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मऊ में अजान और 'हर-हर महादेव' के उद्घोष के बीच सम्पन्न हुआ भरत मिलाप

उत्तर प्रदेश के मऊ में 500 सालों से एक ऐतिहासिक भरत मिलाप होता आ रहा है. इस भरत मिलाप की सबसे बड़ी खासियत ये भी है कि एक तरफ जहां शाही मस्जिद में मुसलमान 'अल्लाहु अकबर' कहकर नमाज अदा करते हैं, ठीक उसी समय 'हर-हर महादे का नारा गुंजता है. इस साल भी यहां भरत मिलाप के अवसर पर ऐसा ही नजारा देखने को मिला.

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Published : Oct 10, 2019, 4:28 PM IST

ऐतिहासिक भरत-मिलाप सम्पन्न हुआ.

मऊ: जिले के शाही कटरा मैदान में होन वाले भरत मिलाप की शुरुआत मुगल शासिका जहांआरा के शासन काल से शुरु हुई थी, जो लगभग 500 सालों से एक जैसे रूप में ही मनाया जाता रहा है. इस भरत मिलाप की सबसे बड़ी खासियत ये भी है कि एक तरफ जहां शाही मस्जिद में मुसलमान 'अल्लाहु अकबर' कहकर नमाज अदा करते हैं, ठीक उसी समय 'हर-हर महादेव' का नारा गुंजता है.

ऐतिहासिक भरत-मिलाप सम्पन्न हुआ.

कहते हैं राम और रहीम की आवाज एक साथ मिलकर सुर संगम बन जाता है. इस नैनाभिराम झांकी को देखकर हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्दपूर्ण गंगा-जमुनी तहजीब की ंमनोरम अनुभूति होती है. कहते हैं इसके पीछे कि सोच मुगल शासिका जहांआरा की थी, जो इस तरीके से भरत मिलाप करा कर दोनों सम्प्रदायों की कला और संगीत के अदभूत संयोग को जन्म देना चाहती थी. सैकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां पर सम्पन्न होने वाले भरत मिला में कोई फेरबदल नहीं किया. कालांतर में इस भरत मिलाप स्थल ने कई हिन्दू-मुस्लिम दंगों को भी जन्म दिया, जिससे यहां पर दोनों समुदायों में आक्रोश की भावना आई.

ऐतिहासिक भरत मिलाप
हालांकि इस बार के हिन्दू-मुस्लिम त्योहार एक साथ पड़े तो एक तरफ होकर ताजिया निकला और दूसरी तरफ भरत मिलाप सम्पन्न हो रहा था. भरत मिलाप कमेटी संरक्षक ने बताया कि यह भरत मिलाप ऐतिहासिक भरत मिलाप है. यहां पर अल्लाहु अकबर और हर हर महादेव के स्वरों के मिलन होने के बाद ही भरत मिलाप की प्रक्रिया को सम्पन्न कराया जाता है. यहां पर भरत मिलाप पहले होता था, लेकिन इस तरह से अदभूत मिलन की सोच को जहांआरा बेगन द्वारा शुरू करवाया गया. शाही मस्जिद कटरा के मैदान में जहांआरा बेगम खुद ही बैठकर इस नैना भिराम झांकी का लुत्फ उठाती और भरत मिलाप को देखती थी.

मऊ: जिले के शाही कटरा मैदान में होन वाले भरत मिलाप की शुरुआत मुगल शासिका जहांआरा के शासन काल से शुरु हुई थी, जो लगभग 500 सालों से एक जैसे रूप में ही मनाया जाता रहा है. इस भरत मिलाप की सबसे बड़ी खासियत ये भी है कि एक तरफ जहां शाही मस्जिद में मुसलमान 'अल्लाहु अकबर' कहकर नमाज अदा करते हैं, ठीक उसी समय 'हर-हर महादेव' का नारा गुंजता है.

ऐतिहासिक भरत-मिलाप सम्पन्न हुआ.

कहते हैं राम और रहीम की आवाज एक साथ मिलकर सुर संगम बन जाता है. इस नैनाभिराम झांकी को देखकर हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्दपूर्ण गंगा-जमुनी तहजीब की ंमनोरम अनुभूति होती है. कहते हैं इसके पीछे कि सोच मुगल शासिका जहांआरा की थी, जो इस तरीके से भरत मिलाप करा कर दोनों सम्प्रदायों की कला और संगीत के अदभूत संयोग को जन्म देना चाहती थी. सैकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां पर सम्पन्न होने वाले भरत मिला में कोई फेरबदल नहीं किया. कालांतर में इस भरत मिलाप स्थल ने कई हिन्दू-मुस्लिम दंगों को भी जन्म दिया, जिससे यहां पर दोनों समुदायों में आक्रोश की भावना आई.

