मथुराः वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के बाद मथुरा की शाही ईदगाह का मामला भी चर्चा में है. शाही ईदगाह मामले की कोर्ट एक जुलाई को सुनवाई करेगा. इस मसले को लेकर शाही ईदगाह मस्जिद के प्रबंध कमेटी के सचिव और अधिवक्ता ने आरोप लगाया है कि राम जन्मभूमि विवाद खत्म होने के बाद 2024 के चुनाव के लिए मंदिर-मस्जिद को मुद्दा बनाया जा रहा है.
शाही ईदगाह मस्जिद के प्रबंध कमेटी के सचिव तनवीर अहमद ने कहा कि एक तरह से प्रतिस्पर्धा चल रही है. बिना किसी साक्ष्य के, बिना किसी आधार के रोजाना याचिकाएं डाल देते हैं. एक-दूसरे की नकल में ऐसा हो रहा है. हमारा कहना कि जो लोग याचिकाएं लेकर आ रहे हैं, आखिर उनको क्या अधिकार है? वह किस नाते याचिकाएं डाल रहे हैं ? क्या वह सेवा सदन के सदस्य हैं? न तो वह कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के सदस्य हैं और न ही वह शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के सदस्य. कहीं भी प्रमाणिकता के आधार पर कोई साक्ष्य अभी तक पेश नहीं किए गए हैं. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. उस फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया कि मंदिर तोड़ने का कोई प्रमाण अभी तक नहीं मिला है, मस्जिद तोड़ने का प्रमाण जरूर मिला है. आस्था के आधार पर उस फैसले को दिया गया और सबने उस फैसले को स्वीकार किया .
अब जब राम जन्मभूमि का फैसला हो गया तो कोई मुद्दा बचा नहीं. 2024 का चुनाव भी आ रहा है, और कुछ संस्थाएं जो कि खुद को एक्सपोज करना चाहती हैं वह किसी ना किसी तरह से इस मुद्दे को लेकर विवाद उठा रहीं हैं. वह बोले, इधर शाही मस्जिद ईदगाह का रास्ता है, उधर श्री कृष्ण जन्म भूमि का रास्ता है. वहां मंदिर बना हुआ है और वहां पूजा-अर्चना होती है. यहां पांच वक्त की नमाज होती है, अजान होती है. अजान नमाज और भजन कीर्तन की आवाज ईश्वर-अल्लाह के पास जाती है. हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है दोनों धर्मस्थल. मंदिर का रास्ता अलग है और शाही ईदगाह मस्जिद का रास्ता अलग.
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अधिवक्ता तनवीर अहमद ने कहा कि ज्ञानवापी का मामला बिल्कुल अलग है. हर व्यक्ति अपनी -अपनी तरह से सिद्ध करने में लगा हुआ है. एक वर्ग ऐसा है वह कह रहा है कि वह फव्वारा है, वहां वजू हुआ करती थी. कुछ लोगों का कहना है कि वहां शिवलिंग है. अब इस मामले को कोर्ट को तय करना है. उन्होंने मीडिया चैनलों की कुछ खबरों को लेकर भी अपनी आपत्ति जताई. वहीं, शाही मस्जिद मामले में उन्होंने कहा कि सर्वे की कोई आवश्यकता है ही नहीं क्योंकि शाही ईदगाह मस्जिद का रास्ता अलग है और जन्मभूमि का रास्ता अलग.
उन्होंने कहा कि लोग बता रहे हैं कि औरंगजेब बहुत कट्टर बादशाह था. कोई बादशाह जो स्वतंत्र था उस वक्त वह मंदिर में मस्जिद कदापि नहीं बना सकता. उन्होंने कहा कि वादी खुद नहीं तय कर पा रहे हैं कि उन्हें कहना क्या है? वह बोले कि रोज दो से तीन वादी दरखावस्त लेकर आते हैं और कोर्ट में लगाते हैं जबकि उनको मालूम है कि इस मामले में एक जुलाई को तारीख पड़ी है.
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