्रेनें इस रूट से गुजरती हैं. ट्रेन क्रॉस कराने के लिए फाटक बंद रखने में प्रति ट्रेन लगा समय यदि आठ मिनट भी मान लिया जाए तो 24 घंटों में कुल 440 मिनट या उससे भी अधिक समय तक यह फाटक बंद रहता है. इसकी वजह से फाटक की दोनों तरफ भयंकर जाम लग जाता है. जैसे ही फाटक खुलता है वैसे ही सैकड़ों वाहनों का आमने-सामने से आना-जाना जारी हो जाता है, जिससे कई बार एक्सीडेंट भी हो जाता है.

दोनों तरफ स्थित है महत्वपूर्ण शहर का हिस्सा-
बता दें कि निरीक्षण भवन के पास बने इस फाटक के एक तरफ आजमगढ़ मोड़ से पहले जिले के डिग्री कॉलेज, रेलवे स्टेशन, रोडवेज, महिला जिला अस्पताल है. वहीं आजमगढ़ मोड़ से आगे प्रमुख निजी अस्पताल, स्टेट बैंक, जिला अस्पताल, कलेक्ट्रेट आदि स्थित हैं. फाटक की दूसरी तरफ सिन्धी कॉलोनी, सदर चौक, मिर्जाहादीपुरा, नगर पालिका है. वहीं सड़क ढेकुलियाघाट पुल होते हुए नगर से बाहर कोपागंज और बलिया की ओर जाती है. ऐसे में रेलवे फाटक से होकर प्रतिदिन हजारों वाहनों का आवागमन होता है.

इसे भी पढ़ें:- गोरखपुर: पूर्वोत्तर रेलवे ने की जल संरक्षण की बेहतरीन पहल

स्कूली बच्चों और एंबुलेंस को सबसे ज्यादा दिक्कत-
रेलवे फाटक से होकर गुजरने में सबसे बड़ी समस्या स्कूली बच्चों और एंबुलेंस को होती है. बच्चों को स्कूल पहुंचने में देर हो जाती है. कई बार जाम में फंसने से एंबुलेंस में ही मरीज की मौत हो जाती है.

क्या हुआ हाई कोर्ट के आदेश के बाद-
सालों से 0/B फाटक पर ओवरब्रिज की मांग होती आ रही है, जिसे चुनावों में पार्टियां मुद्दा बनाती रही हैं. रेलवे बोर्ड की ओर से वर्ष 2016-17 में ओवरब्रिज निर्माण की स्वीकृति दी जा चुकी है. प्रदेश सरकार के स्तर पर ओवरब्रिज के लिए निर्धारित जमीन उपलब्ध कराने के मामले में लंबित होने के चलते मामला ठंडा पड़ गया. यह मामला हाईकोर्ट में गया था. इस पर कोर्ट ने 4 मई 2018 के आदेश में जिला प्रशासन और क्षेत्रीय रेलवे प्रबंधक को संयुक्त बैठक कर कार्य योजना बनाने का निर्देश दिया. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने देवप्रकाश राय की जनहित याचिका पर दिया था.

इसके बाद 24 मई 2018 को जिला प्रशासन द्वारा उत्तर प्रदेश सेतु निगम द्वारा बनाए गए ओवरब्रिज निर्माण के नक्शे के अनुसार जमीन की नापी की गई. 27 जून 2018 को डीएम कैंप कार्यालय पर रेलवे, पीडब्ल्यूडी सहित सभी विभागों के अधिकारियों की संयुक्त बैठक हुई. बैठक में डीआरएम वाराणसी के साथ रेलवे के इंजीनियर भी शामिल हुए. डीआरएम के आरओबी बनाने की सहमति पर तत्कालीन जिलाधिकारी प्रकाश बिंदु ने प्रस्ताव बनाकर 21 जुलाई 2018 को शासन (अपर मुख्य सचिव, लोनिवि) को भेजा.

इसमें प्रस्तावित स्थल पर रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) के निर्माण में लगभग 95 करोड़ रुपये की संभावित लागत बताई गई थी. जनहित याचिका दायर करने वाले रालोद महासचिव देवप्रकाश राय ने बताया कि 21 जुलाई 2018 को शासन को भेजे गए प्रस्ताव पर अब तक जवाब या अनुमति नहीं दी गई है. जब प्रदेश में सपा की सरकार थी तो भाजपा वाले कहते थे कि यूपी में हमारी सरकार नहीं है, इसलिए पुल नहीं बन पा रहा है.