ऐतिहासिक भरत मिलाप
हालांकि इस बार के हिन्दू-मुस्लिम त्योहार एक साथ पड़े तो एक तरफ होकर ताजिया निकला और दूसरी तरफ भरत मिलाप सम्पन्न हो रहा था. भरत मिलाप कमेटी संरक्षक ने बताया कि यह भरत मिलाप ऐतिहासिक भरत मिलाप है. यहां पर अल्लाहु अकबर और हर हर महादेव के स्वरों के मिलन होने के बाद ही भरत मिलाप की प्रक्रिया को सम्पन्न कराया जाता है. यहां पर भरत मिलाप पहले होता था, लेकिन इस तरह से अदभूत मिलन की सोच को जहांआरा बेगन द्वारा शुरू करवाया गया. शाही मस्जिद कटरा के मैदान में जहांआरा बेगम खुद ही बैठकर इस नैना भिराम झांकी का लुत्फ उठाती और भरत मिलाप को देखती थी.

Intro:मऊ जिले के शाही कटरा के मैदान में होन वाले भरत मिलाप की शुरुवात मुगल शासिका जहाँआरा के शासन काल से शुरु हुयी थी।जो लगभग 500 सालो से एक जैसे रुप में ही मनाया जाता रहा है। शाही कटरा के मैदान में सम्पन्न होने वाले इस ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए लाखो की तादात में लोग शामिल होते है। इस भरत मिलाप की सबसे बडी खासियत ये भी है कि एक तरफ जहाँ शाही मस्जिद में मुसलमान नमाज अदा करता है अल्लाहु अकबर कहकर ठीक उसी समय हर हर महादेव का नारा गुजता है। कहते है राम और रहीम की आवाजे एक साथ मिलकर सुर संगम बन जाता है। जहा भरत मिलाप होता है तो वही दूसरी राम रहीम के स्वरो का अदभूत संगम होता जिसमें मिले सुर सुर में हमारा तुम्हारा। इस नैनाभिराम झाकी को देख कर हिन्दू मुस्लिम एकता और सौहार्दय पूर्ण गंगा-जमुनी तहजीब की अनोखी मिशाल को देश के समाने पेश करता है।Body:कहते है इसके पीछे सोच मुगलशासिका जहाँआरा की थी जो इस तरीके से भरत मिलाप करा कर दोनो सम्प्रदायो की कला और संगीत के अदभूत संयोग को जन्म देना चाहती थी। सैकडो वर्ष के बीत जाने के बाद भी यहा पर सम्पन्न होने वाले भरत मिला में कोई फेरबदल नही किया । कालान्तर में इस भरत मिलाप स्थल ने कई हिन्दू मुस्लिम दंगो को भी जन्म दिया... जिससे यहा पर दोनो समुदायो में आक्रोश की भावना आयी देश के संवेदनशील शहरो की सूची में भी मऊ का नाम पहले स्थान पर पहुँच गया। इतना सबकुछ होने के बाद भी शाही कटरा के मैदान में होने वाले इस भरत मिलाप में कही कोई परिवर्तन नही किया। हालाकि इस बार के त्यौहार में हिन्दू मुस्लिम त्यौहार एक साथ पडे तो एक तरफ भरत मिलाप से ही होकर ताजिया निकला और दूसरी तरफ भरत मिलाप सम्मपन्न हो रहा था जिसको देखने के बाद हर किसी जुबान ने कहा ऐसा दृश्य दुनिया के लिए बेमिशाल है। भरत मिलाप कमेटी संरक्षक ने बताया कि यह भरत मिलाप ऐतिहासिक भरत मिलाप है यहा पर जब तक अल्हा हो अकबर और हर हर महादेव के स्वरो का मिलन हो कर सुर में मिले हामरा तुम्हारा एक होकर राम रहीम के मिलन होने के बाद ही भरत मिलाप की प्रक्रिया सम्पन्न कराया जाता है। यहा पर भरत मिलापपहले होता था लेकिन इस तरह से अदभूत मिलन की सोच को जहाआरा बेगन द्वारा शुरुवात कराया गया। शाही मस्जिद कटरा के मैदान स्वयं जहाँआरा बेगम खुद ही बैठ कर इस नैना भिराम झाकी का लुत्फ उठाती और भरत मिलाप को देखती थी साथ ही सराहना भी करती थी। उन्ही ने ही इस अनोखी परम्परा की शुरुवात को जन्म दिया था।Conclusion:गौरतलब हो कि हिन्दू मुस्लिम एकता की मिशाल और गंगा जमुनी तहजीब की अनोखी मिशाल को जन्म होता है । शायद ही देश किसी और कोनो में कही होती हो लेकिन यह भरत अपने आप में एक अजूबा भरत मिलाप है।

बाईट - संजय वर्मा [रामलीला कमेटी]
बाईट - मौलाना इफ़्तेख़ार अहमद मिफ्ताही [शाही मस्जिद]
बाईट - ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी [जिलाधिकारी]

वेद मिश्रा, मऊ
9415219385
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