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दिल्ली से साइकिल चलाकर मऊ पहुंचे मजदूर, ईटीवी भारत से बयां किया दर्द

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Published : May 7, 2020, 10:52 AM IST

लॉकडाउन में दिल्ली और गाजियाबाद से साइकिल चलाकर कुछ मजदूर मऊ पहुंचे. यहां इनकी जांच कर 14 दिन तक होम क्वारंटाइन रहने के निर्देश दिए गए. वहीं ईटीवी भारत से बातचीत में मजदूरों ने अपना दर्द बयां किया.

laborers reached mau by bicycle
दिल्ली से साइकिल चलाकर मऊ पहुंचे मजदूर

मऊ: लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूर अब जिले में पहुंचने लगे हैं. बुधवार को जिले में दिल्ली और गाजियाबाद से साइकिल चलाकर कई मजदूर पहुंचे. इनका थर्मल स्क्रीनिंग और विवरण लेकर गांव भेज दिया गया. इसके साथ ही इन्हें 14 दिन तक क्वारंटाइन रहने का निर्देश दिया गया.

मजदूरों ने ईटीवी भारत से बयां किया दर्द.

गाजियाबाद से साइकिल से चलकर आए मजदूरों ने बताया कि दो दिन में जिले में पहुंचे है. रास्ते मे रोडवेज बस मिल गई तो जल्दी आ गए. उन्होंने बताया कि वे मजदूरी का काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन होने से काम बंद हो गया है. जब लगा कि भूख से मर जाएंगे तो साइकिल लेकर गांव के लिए निकल पड़े.

मऊ: घर-घर जाकर गुरुजी बांट रहे शिक्षण सामग्री

कोपागंज निवासी अनिल ने बताया कि वे दिल्ली में पाइप की कम्पनी में काम करके जीविका चलाते थे, लेकिन लॉकडाउन में सब काम बंद है, जिससे खाने तक के पैसे नहीं बचे हैं. ऐसे में गांव आ गए हैं. यहां किसी प्रकार खाना तो मिलेगा, दिल्ली में कोई नहीं पूछने वाला है.

मऊ: लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूर अब जिले में पहुंचने लगे हैं. बुधवार को जिले में दिल्ली और गाजियाबाद से साइकिल चलाकर कई मजदूर पहुंचे. इनका थर्मल स्क्रीनिंग और विवरण लेकर गांव भेज दिया गया. इसके साथ ही इन्हें 14 दिन तक क्वारंटाइन रहने का निर्देश दिया गया.

मजदूरों ने ईटीवी भारत से बयां किया दर्द.

गाजियाबाद से साइकिल से चलकर आए मजदूरों ने बताया कि दो दिन में जिले में पहुंचे है. रास्ते मे रोडवेज बस मिल गई तो जल्दी आ गए. उन्होंने बताया कि वे मजदूरी का काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन होने से काम बंद हो गया है. जब लगा कि भूख से मर जाएंगे तो साइकिल लेकर गांव के लिए निकल पड़े.

मऊ: घर-घर जाकर गुरुजी बांट रहे शिक्षण सामग्री

कोपागंज निवासी अनिल ने बताया कि वे दिल्ली में पाइप की कम्पनी में काम करके जीविका चलाते थे, लेकिन लॉकडाउन में सब काम बंद है, जिससे खाने तक के पैसे नहीं बचे हैं. ऐसे में गांव आ गए हैं. यहां किसी प्रकार खाना तो मिलेगा, दिल्ली में कोई नहीं पूछने वाला है.

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