मऊ: जिले में एक ऐसा रेलवे फाटक है, जिसे हटाने की मांग वर्षों से होती आ रही है. यह 0/B फाटक चुनाव के समय राजनीतिक दलों का प्रमुख मुद्दा बन जाता है. राजनीतिक दलों में इस मुद्दे को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है.

रेलवे फाटक पर ओवर ब्रिज बनाने की मांग.

नगर के बीचों-बीच स्टेशन से लगभग सौ मीटर की दूरी पर बना रेलवे फाटक संख्या 0/B नगर को दो हिस्सों में बांटता है. बलिया और गोरखपुर की ओर से आने वाली ट्रेनें मऊ स्टेशन से होकर आजमगढ़ या औंड़िहार-वाराणसी रूट पर जाती हैं. 24 घंटों में लगभग अप-डाउन को 55 से 60 ट्रेनें इस रूट से गुजरती हैं. ट्रेन क्रॉस कराने के लिए फाटक बंद रखने में प्रति ट्रेन लगा समय यदि आठ मिनट भी मान लिया जाए तो 24 घंटों में कुल 440 मिनट या उससे भी अधिक समय तक यह फाटक बंद रहता है. इसकी वजह से फाटक की दोनों तरफ भयंकर जाम लग जाता है. जैसे ही फाटक खुलता है वैसे ही सैकड़ों वाहनों का आमने-सामने से आना-जाना जारी हो जाता है, जिससे कई बार एक्सीडेंट भी हो जाता है.

दोनों तरफ स्थित है महत्वपूर्ण शहर का हिस्सा-
बता दें कि निरीक्षण भवन के पास बने इस फाटक के एक तरफ आजमगढ़ मोड़ से पहले जिले के डिग्री कॉलेज, रेलवे स्टेशन, रोडवेज, महिला जिला अस्पताल है. वहीं आजमगढ़ मोड़ से आगे प्रमुख निजी अस्पताल, स्टेट बैंक, जिला अस्पताल, कलेक्ट्रेट आदि स्थित हैं. फाटक की दूसरी तरफ सिन्धी कॉलोनी, सदर चौक, मिर्जाहादीपुरा, नगर पालिका है. वहीं सड़क ढेकुलियाघाट पुल होते हुए नगर से बाहर कोपागंज और बलिया की ओर जाती है. ऐसे में रेलवे फाटक से होकर प्रतिदिन हजारों वाहनों का आवागमन होता है.

इसे भी पढ़ें:- गोरखपुर: पूर्वोत्तर रेलवे ने की जल संरक्षण की बेहतरीन पहल

स्कूली बच्चों और एंबुलेंस को सबसे ज्यादा दिक्कत-
रेलवे फाटक से होकर गुजरने में सबसे बड़ी समस्या स्कूली बच्चों और एंबुलेंस को होती है. बच्चों को स्कूल पहुंचने में देर हो जाती है. कई बार जाम में फंसने से एंबुलेंस में ही मरीज की मौत हो जाती है.

क्या हुआ हाई कोर्ट के आदेश के बाद-
सालों से 0/B फाटक पर ओवरब्रिज की मांग होती आ रही है, जिसे चुनावों में पार्टियां मुद्दा बनाती रही हैं. रेलवे बोर्ड की ओर से वर्ष 2016-17 में ओवरब्रिज निर्माण की स्वीकृति दी जा चुकी है. प्रदेश सरकार के स्तर पर ओवरब्रिज के लिए निर्धारित जमीन उपलब्ध कराने के मामले में लंबित होने के चलते मामला ठंडा पड़ गया. यह मामला हाईकोर्ट में गया था. इस पर कोर्ट ने 4 मई 2018 के आदेश में जिला प्रशासन और क्षेत्रीय रेलवे प्रबंधक को संयुक्त बैठक कर कार्य योजना बनाने का निर्देश दिया. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने देवप्रकाश राय की जनहित याचिका पर दिया था.

इसके बाद 24 मई 2018 को जिला प्रशासन द्वारा उत्तर प्रदेश सेतु निगम द्वारा बनाए गए ओवरब्रिज निर्माण के नक्शे के अनुसार जमीन की नापी की गई. 27 जून 2018 को डीएम कैंप कार्यालय पर रेलवे, पीडब्ल्यूडी सहित सभी विभागों के अधिकारियों की संयुक्त बैठक हुई. बैठक में डीआरएम वाराणसी के साथ रेलवे के इंजीनियर भी शामिल हुए. डीआरएम के आरओबी बनाने की सहमति पर तत्कालीन जिलाधिकारी प्रकाश बिंदु ने प्रस्ताव बनाकर 21 जुलाई 2018 को शासन (अपर मुख्य सचिव, लोनिवि) को भेजा.

