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स्पेशल स्टोरी : ...और जब चलती ट्रेन में सुनील बन गए 'धरती के भगवान'

मध्य प्रदेश संपर्क क्रांति में किरण दर्द से तड़प रही थी. मदद के लिए उसकी आंखें तरस रही थीं. ट्रेन चल रही थी. उसी ट्रेन में सवार था 'रैंचो'. जी हां, थ्री इडियट्स का कैरेक्टर 'रैंचो' और फिर संपर्क क्रांति में एक बार फिर दिखा 'थ्री इडियट्स'. वो टेंशन के 15 सेकेंड्स और फिर खुशियां मुस्कुराने लगीं क्योंकि ट्रेन की रफ्तार से तेज सुनील के हौसलों की उड़ान थी. देखिए यह खास रिपोर्ट...

स्पेशल रिपोर्ट...
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Published : Jan 18, 2021, 10:53 PM IST

मथुरा/दिल्ली : वाकई दिव्यांग लैब टेक्निशियन सुनील प्रजापति उस महिला के लिए भगवान बन गए...जो ट्रेन में प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी. हालांकि यह सब इतना आसान नहीं था...वह शनिवार की शाम थी. मध्य प्रदेश संपर्क क्रांति फरीदाबाद स्टेशन से निकल चुकी थी. गाड़ी के B-3 कोच में सवार सुनील प्रजापति अपने घर जाने के लिए सवार थे. सुनील के सामने एक महिला अपनी बच्ची और भाई के साथ सवार थी. महिला का नाम किरण था. किरण अचानक दर्द से कराहने लगी. बीतते वक्त के साथ किरण का दर्द बढ़ता जा रहा था. सुनील ने किरण के भाई से इस बारे में जब पूछा तो उसने बताया कि उसकी बहन गर्भवती है.

स्पेशल रिपोर्ट...

किरण का दर्द कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मथुरा से करीब 20-30 किलोमीटर पीछे, दर्द की इंतहा पार होने लगी. सुनील ने दिल्ली डिवीजन के डॉक्टर सुपर्णा सेन रॉय को फोन कर मदद मांगी. जवाब मिला कि वीडियो कॉल करो तब कुछ मदद हो सकती है.

मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुईं थीं. बच्चे के नहीं रोने की वजह से सुनील भी कुछ देर के लिए घबरा गए. उन्होंने तुरंत एक बार फिर डॉक्टर से संपर्क साधा और मदद मांगी.

लेकिन चुनौती अभी भी बाकी थी. पास में कोई डॉक्टर था नहीं. बच्चे का नाभी नाल अभी कटा था नहीं.

कुछ और महिलाएं भी सहायता के लिए आ चुकीं थीं. इतनी देर में अगले स्टेशन यानि कि मथुरा जंक्शन पर किरण की सहायता के लिए तैयारियां की जा चुकी थीं. मुश्किलों को मंजिल मिल चुकी थी. मुश्किलें अब खुशियों में बदल चुकी थीं और सुनील के चेहरे पर खिली मुस्कान विजय की पताका फहरा रही थी. वह कह रही थी कि हौसलों के आगे मुश्किलों की कोई औकात नहीं होती. अब जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं.

मथुरा/दिल्ली : वाकई दिव्यांग लैब टेक्निशियन सुनील प्रजापति उस महिला के लिए भगवान बन गए...जो ट्रेन में प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी. हालांकि यह सब इतना आसान नहीं था...वह शनिवार की शाम थी. मध्य प्रदेश संपर्क क्रांति फरीदाबाद स्टेशन से निकल चुकी थी. गाड़ी के B-3 कोच में सवार सुनील प्रजापति अपने घर जाने के लिए सवार थे. सुनील के सामने एक महिला अपनी बच्ची और भाई के साथ सवार थी. महिला का नाम किरण था. किरण अचानक दर्द से कराहने लगी. बीतते वक्त के साथ किरण का दर्द बढ़ता जा रहा था. सुनील ने किरण के भाई से इस बारे में जब पूछा तो उसने बताया कि उसकी बहन गर्भवती है.

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किरण का दर्द कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मथुरा से करीब 20-30 किलोमीटर पीछे, दर्द की इंतहा पार होने लगी. सुनील ने दिल्ली डिवीजन के डॉक्टर सुपर्णा सेन रॉय को फोन कर मदद मांगी. जवाब मिला कि वीडियो कॉल करो तब कुछ मदद हो सकती है.

मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुईं थीं. बच्चे के नहीं रोने की वजह से सुनील भी कुछ देर के लिए घबरा गए. उन्होंने तुरंत एक बार फिर डॉक्टर से संपर्क साधा और मदद मांगी.

लेकिन चुनौती अभी भी बाकी थी. पास में कोई डॉक्टर था नहीं. बच्चे का नाभी नाल अभी कटा था नहीं.

कुछ और महिलाएं भी सहायता के लिए आ चुकीं थीं. इतनी देर में अगले स्टेशन यानि कि मथुरा जंक्शन पर किरण की सहायता के लिए तैयारियां की जा चुकी थीं. मुश्किलों को मंजिल मिल चुकी थी. मुश्किलें अब खुशियों में बदल चुकी थीं और सुनील के चेहरे पर खिली मुस्कान विजय की पताका फहरा रही थी. वह कह रही थी कि हौसलों के आगे मुश्किलों की कोई औकात नहीं होती. अब जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं.

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