मऊ: देश में इस समय वैश्विक महामारी कोरोना का कहर जारी है. कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है. वहीं इसके कारण लागू लॉकडाउन से आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है. सभी उद्योग-धंधे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. आइसक्रीम उद्योग भी इससे अछूता नहीं रहा. अब अनलॉक-1 के दौरान जहां सभी उद्योग-धंधे खुल गए हैं तो वहीं आइसक्रीम फैक्ट्रियों के ताले अब भी बन्द हैं. ऐसे में फैक्ट्री मालिकों को कर्ज की चिंता सता रही है. फैक्ट्रियों के बंद होने से केवल मऊ जिले में लगभग 1 करोड़ रुपये का व्यापार प्रभावित हुआ है.
कामगार बेरोजगार, मालिकों को लाखों का नुकसान
गर्मियों के मौसम में आइसक्रीम की मांग खूब होती है. इसी दौरान शादी-विवाह का भी समय रहता है तो इस धंधे से जुड़े लोगों की अच्छी खासी कमाई हो जाती थी. इस साल जैसे ही गर्मी के मौसम की शुरुआत हुई तो कोरोना ने दस्तक दे दी. देश में लॉकडाउन हो जाने से आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर सभी दुकानें और फैक्ट्रियां बन्द हो गईं. आइसक्रीम फैक्ट्रियों को भी बंद कर दिया गया, जिससे कामगार बेरोजगार हो गए और मालिकों को भी लाखों का नुकसान हुआ.
क्या कहते हैं फैक्ट्री मालिक
जिले के शादीपुर गांव में धर्मेंद्र सिंह ने आइसक्रीम फैक्ट्री लगाई है. इनके पास 20 रिक्शा और चार वैन हैं, जिससे आइसक्रीम की सप्लाई होती है, लेकिन इस समय लॉकडाउन के चलते फैक्ट्री की मशीनों पर धूल जम रही है तो गाड़ियों के पहिए भी अपने स्थान से नहीं डोले. शादी विवाह रद्द हो गए तो जो बुकिंग थी, वह भी कैंसिल हो गई.
धर्मेंद्र सिंह ने बताया, 'मार्च से जून तक आइसक्रीम की मांग सर्वाधिक होती है. इस समय अच्छी कमाई हो जाती है, लेकिन लॉकडाउन से फैक्ट्री बन्द रही. वहीं अब अनलॉक के दौरान भी आइसक्रीम बेचने की अनुमति नहीं मिली है. ऐसे में 7 से 8 लाख रुपये का नुकसान हुआ है. बैंक का कर्ज देना है, जिसकी चिंता सता रही है.'
पैसे बचाने की उम्मीदों पर फिरा पानी
फैक्ट्रियों के बन्द होने से जहां मालिकों को नुकसान हो रहा है. वहीं इससे जुड़े कामगारों को जीविकोपार्जन की चिंता सता रही है. रिक्शा गाड़ी से गांव-गांव आइसक्रीम बेचने वाले कामगार गर्मी के मौसम में मेहनत करके 30 से 35 हजार की बचत दो महीने में कर लेते थे, लेकिन इस बार उनके रिक्शा का पहिया भी नहीं घूमा.
घर का खर्च चलाना हो रहा मुश्किल
कामगार दिनेश ने बताया, 'गर्मी के मौसम में हर साल आइसक्रीम बेचकर पैसे की बचत हो जाती थी. कहीं से भी समय निकालकर आइसक्रीम बेचने आ जाते थे. प्रतिदिन 600-700 रुपये की बचत हो जाती थी, लेकिन इस साल लॉकडाउन के चलते आइसक्रीम भी नहीं बिकी और कोई काम भी नहीं मिल रहा है. हालात यह हैं कि घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया है.' लॉकडाउन में सरकार से कुछ सहायता मिलने के सवाल पर उन्होंने बताया कि 500 रुपये पत्नी को मिलता है, लेकिन उससे क्या होने वाला है. किसी तरह पेट पाला जा रहा है.
पांच हजार लोग प्रभावित
मऊ जिले में प्रमुख रूप से 5 आइसक्रीम फैक्ट्री हैं, जो पूरे साल चलती हैं, लेकिन पीक सीजन मार्च से लेकर जून माह तक जिले में गांव से लेकर शहर तक 150 आइसक्रीम फैक्ट्री संचालित होती हैं, जिससे लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिल जाता है. औसतन सभी फैक्ट्री पर 30 लोग काम करते हैं, ऐसे में मालिक और कामगर सहित पांच हजार लोगों के जीविकोपार्जन पर सीधा असर पड़ा है.
जिले के प्रमुख आइसक्रीम गौतम मिल्क के मालिक सुनील ने बताया कि गर्मी और शादी विवाह के सीजन में हर वर्ष 35 से 40 लाख का कारोबार था, लेकिन लॉकडाउन में सब बन्द रहा. हालत यह है कि बिजली का बिल और खर्च निकलना मुश्किल हो गया है.