मऊ: पूर्वांचल का पिछड़ा जिला है मऊ. यहां कुछ वर्ष पहले लोग बेटियों को खेलना तो दूर पढ़ने के लिए घर से बाहर भेजना पसन्द नहीं करते थे. लेकिन आज यहां की बेटियां-बेटों के साथ ताल ठोक अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहीं हैं. डॉक्टर भीमराव स्पोर्ट्स स्टेडियम में कबड्डी के कोर्ट पर बेटे और बेटियां एक साथ ताल ठोक रहें हैं, जिसकी धमक राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच रही है.
जिला स्टेडियम में कबड्डी की कोर्ट पर खिलाड़ी आपको आकर्षित कर लेंगे. यहां जब लड़के और लड़कियों एक साथ ताल ठोकंगीं तो आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे. कोर्ट में जिले का नाम रोशन करने और अपने-अपने सपनों की बुलंदियों को छूने के लिए बेटे और बेटियां खूब पसीना बहा रहें हैं.
जिले में कबड्डी की फौज को तैयार कर रहीं हैं सोनिया
सोनिया अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रह चुकी हैं और अब वो राष्ट्रीय स्तर की कोच हैं. सोनिया साल 2016 में वियतनाम में आयोजित एशियन गेम्स में भारतीय टीम गोल्ड मेडल दिला चुकी हैं. सोनिया गाजीपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्र कादीपुर की रहने वाली हैं और उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए यह सफर तय किया. सोनिया बताती हैं कि, 1997 में जब वह 1997 कबड्डी खेलती थीं, तो गांव के लोग अजीब नजर से देखते थे. लोग उनके छोटे कपड़े पहने और अकेले बाहर निकलने को लेकर तंज कसते थे. लेकिन जैसे-जैसे सोनिया को सफलता मिलती गई लोगों की सोच भी धीरे-धीरे बदल गई.
जब मैं 2011 में मऊ स्टेडियम में कोच बनकर आई तो यहां कबड्डी का एक भी खिलाड़ी नहीं था. मैंने प्रयास किया धीरे-धीरे लड़के और लड़कियों का रुझान बड़ा. आज 100 खिलाड़ी अभ्यास करते हैं. यहां से तीन खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक प्रतिभाग कर चुके हैं. वहीं प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता में जिले की टीम अक्सर मेडल लाती है.
सोनिया, कोच