इसमें प्रस्तावित स्थल पर रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) के निर्माण में लगभग 95 करोड़ रुपये की संभावित लागत बताई गई थी. जनहित याचिका दायर करने वाले रालोद महासचिव देवप्रकाश राय ने बताया कि 21 जुलाई 2018 को शासन को भेजे गए प्रस्ताव पर अब तक जवाब या अनुमति नहीं दी गई है. जब प्रदेश में सपा की सरकार थी तो भाजपा वाले कहते थे कि यूपी में हमारी सरकार नहीं है, इसलिए पुल नहीं बन पा रहा है.

Intro:(नोट : कृपया विजुअल में बैकग्राउंड म्यूजिक और स्पेशल एफेक्ट्स भी डाला जाए यदि उचित लगे)

मऊ। कल्पना कीजिए आप किसी महत्वपूर्ण कार्य से कहीं जा रहे हों और रहे रास्ते में सड़क पर रेलवे फाटक बंद मिले. ऐसे में रिस्क लेकर अवैध तरीके से पैदल या दोपहिया वाहन तो वाले लोग तो फाटक के नीचे से निकलकर चले जाते हैं. लेकिन क्या हो जब मिनटों तक फाटक के खुलने का इंतजार करना पड़े. हम यहाँ आपको एक ऐसे रेलवे फाटक की कहानी बताने जा रहे हैं. जिसे हटाने की मांग वर्षों से होती रही है. यह फाटक चुनाव के समय राजनीतिक दलों का प्रमुख मुद्दा बन जाता है. राजनीतिक दलों में इस मुद्दे को लेकर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है. इन सबके बीच सालों से मऊ की जनता नासूर बन चुके इस रेलवे फाटक का दर्द सह रही है.


Body:यूपी के जनपद मऊ का बालनिकेतन फाटक एक ऐसा नाम और एक ऐसी जगह है जिधर गुजरने से पहले ही आदमी सोच लेता है कि यह बंद मिलेगा. नगर के बीचों-बीच स्टेशन से लगभग सौ मीटर की दूरी पर बना रेलवे फाटक संख्या 0/बी नगर को दो हिस्सों में बाँटता है. बलिया और गोरखपुर की ओर से आने वाली ट्रेनें मऊ स्टेशन से होकर आजमगढ़ या औंड़िहार-वाराणसी रूट पर जाती हैं. एक अनुमान के मुताबिक 24 घंटों में अप-डाउन को 55 से 60 ट्रेनें इस रूट से गुजरती हैं. ट्रेन क्रॉस कराने के लिए फाटक बंद रखने में प्रति ट्रेन लगा समय यदि 8 मिनट भी मान लिया जाए तो 24 घंटों में कुल 440 मिनट या उससे भी अधिक समय तक यह फाटक बंद रहता है. जिसकी वजह से फाटक की दोनों तरफ भयंकर जाम लग जाता है. जैसे ही फाटक खुलता है वैसे ही सैकड़ों वाहनों का आमने-सामने दबाव बढ़ जाता है. जिससे कई बार एक्सडेंट भी हो जाता है.

दोनों तरफ महत्वपूर्ण हिस्सा-
बता दें कि निरीक्षण भवन के पास बने इस फाटक के एक तरफ आजमगढ़ मोड़ से पहले जिले के डिग्री कॉलेज, रेलवे स्टेशन, रोडवेज, महिला जिला अस्पताल स्थित, बैंक हैं. वहीं आजमगढ़ मोड़ से आगे प्रमुख निजी अस्पताल, स्टेट बैंक, एटीएम, जिला अस्पताल, कलेक्ट्रेट आदि स्थित हैं. फाटक की दूसरी तरफ सड़क दो हिस्सों में बंटी हुई है. एक सड़क शहर के अंदर सिन्धी कालोनी, सदर चौक, मिर्जाहादीपुरा, नगर पालिका को जाती है. तो वहीं दूसरी सड़क ढेकुलियाघाट पुल होते हुए नगर से बाहर कोपागंज और बलिया की ओर जाती है. ऐसे में रेलवे फाटक से होकर प्रतिदिन हजारों वाहनों का आवागमन होता है.

