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मथुरा: धरती से प्रकट हुए रंगेश्वर महादेव की बहुत दिलचस्प है कहानी, आप भी पढ़िए

मथुरा के रंगेश्वर महादेव मंदिर में सावन के दौरान हजारों भक्त दर्शन-पूजन के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में यहां पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. पढ़िए रंगेश्वर महादेव की दिलचस्प कहानी.

रंगेश्वर महादेव मंदिर
रंगेश्वर महादेव मंदिर
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Published : Jul 25, 2022, 9:40 AM IST

मथुरा: सावन का महीना शुरू होते ही शिव भक्तों की लंबी-लंबी कतारें मंदिरों में देखने को मिलती हैं. कृष्ण की नगरी में साढे़ पांच हजार वर्ष पुराने प्राचीन रंगेश्वर महादेव मंदिर में सावन के महीने में श्रद्धालुओं का तांता लगता है. पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने कंस का वध किया था, तब धरती से महादेव प्रकट हुए थे, जो रंगेश्वर के नाम से विख्यात हैं. जानिए रंगेश्वर महादेव मंदिर की महत्ता.

शहर के रंगेश्वर महादेव मंदिर में वैसे तो हर रोज श्रद्धालुओं का जमावड़ा रहता है. लेकिन, ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में यहां पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. दूरदराज से हजारों की संख्या में श्रद्धालु सुबह-शाम दर्शन करने के लिए आते हैं और मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना करने के बाद मन में भक्ति भाव के कारण सुख की प्राप्ति होती है.

रंगेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास.

पौराणिक मान्यता
द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस के अत्याचारों से साधु-संत और प्रजा दुखी थी. चारों तरफ एक ही आवाज सुनाई देती थी. कृष्ण का अवतार हो, कंस का नाश हो. देवकी के गर्भ से भगवान कृष्ण ने जन्म लिया. मथुरा में जन्म होने के बाद भगवान कृष्ण ने गोकुल में क्रीड़ा खेली और अपनी लीलाएं वृंदावन में कीं. कंस का वध करने के लिए कृष्ण और बलराम जब मथुरा पहुंचे तो भगवान कृष्ण ने अपने छल से और बलराम ने अपने बल से कंस का वध किया.

धरती से प्रकट हुए रंगनाथ महादेव
राजा कंस का वध करने के बाद भगवान कृष्ण और बलराम आपस में झगड़ रहे थे और कहने लगे मैंने कंस को मारा है, मैंने कंस को मारा है. तभी धरती से प्रकट हुए महादेव की चारों तरफ गूंज सुनाई देने लगी. महादेव ने कहा कि कृष्ण ने अपने छल से और बलराम ने अपने बल से कंस का वध किया है. इसके बाद महादेव उसी स्थान पर विराजमान हो गए और रंगेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए. आज भी प्राचीन मंदिर रंगेश्वर में बना हुआ है, जहां लोग पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं.

मंदिर में होते हैं विशेष आयोजन
सावन के महीने में रंगेश्वर महादेव मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं. सुबह के वक्त दुग्ध अभिषेक, जलाभिषेक और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है. शाम के समय भोलेनाथ का श्रृंगार करके महाआरती की जाती है. रंगेश्वर महादेव मंदिर सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है. दूरदराज से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए वहां पहुंचते हैं.

पुजारी संतोष नाथ ने बताया कि मथुरा साधुओं की तपस्थली कही जाती थी. द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस का बहुत अत्याचार साधुओं पर होता था. साधु कंस के अत्याचारों से परेशान होकर भगवान से प्रार्थना करते थे कि कृष्ण का अवतार हो, कंस का नाश हो. कृष्ण का जन्म होने के बाद राक्षसों समेत कंस का वध किया गया.

यह भी पढ़ें: कांवड़ियों पर कहीं बरसे फूल, कहीं ड्रोन से नजर, सावन के दूसरे सोमवार पर रहेगी कड़ी चौकसी

शिव भक्त गोपाल सिंह ने बताया कि द्वापर युग के प्राचीन मंदिर रंगेश्वर महादेव में सावन के महीने में जो भी श्रद्धालु यहां आकर पूजा-अर्चना करता है तो ऐसी मान्यता है कि उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. उन्होंने कहा कि वे पिछले 30 वर्षों से हर रोज सुबह-शाम दर्शन करने के लिए आता हैं. सावन के महीने में शिवभक्त कांवड़ लाकर यहां विशेष पूजा-अर्चना करते हैं.

