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मऊ: मजबूर होकर दोबारा प्रवास को निकलने लगे मजदूर - काम की तलाश में लोग

उत्तर प्रदेश के मऊ में आए प्रवासी मजदूरों का पलायन महानगरों की तरफ फिर से होना शुरू हो गया है. लोगों का कहना है कि कोरोना काल में काम नहीं मिल पा रहा है, जिससे उन्हें महानगरों की ओर जाना पड़ रहा है.

मजदूर पलायन करने पर मजबूर
मजदूर पलायन करने पर मजबूर
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Published : Jul 8, 2020, 2:35 PM IST

मऊ: कोरोना वायरस के संक्रमण के बचाव के लिए देशव्यापी लॉकडाउन में लाखों की संख्या में प्रवासी कामगारों के रोजगार छिन गए. इसके बाद महानगरों से पलायन हुआ. लोग पैदल, साइकिल, ट्रक, बस और ट्रेन के माध्यम कठिनाइयों को झेलते हुए घर आए. जीवन की रक्षा के लिए घर आने वाले कामगार दो-तीन महीने गुजरने के बाद पुनः महानगरों की ओर निकलने लगे हैं. स्थानीय स्तर पर रोजगार का प्रबंधन नहीं होने के चलते कामगार मजबूर होकर बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच घर छोड़ने को मजबूर हैं.

प्रवासी कामगारों को स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तमाम दावे कर रहें हैं, लेकिन जमीनी हालात ऐसा नहीं हैं. मऊ जिले प्रवासी कामगारों को रोजगार के नाम पर केवल मनरेगा सहारा बना, वह भी गिने चुने दिन और सीमित लोगों के लिए. ऐसे में जीविकोपार्जन का कोई सहारा नहीं होने के चलते लॉकडाउन जैसी विभीषिका झेलने के बावजूद कामगार महानगरों की ओर निकलने लगे हैं. बढ़ते कोरोना के संक्रमण के बीच गुजरात जा रहे रामवृक्ष यादव ने बताया कि मजबूर होकर हम घर से जा रहें हैं. यहां कोई रोजगार का साधन नहीं है.

दोबारा वापस जाना मजबूरी
उनका कहना है कि सरकार केवल राशन दे रही है. राशन से ही सब कुछ नहीं होता है. कोरोना काल में बाहर निकलना उनकी मजबूरी है. घर में भूखे मरने से बेहतर है बाहर कोरोना से मर जाएं. साथ ही वे बताते हैं कि मनरेगा में सभी को काम नहीं मिलता, अगर काम करते भी है तो 10 या 20 दिन काम मिलेगा. घर खेती है तो उसके लिए भी पैसा चाहिए, तभी कुछ पैदा होगा. उन्होंने बताया कि गुजरात मे पोकलैंड मशीन चलाकर 20 हजार महीने कमाते थे.

मजदूर पलायन करने पर मजबूर

केवल 10 दिन के लिए मिला काम
लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे कामगार सूरज पाल इस समय घर पर खेती के काम मे जुटे हुए हैं. वे बताते हैं कि वे पुणे में प्लास्टिक की फैक्ट्री में काम करता था. 14 से 16 हजार रुपये महीने कमाई हो जाती थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान सब काम बंद हो गया. 50 दिन तक वह पुणे में रुका रहा कि काम चालू हो जाएगा, लेकिन जब पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा तो घर से पैसे मंगाकर ट्रक से वे लोग घर पर आ गए. वहीं अब दो महीने बिना काम के जीविकोपार्जन की परेशानी हो रही है. उन्होंने बताया कि मनरेगा में काम मिला था मात्र 10 दिन, लेकिन उससे क्या होने वाला.

जिले में लौटे हैं 47000 प्रवासी कामगार
देशव्यापी लॉक के दौरान जिले में विभिन्न महानगरों से 47 हजार प्रवासी कामगार वापस लौटे हैं. इन्हें स्थानीय स्तर में रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकार की ओर से जो प्रयास किए गए, उसमें 16 हजार प्रवासी कामगारों को अभी तक मनरेगा से काम मिला. इसमें से किसी को 10 दिन किसी को 20 दिन और किसी इसी प्रकार काम मिल पाया है. जिले में प्रवासी कामगारों के लिए रोजगार के विषय मे जिलाधिकारी ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि सरकार की प्राथमिकता मनरेगा थी. ऐसे में 16 हजार प्रवासी कामगारों को इसमें काम दिया गया. वहीं दो व्यक्ति को स्कील के अनुसार कार्यालय में काम दिए गए.

जिले में बुनाई उद्योग में बड़े पैमाने पर काम मिलता है, लेकिन इस समय साड़ी की भी मांग कम हो गई है. अब जिले के उद्यमियों और नए युवाओं के साथ बैठकर कर रणनीति बनाई जा रही है. जिले से पूर्वांचल एक्सप्रेस वे गुजर रही है. ऐसे में उसके किनारे उद्योग स्थापित करने की रणनीति बनाई जा रही है. वहीं जनपद में स्थिति बीज अनुसंधान संस्थान को केंद्र सरकार की ओर से स्थापित है.

स्थानीय स्तर पर उद्योग स्थापित किए बगैर पलायन रोकना असम्भव
मऊ जिले की जनसंख्या 25 लॉक है. जिले में कृषि के बाद बुनाई सबसे अधिक रोजगार का माध्यम है. बुनाई में सवा लाख से अधिक लोगों को काम मिल जाता है. बाकी रोजगार के लिए महानगरों कीओर पलायन को मजबूर होते हैं. जिले में स्थानीय स्तर पर कोई उद्योग न होने से रोजगार सृजन का संकट है. इस वक्त जब सरकार रोजगार के लिए अवसर तलाश रही है तो नए उद्योग की स्थापना के साथ-साथ जिले में बन्द कॉटन मिल को चालू करने पर विचार करना चाहिए.

