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स्वामी अमृतानंद बोले, गाय खाने वालों में और पूजने वालों में कभी सद्भावना नहीं हो सकती

स्वामी अमृतानंद का कहना है कि गाय खाने वालों में और पूजने वालों में कभी सद्भावना नहीं हो सकती है.

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Published : Jun 8, 2022, 9:01 PM IST

मथुराः तीन जून से हरिद्वार के सर्वानंद घाट से जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी का संदेश लेकर निकली संत जागृति यात्रा बुधवार को गोवर्धन गिरिराज तलहटी पहुंची. इस दौरान स्वामी अमृतानंद जी महाराज ने कहा कि शेर में, बकरी में या गाय में कभी भी सद्भावना नहीं हो सकती. इसी तरह से गाय खाने वालों में और गाय को पूजने वालों में कभी भी सद्भावना नहीं हो सकती है.


कहा कि, हम भारत संत जागृति यात्रा के तहत हरिद्वार के सर्वानंद घाट से डासना देवी हरीगढ़ होते हुए गोवर्धन आए हैं. गोवर्धन ब्रज का ह्रदय है, मध्य भाग है यहां के संतो से मिलेंगे. हम संतों से कहना चाह रहे हैं कि धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो में तब्दीली की जाए. गाय खाने वालों में और गाय को पूजने वालों में कभी भी सद्भावना नहीं हो सकती है.

यह बोले स्वामी अमृतानंद.


इसी भावना को समझिए और लोगों तक पहुंचाइए. हमें धर्म की जय हो वाले जयकारे में परिवर्तन करके सनातन धर्म की जय हो, सनातन धर्म के शत्रुओं का नाश हो, सनातन धर्म को मानने वालों में एकता हो व सनातन धर्म के मानने वालों का कल्याण हो बोलना चाहिए. उद्देश्य है कि सनातन धर्म को मानने वाले बच्चों में पुरुषार्थ हो और वह शत्रु बोध को समझ पाएं.

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मथुराः तीन जून से हरिद्वार के सर्वानंद घाट से जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी का संदेश लेकर निकली संत जागृति यात्रा बुधवार को गोवर्धन गिरिराज तलहटी पहुंची. इस दौरान स्वामी अमृतानंद जी महाराज ने कहा कि शेर में, बकरी में या गाय में कभी भी सद्भावना नहीं हो सकती. इसी तरह से गाय खाने वालों में और गाय को पूजने वालों में कभी भी सद्भावना नहीं हो सकती है.


कहा कि, हम भारत संत जागृति यात्रा के तहत हरिद्वार के सर्वानंद घाट से डासना देवी हरीगढ़ होते हुए गोवर्धन आए हैं. गोवर्धन ब्रज का ह्रदय है, मध्य भाग है यहां के संतो से मिलेंगे. हम संतों से कहना चाह रहे हैं कि धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो में तब्दीली की जाए. गाय खाने वालों में और गाय को पूजने वालों में कभी भी सद्भावना नहीं हो सकती है.

यह बोले स्वामी अमृतानंद.


इसी भावना को समझिए और लोगों तक पहुंचाइए. हमें धर्म की जय हो वाले जयकारे में परिवर्तन करके सनातन धर्म की जय हो, सनातन धर्म के शत्रुओं का नाश हो, सनातन धर्म को मानने वालों में एकता हो व सनातन धर्म के मानने वालों का कल्याण हो बोलना चाहिए. उद्देश्य है कि सनातन धर्म को मानने वाले बच्चों में पुरुषार्थ हो और वह शत्रु बोध को समझ पाएं.

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