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मथुरा: सावन का महीना शुरू होते ही शिव भक्तों की लंबी-लंबी कतारें मंदिरों में देखने को मिलती हैं. कृष्ण की नगरी में साढे़ पांच हजार वर्ष पुराने प्राचीन रंगेश्वर महादेव मंदिर में सावन के महीने में श्रद्धालुओं का तांता लगता है. पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने कंस का वध किया था, तब धरती से महादेव प्रकट हुए थे, जो रंगेश्वर के नाम से विख्यात हैं. जानिए रंगेश्वर महादेव मंदिर की महत्ता.

शहर के रंगेश्वर महादेव मंदिर में वैसे तो हर रोज श्रद्धालुओं का जमावड़ा रहता है. लेकिन, ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में यहां पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. दूरदराज से हजारों की संख्या में श्रद्धालु सुबह-शाम दर्शन करने के लिए आते हैं और मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना करने के बाद मन में भक्ति भाव के कारण सुख की प्राप्ति होती है.

रंगेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास.

पौराणिक मान्यता
द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस के अत्याचारों से साधु-संत और प्रजा दुखी थी. चारों तरफ एक ही आवाज सुनाई देती थी. कृष्ण का अवतार हो, कंस का नाश हो. देवकी के गर्भ से भगवान कृष्ण ने जन्म लिया. मथुरा में जन्म होने के बाद भगवान कृष्ण ने गोकुल में क्रीड़ा खेली और अपनी लीलाएं वृंदावन में कीं. कंस का वध करने के लिए कृष्ण और बलराम जब मथुरा पहुंचे तो भगवान कृष्ण ने अपने छल से और बलराम ने अपने बल से कंस का वध किया.

धरती से प्रकट हुए रंगनाथ महादेव
राजा कंस का वध करने के बाद भगवान कृष्ण और बलराम आपस में झगड़ रहे थे और कहने लगे मैंने कंस को मारा है, मैंने कंस को मारा है. तभी धरती से प्रकट हुए महादेव की चारों तरफ गूंज सुनाई देने लगी. महादेव ने कहा कि कृष्ण ने अपने छल से और बलराम ने अपने बल से कंस का वध किया है. इसके बाद महादेव उसी स्थान पर विराजमान हो गए और रंगेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए. आज भी प्राचीन मंदिर रंगेश्वर में बना हुआ है, जहां लोग पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं.

मंदिर में होते हैं विशेष आयोजन
सावन के महीने में रंगेश्वर महादेव मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं. सुबह के वक्त दुग्ध अभिषेक, जलाभिषेक और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है. शाम के समय भोलेनाथ का श्रृंगार करके महाआरती की जाती है. रंगेश्वर महादेव मंदिर सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है. दूरदराज से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए वहां पहुंचते हैं.

पुजारी संतोष नाथ ने बताया कि मथुरा साधुओं की तपस्थली कही जाती थी. द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस का बहुत अत्याचार साधुओं पर होता था. साधु कंस के अत्याचारों से परेशान होकर भगवान से प्रार्थना करते थे कि कृष्ण का अवतार हो, कंस का नाश हो. कृष्ण का जन्म होने के बाद राक्षसों समेत कंस का वध किया गया.

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शिव भक्त गोपाल सिंह ने बताया कि द्वापर युग के प्राचीन मंदिर रंगेश्वर महादेव में सावन के महीने में जो भी श्रद्धालु यहां आकर पूजा-अर्चना करता है तो ऐसी मान्यता है कि उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. उन्होंने कहा कि वे पिछले 30 वर्षों से हर रोज सुबह-शाम दर्शन करने के लिए आता हैं. सावन के महीने में शिवभक्त कांवड़ लाकर यहां विशेष पूजा-अर्चना करते हैं.

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