मऊ: कोरोना वायरस के संक्रमण के बचाव के लिए देशव्यापी लॉकडाउन में लाखों की संख्या में प्रवासी कामगारों के रोजगार छिन गए. इसके बाद महानगरों से पलायन हुआ. लोग पैदल, साइकिल, ट्रक, बस और ट्रेन के माध्यम कठिनाइयों को झेलते हुए घर आए. जीवन की रक्षा के लिए घर आने वाले कामगार दो-तीन महीने गुजरने के बाद पुनः महानगरों की ओर निकलने लगे हैं. स्थानीय स्तर पर रोजगार का प्रबंधन नहीं होने के चलते कामगार मजबूर होकर बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच घर छोड़ने को मजबूर हैं.

प्रवासी कामगारों को स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तमाम दावे कर रहें हैं, लेकिन जमीनी हालात ऐसा नहीं हैं. मऊ जिले प्रवासी कामगारों को रोजगार के नाम पर केवल मनरेगा सहारा बना, वह भी गिने चुने दिन और सीमित लोगों के लिए. ऐसे में जीविकोपार्जन का कोई सहारा नहीं होने के चलते लॉकडाउन जैसी विभीषिका झेलने के बावजूद कामगार महानगरों की ओर निकलने लगे हैं. बढ़ते कोरोना के संक्रमण के बीच गुजरात जा रहे रामवृक्ष यादव ने बताया कि मजबूर होकर हम घर से जा रहें हैं. यहां कोई रोजगार का साधन नहीं है.

दोबारा वापस जाना मजबूरी
उनका कहना है कि सरकार केवल राशन दे रही है. राशन से ही सब कुछ नहीं होता है. कोरोना काल में बाहर निकलना उनकी मजबूरी है. घर में भूखे मरने से बेहतर है बाहर कोरोना से मर जाएं. साथ ही वे बताते हैं कि मनरेगा में सभी को काम नहीं मिलता, अगर काम करते भी है तो 10 या 20 दिन काम मिलेगा. घर खेती है तो उसके लिए भी पैसा चाहिए, तभी कुछ पैदा होगा. उन्होंने बताया कि गुजरात मे पोकलैंड मशीन चलाकर 20 हजार महीने कमाते थे.

मजदूर पलायन करने पर मजबूर

केवल 10 दिन के लिए मिला काम
लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे कामगार सूरज पाल इस समय घर पर खेती के काम मे जुटे हुए हैं. वे बताते हैं कि वे पुणे में प्लास्टिक की फैक्ट्री में काम करता था. 14 से 16 हजार रुपये महीने कमाई हो जाती थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान सब काम बंद हो गया. 50 दिन तक वह पुणे में रुका रहा कि काम चालू हो जाएगा, लेकिन जब पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा तो घर से पैसे मंगाकर ट्रक से वे लोग घर पर आ गए. वहीं अब दो महीने बिना काम के जीविकोपार्जन की परेशानी हो रही है. उन्होंने बताया कि मनरेगा में काम मिला था मात्र 10 दिन, लेकिन उससे क्या होने वाला.

जिले में लौटे हैं 47000 प्रवासी कामगार
देशव्यापी लॉक के दौरान जिले में विभिन्न महानगरों से 47 हजार प्रवासी कामगार वापस लौटे हैं. इन्हें स्थानीय स्तर में रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकार की ओर से जो प्रयास किए गए, उसमें 16 हजार प्रवासी कामगारों को अभी तक मनरेगा से काम मिला. इसमें से किसी को 10 दिन किसी को 20 दिन और किसी इसी प्रकार काम मिल पाया है. जिले में प्रवासी कामगारों के लिए रोजगार के विषय मे जिलाधिकारी ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि सरकार की प्राथमिकता मनरेगा थी. ऐसे में 16 हजार प्रवासी कामगारों को इसमें काम दिया गया. वहीं दो व्यक्ति को स्कील के अनुसार कार्यालय में काम दिए गए.

जिले में बुनाई उद्योग में बड़े पैमाने पर काम मिलता है, लेकिन इस समय साड़ी की भी मांग कम हो गई है. अब जिले के उद्यमियों और नए युवाओं के साथ बैठकर कर रणनीति बनाई जा रही है. जिले से पूर्वांचल एक्सप्रेस वे गुजर रही है. ऐसे में उसके किनारे उद्योग स्थापित करने की रणनीति बनाई जा रही है. वहीं जनपद में स्थिति बीज अनुसंधान संस्थान को केंद्र सरकार की ओर से स्थापित है.

स्थानीय स्तर पर उद्योग स्थापित किए बगैर पलायन रोकना असम्भव
मऊ जिले की जनसंख्या 25 लॉक है. जिले में कृषि के बाद बुनाई सबसे अधिक रोजगार का माध्यम है. बुनाई में सवा लाख से अधिक लोगों को काम मिल जाता है. बाकी रोजगार के लिए महानगरों कीओर पलायन को मजबूर होते हैं. जिले में स्थानीय स्तर पर कोई उद्योग न होने से रोजगार सृजन का संकट है. इस वक्त जब सरकार रोजगार के लिए अवसर तलाश रही है तो नए उद्योग की स्थापना के साथ-साथ जिले में बन्द कॉटन मिल को चालू करने पर विचार करना चाहिए.

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