स्कूली बच्चों और एंबुलेंस को सबसे ज्यादा दिक्कत-
रेलवे फाटक से होकर गुजरने में सबसे बड़ी समस्या स्कूली बच्चों और एंबुलेंस को होती है. बच्चों को स्कूल पहुंचने में देर हो जाती है. वहीं दोपहर की कड़ी धूप में जाम में फंसे बच्चे मूर्छित भी हो जाते हैं. कई बार एंबुलेंस में मरीज की मौत तक हो जाती है.

हाई कोर्ट के आदेश के बाद क्या हुआ-
गौरतलब है कि सालों से 0/बी फाटक पर ओवरब्रिज की मांग होती रही है जिसे चुनावों में पार्टियां मुद्दा बनाती रही हैं. रेलवे बोर्ड की ओर से वर्ष 2016-17 में ओवरब्रिज निर्माण की स्वीकृति दी जा चुकी थी. प्रदेश सरकार के स्तर पर ओवरब्रिज के लिए निर्धारित जमीन उपलब्ध कराने के मामले में लंबित होने के चलते मामला ठण्डा पड़ गया. वहीं यह मामला हाईकोर्ट में गया था जिसपर कोर्ट ने 4 मई 2018 के आदेश में जिला प्रशासन और क्षेत्रीय रेलवे प्रबंधक को संयुक्त बैठक कर कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी बी भोसले तथा न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने देवप्रकाश राय की जनहित याचिका पर दिया था. जिसके बाद 24 मई 2018 को जिला प्रशासन द्वारा उत्तर प्रदेश सेतु निगम द्वारा बनाए गए ओवरब्रिज निर्माण के नक्शे के अनुसार जमीन की नापी की गई. ओवरब्रिज निर्माण के रास्ते में आनेवाले 296 लोगों को जिला प्रशासन की ओर से नोटिस भी जारी की गई है. 27 जून 2018 को डीएम कैंप कार्यालय पर रेलवे, पीडब्ल्यूडी सहित सभी विभागों के अधिकारियों की संयुक्त बैठक हुई. बैठक में डीआरएम वाराणसी के साथ रेलवे के इंजीनियर भी शामिल हुए थे. डीआरएम के आरओबी बनाने की सहमति पर तत्कालीन जिलाधिकारी प्रकाश बिंदु द्वारा प्रस्ताव बनाकर 21 जुलाई 2018 को शासन (अपर मुख्य सचिव, लोनिवि) को भेजा गया था. इसमें प्रस्तावित स्थल पर रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) के निर्माण में लगभग 95 करोड़ रूपये किया संभावित लागत बताई गई थी.

जनहित याचिका दायर करने वाले रालोद महासचिव देवप्रकाश राय ने बताया कि 21 जुलाई 2018 को शासन को भेजे गए प्रस्ताव पर अभी तक जवाब या अनुमति नहीं दी है. जबकि प्रस्ताव भेजे जाने के लगभग एक वर्ष गुजर चुके हैं. जब प्रदेश में सपा की सरकार थी तो भाजपा वाले कहते थे कि यूपी में हमारी सरकार नहीं है इसलिए पुल नहीं बन पा रहा है. लेकिन जब यूपी में भी भाजपा सरकार बन गई तो भी पुल अभी तक नहीं बनने दिया गया. यदि ओवरब्रिज नहीं बनाया जा सकता तो अण्डरपास बना दिया जाए. लेकिन सरकार जनता को बेवकूफ बना रही है. फोरलेन निर्माण में किसानों और गरीबों के हजारों मकान गिरा दिए गए. यहां भाजपा के वोटर रहे दुकानदारों और पूंजपतियों की बात आई इसलिए निर्माण खाली नहीं कराए जा रहे हैं. देवप्रकाश राय ने बताया कि ओवरब्रिज बनाने की मांग को लेकर वह 50 हजार पर्चे बांट चुके हैं. बनारस के प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, गोरखनाथ मंदिर आदि हरेक जगह पत्र देकर डीएम के पत्र पर शासन द्वारा अनुमति देने की मांग की.

अब देखना यह है कि नासूर बन चुके इस रेलवे फाटक के दर्द से मऊ की जनता कब उबरती है. वर्षों से चली आ रही ओवरब्रिज की मांग आखिर कब पूरी होती है. या यूं ही रेलवे फाटक 0/बी चुनावों में हर बार राजनीतिक मुद्दा बनता रहेगा.


बाईट - देवप्रकाश राय (रालोद नेता, जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल करने वाले)
बाईट - रामअवध (दूध पहुंचाने वाले)




Conclusion:
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